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भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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==रक्षा बन्धन==
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भाई - बहन के प्रेम व रक्षा का त्योहार
|name=सिक्किम के मुख्यमंत्री
होली, दीवाली और दशहरे की तरह यह भी हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है। यह भाई-बहन को स्नेह की डोर से बांधने वाला त्यौहार है। यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।
|title =[[सिक्किम के मुख्यमंत्री]]
रक्षाबंधन का अर्थ है (रक्षा+बंधन) अर्थात किसी को अपनी रक्षा के लिए बांध लेना। इसीलिए राखी बांधते समय बहन कहती है-'भैया! मैं तुम्हारी शरण में हूं, मेरी सब प्रकार से रक्षा करना।'
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आज के दिन बहन अपने भाई के हाथ में राखी बांधती है और उन्हें मिठाई खिलाती है। फलस्वरूप भाई भी अपनी बहन को रूपये या उपहार आदि देते हैं। रक्षाबंधन स्नेह का वह अमूल्य बंधन है जिसका बदला धन तो क्या सर्वस्व देकर भी नहीं चुकाया जा सकता।
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==रक्षासूत्र==
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}}<noinclude>[[Category:गणराज्य संबंधित साँचे]]</noinclude>


श्रावण शुक्ल की [[पूर्णिमा]] को भारतवर्ष में भाई - बहन के प्रेम व रक्षा का पवित्र त्योहार 'रक्षाबन्धन' मनाया जाता हैं। सावन में मनाए जाने के कारण इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं।भ्रातप्रेम को प्रगाढ़ बनाता रक्षाबंधन का पर्व भाई व बहन के अनकहे स्नेह - शपथ का परिचायक है। रक्षाबंधन श्रावण की पूर्णिमा के दिन प्रतिवर्ष अगस्त के महीने में मनाया जाता है। इसी दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी का कोमल धागा बाँधती हैं। यह धागा उनके बीच प्रेम व स्नेह का प्रतीक होता है। यही धागा भाई को प्रतिबद्ध करता है कि वह अपनी बहन की हर कठिनाई व कष्ट में रक्षा करेगा।
=======================
 
{| width="70%" cellpadding=2 cellspacing=2 class="bharattable-purple"
इस दिन भाई बहनों के घर जाते हैं। बहनें अपने भाई के आने की खुशी में अपने घरों को सजाती हैं। घरों को लीप - पोत कर दरवाज़ों पर आम तथा केले के पत्तों के बन्दनवार लगाती हैं। स्नान - ध्यान करके अगरबत्ती व धूप जलाती हैं। तरह - तरह के स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं। जब तक भाई नहीं आते हैं तब तक खाना नहीं खातीं और अपने भाई के आने की प्रतीज्ञा में बैठी रहती हैं।
|+[[सिक्किम]] के [[मुख्यमंत्री|मुख्यमंत्रियों]] की सूची
भाई के आने पर बहनें थालों में फल, फूल, मिठाइयाँ, रोली, चावल तथा राखियाँ रखकर भाई का स्वागत करती हैं। रोली - चावल से भाई का तिलक करती हैं और उसके दाएँ हाथ में राखी बाँधती हैं। राखी बहन के पवित्र प्रेम और रक्षा की डोरी है। राखी की डोरी में ऐसी शक्ति है जो हर मुसीबत से भाई की रक्षा करती है।
! '''क्रमांक'''
बहनें भाइयों को राखी बाँधकर परमेश्वर से दुआ माँगती हैं कि उनके भाई सदा सुरक्षित रहें। इस मायावी संसार में अच्छे कर्म करते हुए नैतिक जीवन बिताएं। भाई भी राखी बँधवाकर बहन से यह प्रतिज्ञा करते हैं कि अगर बहन पर कोई संकट या मुसीबत आए, वह उस संकट का निवारण करने में बहन की सहायता करने के लिए अपनी जान की भी बाज़ी लगा देंगे।
! '''नाम'''
कई भाई जो बहुत दूर रहते हैं और वह बहन के घर नहीं जा पाते, वह मनीऑर्डर के द्वारा अपनी बहनों के पास रुपये भेज देते हैं और बहनें डाक के द्वारा अपने भाई के पास राखियाँ भेज देती हैं। कई जगह बहनें ही अपने भाई के घर जाकर उन्हें राखी बाँधती हैं। भाई बहनों को मिठाई, कपड़े, नक़द रुपये तथा बहुमूल्य उपहार देते हैं।
! '''पदभार ग्रहण'''
 
! '''पदमुक्ति'''
भाई-बहन का हार्दिक प्रेम और भावना ही इस त्यौहार का वास्तविक महत्व है। राखी का त्यौहार पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
! '''दल / पार्टी'''
आज के दिन बहनें स्नान करके अपने घर में दीवारों पर सोन रखती हैं और फिर सेवइयों, चावल की खीर और मिठाई से इनकी पूजा करती है। सोनों (श्रवण­) के ऊपर खीर या मिठाई की सहायता से राखी के धागे चिपकाए जाते हैं। जो स्त्रियां नागपंचमी को गेहूं आदि बोती हैं, वे इन छोटे-पौधों को पूजा में रखती हैं और भाइयों के हाथों में राखी बांधने के बाद इन पौधों को भाइयों क कानों मेंलगा देती हैं।
!कार्यकाल अवधि 
==उपाकर्म संस्कार==
|-
इसके अतिरिक्त इस दिन ऋषि - महर्षि उपाकर्म कराकर व्यक्तियों को विद्या - अध्ययन कराना आरम्भ करते हैं। दूध, दही, घी, गोबर और गऊ मूत्र मिलाकर पंचगव्य बनाते हैं और उसे पान करते हैं तथा हवन करते हैं। इसे उपाकर्म कहते हैं। उपाकर्म संस्कार कराकर जब व्यक्ति अपने घर लौटते हैं तब बहनें उनका स्वागत करती हैं और उनके दाएँ हाथ में राखी बाँधती हैं। इस विधान से भी श्रावणी शुक्ल पूर्णिमा को रक्षाबन्धन का त्यौहार मनाया जाता है।
|  1
==उत्सर्ज क्रिया==
[[काजी लेन्डुप दोरजी]]
श्रावणी शुक्ल पूर्णिमा को सूर्य को जल चढ़ाकर सूर्य की स्तुति करते हैं तथा अरुन्धती सहित सप्त ऋषियों की पूजा करते हैं और दही - सत्तू की आहुतियाँ देते हैं। इस क्रिया को उत्सर्ज कहते हैं। यह उत्सज क्रिया भी श्रावणी शुक्ल की पूर्णिमा को होती है।<ref>{{cite web |url=http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/utrn0005.htm|title=कुमाऊँ के पर्वोत्सव व त्यौहार|accessmonthday=14अगस्त|accessyear=2010 |last=|first= |authorlink=कुमाऊँ के पर्वोत्सव व त्यौहार|format=एच टी एम एल |publisher=http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/utrn0005.htm|language=हिंदी}}</ref>
|  16 मई 1975
==बहिनों की रक्षा का महोत्सव==
|  18 अगस्त 1979
रक्षाबंधन बहिन और भाई के स्नेह का त्योहार है। पूरा दिन उल्लास व हर्षपूर्ण होता है। घरों की सफाई होती है तथा बहनें सुबह स्नानादि के पश्चात अधीरता से अपने भाई की प्रतीक्षा करती हैं कि वे आएँ, ताकि उन्हें राखी का पवित्र धागा बाँधा जा सके। जब तक भाई को राखी न बाँधें तब तक बहनें व्रत रखती हैं। राखी बाँधने के बाद ही खाना खाती हैं। राखी बँधवा कर भाई अपनी बहनों को अनेक प्रकार की भेंट प्रदान करते हैं। विगत समय में यह त्यौहार पति - पत्नि के आपसी प्रेम और स्त्री की सौभाग्य रक्षा का प्रतीक था।
[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]
==ब्राह्मण, पुरोहित और यजमान==
| 1555 दिन
रक्षा बंधन के दिन देश में कई स्थानों पर ब्राह्मण, पुरोहित भी अपने यजमान की समृद्धि हेतु उन्हें रक्षा बाँधते हैं, जिसकी उन्हें दक्षिणा भी मिलती है। रक्षा बाँधते समय ब्राह्मण यह मंत्र पढ़ता जाता है —
|-
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबलः।
! colspan="2"| राष्ट्रपति शासन (18 अगस्त 1979 से 18 अक्टूबर 1979 तक)
तेन त्वां प्रतिबध्नामि, रक्षे! मा चल! मां चल!!
|-
अर्थ—जिस प्रकार के उद्देश्य पूर्ति हेतु दानव - सम्राट महाबली, रक्षा - सूत्र से बाँधा गया था (रक्षा सूत्र के प्रभाव से वह वामन भगवान को अपना सर्वस्व दान करते समय विचलित नहीं हुआ), उसी प्रकार हे रक्षा सूत्र! आज मैं तुम्हें बाँधता हूँ। तू भी अपने उद्देश्य से विचलित न हो, दृढ़ बना रहे।
| 3
==राखी का धार्मिक महत्व==
| [[नर बहादुर भंडारी]]
रक्षाबंधन का पर्व प्रत्येक भारतीय घर में उल्लासपूर्ण वातावरण से प्रारम्भ होता है। राखी, पर्व के दिन या एक दिन पूर्व खरीदी जाती है। पारम्परिक भोजन व व्यंजन प्रातः ही बनाए जाते हैं। प्रातः शीघ्र उठकर बहनें स्नान के पश्चात भाइयों को तिलक लगाती हैं तथा उसकी दाहिने कलाई पर राखी बाँधती हैं। इसके पश्चात भाइयों को कुछ मीठा खिलाया जाता है। भाई अपनी बहन को भेंट देता है। बहन अपने भाइयों को राखी बाँधते समय सौ - सौ मनौतियाँ मनाती हैं।
| 18 अक्टूबर 1979
==महाराष्ट्र में नारियल पूजन==
| 11 मई 1984
[[मुंबई]] में रक्षाबंधन पर्व को नारली (नारियल) पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। जल के देवता [[वरुण]] को प्रसन्न करने के लिए समुद्र को (नारियल) अर्पित किए जाते हैं। वरुणदेव ही पूजा के मुख्य देवता होते हैं। नारियल की 'तीन आँखें' होती हैं। इस बारे में ऐसा विश्वास किया जाता है कि ये भगवान [[शिव]] के त्रिनेत्रों की प्रतीक हैं। इसीलिए इस पर्व पर नारियल या गोले के पूजन की विशेष धार्मिक महत्ता है। घर में बहनें भाइयों को राखी बाँधती हैं और उसका पूजन करके, मिठाई खिलाकर उनसे उपहार भी प्राप्त करती हैं। इसी दिन महाराष्ट्रियों में कृष्ण यजुर्वेदी शाखा की श्रावणी का भी विधान है। पुरुष किसी बड़े घर में विभिन्न मंत्रोच्चार के साथ भगवान का पूजन हवन करते हैं। फिर नये यज्ञोपवीत को प्रतिष्ठित अभिमंत्रित करके पहनते हैं।
| सिक्किम जनता परिषद
==दक्षिण भारत में अवनि अवित्तम==
|1668 दिन
इस त्यौहार को दक्षिण भारत में अवनि अवित्तम के रूप में मनाया जाता है। इस दिन ब्राह्मण नया पवित्र यज्ञोपवीत धारण करते हैं तथा प्राचीन ऋषियों को जल अर्पित करते हैं।<ref>{{cite web |url=http://www.raksha-bandhan.com/avani-avittam-upakramam.html|title=Raksha Bandhan in History|accessmonthday=14अगस्त|accessyear=2010 |last=|first= |authorlink=http://www.raksha-bandhan.com/avani-avittam-upakramam.html|title=Raksha Bandhan in History |format=एच टी एम एल |publisher=aksha-bandhan.com|language=english}}</ref>
|-
   
| 4
==रक्षाबंधन की अमर कथाएँ==
[[बी॰ बी॰ गुरुंग]]
इतिहास में इस पर्व से जुड़ी अनेक कथाएँ मिलती हैं।
|  11 मई 1984
==शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन==
|  25 मई 1984
श्रावण की पूर्णिमा को अपरान्ह में एक कृत्य होता है, जिसे रक्षाबन्धन कहते हैं। श्रावण की पूर्णिमा को सूर्योदय के पूर्व उठकर देवों, ब्राह्मणों एवं पितरों का तर्पण करने के उपरान्त अक्षत, तिल, धागों से युक्त रक्षा बनाकर धारण करना चाहिए। राजा के लिए महल के एक वर्गाकार भूमि-स्थल पर जल-पात्र रखा जाना चाहिए, राजा को मन्त्रियों के साथ आसन ग्रहण करना चाहिए, वेश्याओं से घिरे रहने पर गानों एवं आर्शीवचनों का ताँता लगा रहना चाहिए; देवों ब्राह्मणों एवं अस्त्र-वस्त्र का सम्मान किया जाना चाहिए, तत्पश्चात राजपुरोहित को चाहिए कि वह मन्त्र के साथ 'रक्षा' बाँधे'–'आपको वह रक्षा बाँधता हूँ, जिससे दानवों के राजा बलि बाँधे गये थे, हे रक्षा, तुम (यहाँ) से न हटो, न हटो।'<ref>देवद्विजातिशस्ता सुस्त्रीरर्घ्येः समर्चयेत् प्रथमम्। तदनु पुरोघा नृपतेः रक्षां वघ्नीत मन्त्रेण।। येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षा मा चल मा चल।। भिविष्योत्तर पुराण (137|19-20)। </ref> सभी लोगों को यहाँ तक शूद्रों को भी, यथाशक्ति पुरोहितों को प्रसन्न करके रक्षा-बन्धन बँधवाना चाहिए। जब ऐसा कर दिया जाता है तो व्यक्ति वर्ष भर प्रसन्नता के साथ रहता है।
[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]
*हेमाद्रि ने भविष्योत्तर पुराण का उद्धरण देते हुए लिखा है कि इन्द्राणी ने इन्द्र के दाहिने हाथ में रक्षा बाँधकर उसे इतना योग्य बना दिया कि उसने असुरों को हरा दिया। जब पूर्णिमा चतुर्दशी या आने वाली प्रतिपदा से युक्त हो तो रक्षा-बन्धन नहीं होना चाहिए। इन दोनों से बचने के लिए रात्रि में ही यह कृत्य कर लेना चाहिए।
| 14 दिन
*यह कृत्य अब भी होता है और पुरोहित लोग दाहिनी कलाई में रक्षा बाँधते हैं और दक्षिणा प्राप्त करते हैं। [[गुजरात]], [[उत्तर प्रदेश]] एवं अन्य स्थानों में नारियाँ अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा बाँधती हैं और भेंट लेती-देती हैं।
|-
*श्रावण की पूर्णिमा को पश्चिमी भारत (विशेषतः कोंकण एवं मलाबार में) न केवल हिन्दू, प्रत्युत मुसलमान एवं व्यवसायी पारसी भी, समुद्र तट पर जाते हैं और समुद्र को पुष्प एवं नारियल चढ़ाते हैं।
! colspan="5"| राष्ट्रपति शासन (25 मई 1984 से 8 मार्च 1985 तक)
*श्रावण की पूर्णिमा को समुद्र में तूफ़ान कम उठते हैं और नारियल इसीलिए समुद्र-देव (वरुण) को चढ़ाया जाता है कि वे व्यापारी जहाज़ों को सुविधा दे सकें। पुस्तक "धर्मकोश का इतिहास-भाग 4" से) पृष्ठ संख्या 52 पर
|-
====पौराणिक कथा====
|  6
भविष्य पुराण में कथा के अनुसार प्राचीनकाल में एक बार बारह वर्षों तक देवासुर - संग्राम होता रहा, जिसमें देवताओं की हार हो रही थी। दुःखी और पराजित इन्द्र, गुरु बृहस्पति के पास गए। वहाँ इन्द्र पत्नी शचि भी थीं। इन्द्र की व्यथा जानकर इन्द्राणी ने कहा - 'कल ब्राह्मण शुक्ल पूर्णिमा है। मैं विधानपूर्वक रक्षासूत्र तैयार करूँगी। उसे आप स्वस्तिवाचन पूर्वक ब्राह्मणों से बंधवा लीजिएगा। आप अवश्य ही विजयी होंगे।'
[[नर बहादुर भंडारी]]  
दूसरे दिन इन्द्र ने इन्द्राणी द्वारा बनाए रक्षाविधान का स्वस्तिवाचन पूर्वक बृहस्पति से रक्षाबंधन कराया, जिसके प्रभाव से इन्द्र सहित देवताओं की विजय हुई। तभी से यह 'रक्षाबंधन' पर्व ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा। इस दिन बहनें भी भाइयों की कलाई में रक्षासूत्र बाँधती हैं और उनके सुखद जीवन की कामना करती हैं।
| 8 मार्च 1985
====ग्रीक नरेश सिकन्दर की कथा==
| 17 जून 1994
ऐसा कहा जाता है कि ग्रीक नरेश [[सिकन्दर]] की पत्नी ने अपने पति की रक्षा के लिए उसके शत्रु पुरुराज को राखी बाँधी थी। कथानुसार युद्ध के समय पुरु ने जैसे ही सिकन्दर पर प्राण घातक आक्रमण किया, उसे उसकी कलाई पर बंधी रक्षा दिखाई दी, जिसके कारण उसने सिकन्दर को अभय प्रदान किया और युद्ध में अनेक बार सिकन्दर को प्राणदान दिया।<ref>{{cite web |url=http://www.raksha-bandhan.com/raksha-bandhan-in-history.html|title=Raksha Bandhan in History|accessmonthday=14अगस्त|accessyear=2010 |last=|first= |authorlink=http://www.raksha-bandhan.com/raksha-bandhan-in-history.html|title=Raksha Bandhan in History |format=एच टी एम एल |publisher=aksha-bandhan.com|language=english}}</ref>
| सिक्किम संग्राम परिषद
 
|3389 दिन [कुल 5057 दिन]
====राजकुमारी कर्मवती की कथा====
|-
मध्यकालीन इतिहास में भी ऐसी ही एक घटना मिलती है। चित्तौड़ की हिन्दू रानी कर्मावती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं को अपना भाई मानकर उसके पास राखी भेजी थी। हुमायूं ने उसकी राखी स्वीकार कर ली और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह बहादुरशाह से युद्ध किया।
| 7
महारानी कर्मवती की कथा इसके लिए अत्यन्त प्रसिद्ध है, जिसने हुमायूँ को राखी भेजकर रक्षा के लिए आमंत्रित किया था। रानी कर्मवती ने सम्राट हुमायूँ के पास राखी भेजकर उसे अपना भाई बनाया था। सम्राट हुमायूँ ने रानी कर्मवती को अपनी बहन बनाकर उसकी दिलो - जान से मदद की थी। राखी के पवित्र बन्धन ने दोनों को बहन - भाई के पवित्र रिश्ते में बाँध दिया था। मर्मस्पर्शी कथानुसार, राजपूत राजकुमारी कर्मवती ने मुग़ल सम्राट हुमायूँ को गुजरात के सुल्तान द्वारा हो रहे आक्रमण से रक्षा के लिए राखी भेजी थी। यद्यपि हुमायूँ किसी अन्य कार्य में व्यस्त था, वह शीघ्र से बहन की रक्षा के लिए चल पड़ा। परन्तु जब वह पहुँचा, तो उसे यह जानकर बहुत दुख हुआ कि राजकुमारी के राज्य को हड़प लिया गया था तथा अपने सम्मान की रक्षा हेतु रानी कर्मवती ने 'जौहर' कर लिया था।
| [[संचमान लिम्बू]]
====महाभारत की कथा====
| 17 जून 1994
इस त्योहार का इतिहास हिन्दु पुराण कथाओं में मिलता है । [[महाभारत]] में [[कृष्ण]] ने [[शिशुपाल]] का वध अपने चक्र से किया था। शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र वापस कृष्ण के पास आया तो उस समय कृष्ण की उंगली कट गई भगवान कृष्ण के उंगली से खून निकलने लगा। यह देखकर [[द्रौपदी]] ने अपनी साडी़ का किनारा फाड़ कर कृष्ण की उंगली में बांधा था, जिसको लेकर कृष्ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था । इसी ऋण को चुकाने के लिए [[दु:शासन]] द्वारा चीरहरण करते समय कृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखी। तब से 'रक्षाबंधन' का पर्व मनाने का चलन चला आ रहा है।
| 12 दिसम्बर 1994
 
|  सिक्किम संग्राम परिषद
  ====महाभारत से अन्य कथा====
| 179 दिन
एक बार [[युधिष्ठिर]] ने कृष्ण भगवान से पूछा-'हे अच्युत! मुझे रक्षाबन्धन की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा और दुख दूर होता है। इस पर भगवान बोले- 'हे पाण्डव श्रेष्ठ! प्राचीन समय में एक बार देवों तथा असुरों में बारह वर्षों तक युद्ध हुआ। संग्राम में देवराज इंद्र की पराजय हुई। देवता कान्तिविहीन हो गए। इंद्र रणभूमि छोड़कर विजय की आशा को तिलांजलि देकर देवताओं सहित अमरावती चला गया।
|-
विजेता दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया और राजपद में घोषित कर दिया कि इंद्रदेव सभा में न आएं तथा देवता एवं मनुष्य यज्ञ कर्म न करें। सब लोग मेरी पूजा करें, जिसको इसमें आपत्ति हो वह राज्य छोड़कर चला जाए।
|  8
दैत्यराज की इस आज्ञा से यज्ञ, वेद, पठन, पाठन तथा उत्सव समाप्त कर दिए गए। धर्म का नाश होने से देवों का बल घटने लगा। इधर इंद्र दानवों से भयभीत होकर देवगुरू बृहस्पति को बुलाकर कहने लगा-  'हे गुरू! मैं शत्रुओं से घिरा हुआ प्राणान्त संग्राम करना चाहता हूं। होनी बलवान होती है, जो होना है होकर रहेगा। पहले तो बृहस्पति ने समझाया कि क्रोध करना व्यर्थ है। परंतु इंद्र की हठधर्मिता तथा उत्साह देखकर रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रात:काल ही रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।
| [[पवन कुमार चामलिंग]]  
'येनवद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
| 12 दिसम्बर 1994
तेन त्वाममिवध्नामि रक्षे माचल माचल।।'
|  पदस्थ
उक्त मन्त्रोच्चारण से देवगुरू ने श्रावणी के ही दिन रक्षा विधान किया। सहधर्मिणी इंद्राणी के साथ वृत्त संहारक इंद्र ने बृहस्पति की उस वाणी का अक्षरश: पालन किया और दानवों पर विजय प्राप्त की।
| [[सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट]]
==टीका टिप्पणी संदर्भ==
| 8683 दिन
|}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कडियाँ==
*[http://assamassembly.nic.in/cm-list.html असम के मुख्यमंत्रियों की सूची (आधिकारिक वेबसाइट)]
==संबंधित लेख==
{{भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्री}}
[[Category:भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्रियों की सूची]]
[[Category:चुनाव अद्यतन]]
[[Category:सिक्किम]]
[[Category:सिक्किम के मुख्यमंत्री]]
[[Category:राजनीति कोश]]
[[Category:गणराज्य संरचना कोश]]

Latest revision as of 12:28, 2 October 2018

===========
सिक्किम के मुख्यमंत्रियों की सूची
क्रमांक नाम पदभार ग्रहण पदमुक्ति दल / पार्टी कार्यकाल अवधि
1 काजी लेन्डुप दोरजी 16 मई 1975 18 अगस्त 1979 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1555 दिन
राष्ट्रपति शासन (18 अगस्त 1979 से 18 अक्टूबर 1979 तक)
3 नर बहादुर भंडारी 18 अक्टूबर 1979 11 मई 1984 सिक्किम जनता परिषद 1668 दिन
4 बी॰ बी॰ गुरुंग 11 मई 1984 25 मई 1984 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 14 दिन
राष्ट्रपति शासन (25 मई 1984 से 8 मार्च 1985 तक)
6 नर बहादुर भंडारी 8 मार्च 1985 17 जून 1994 सिक्किम संग्राम परिषद 3389 दिन [कुल 5057 दिन]
7 संचमान लिम्बू 17 जून 1994 12 दिसम्बर 1994 सिक्किम संग्राम परिषद 179 दिन
8 पवन कुमार चामलिंग 12 दिसम्बर 1994 पदस्थ सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट 8683 दिन

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कडियाँ

संबंधित लेख

भारतीय राज्यों में पदस्थ मुख्यमंत्री
क्रमांक राज्य मुख्यमंत्री तस्वीर पार्टी पदभार ग्रहण
1. अरुणाचल प्रदेश पेमा खांडू 80px|center भाजपा 17 जुलाई, 2016
2. असम हिमंता बिस्वा सरमा 80px|center भाजपा 10 मई, 2021
3. आंध्र प्रदेश वाई एस जगनमोहन रेड्डी 80px|center वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 30 मई, 2019
4. उत्तर प्रदेश योगी आदित्यनाथ 80px|center भाजपा 19 मार्च, 2017
5. उत्तराखण्ड पुष्कर सिंह धामी 80px|center भाजपा 4 जुलाई, 2021
6. ओडिशा नवीन पटनायक 80px|center बीजू जनता दल 5 मार्च, 2000
7. कर्नाटक सिद्धारमैया 80px|center भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 20 मई, 2023
8. केरल पिनाराई विजयन 80px|center मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी 25 मई, 2016
9. गुजरात भूपेन्द्र पटेल 80px|center भाजपा 12 सितम्बर, 2021
10. गोवा प्रमोद सावंत 80px|center भाजपा 19 मार्च, 2019
11. छत्तीसगढ़ विष्णु देव साय 80px|center भारतीय जनता पार्टी 13 दिसम्बर, 2023
12. जम्मू-कश्मीर रिक्त (राज्यपाल शासन) लागू नहीं 20 जून, 2018
13. झारखण्ड हेमन्त सोरेन 80px|center झारखंड मुक्ति मोर्चा 29 दिसम्बर, 2019
14. तमिल नाडु एम. के. स्टालिन 80px|center द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम 7 मई, 2021
15. त्रिपुरा माणिक साहा 80px|center भाजपा 15 मई, 2022
16. तेलंगाना अनुमुला रेवंत रेड्डी 80px|center भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस 7 दिसंबर, 2023
17. दिल्ली अरविन्द केजरीवाल 80px|center आप 14 फ़रवरी, 2015
18. नागालैण्ड नेफियू रियो 80px|center एनडीपीपी 8 मार्च, 2018
19. पंजाब भगवंत मान 80px|center आम आदमी पार्टी 16 मार्च, 2022
20. पश्चिम बंगाल ममता बनर्जी 80px|center तृणमूल कांग्रेस 20 मई, 2011
21. पुदुचेरी एन. रंगास्वामी 80px|center कांग्रेस 7 मई, 2021
22. बिहार नितीश कुमार 80px|center जदयू 27 जुलाई, 2017
23. मणिपुर एन. बीरेन सिंह 80px|center भाजपा 15 मार्च, 2017
24. मध्य प्रदेश मोहन यादव 80px|center भाजपा 13 दिसंबर, 2023
25. महाराष्ट्र एकनाथ शिंदे 80px|center शिव सेना 30 जून, 2022
26. मिज़ोरम लालदुहोमा 80px|center जोरम पीपल्स मूवमेंट 8 दिसम्बर, 2023
27. मेघालय कॉनराड संगमा 80px|center एनपीपी 6 मार्च, 2018
28. राजस्थान भजन लाल शर्मा 80px|center भारतीय जनता पार्टी 15 दिसम्बर, 2023
29. सिक्किम प्रेम सिंह तमांग 80px|center सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा 27 मई, 2019
30. हरियाणा नायब सिंह सैनी 80px|center भाजपा 12 मार्च, 2024
31. हिमाचल प्रदेश सुखविंदर सिंह सुक्खू 80px|center भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 11 दिसम्बर, 2022