कटहल: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by the same user not shown) | |||
Line 9: | Line 9: | ||
'''विशेष'''- इसकी अंडाकार पत्तियाँ 4-5 अंगुल लंबी, कड़ी मोटी और ऊपर की ओर श्यामता लिए हुए हरे रंग की होती हैं इसमें बड़े बड़े फल लगते हैं जिनकी लंबाई हाथ डेढ़ हाथ तक की और घेरा भी प्रायः इतना ही होता है ऊपर का छिलका बहुत मोटा होता है जिसपर बहुत से नुकीले कंगूरे होते हैं फल के भीतर बीच में गुठली होती है जिसके चारों ओर मोटे मोटे रेशों की कथरियों में गूदेदार कोए रहते हैं। कोए पकने पर बड़े मोठे होते हैं। कोयों के भीतर बहुत पतली झिल्लियों में लपटे हुए बीज होते हैं । फल [[माघ]] [[फागुन]] में लगते और [[जेठ]] [[असाढ़]] में पकते हैं। | '''विशेष'''- इसकी अंडाकार पत्तियाँ 4-5 अंगुल लंबी, कड़ी मोटी और ऊपर की ओर श्यामता लिए हुए हरे रंग की होती हैं इसमें बड़े बड़े फल लगते हैं जिनकी लंबाई हाथ डेढ़ हाथ तक की और घेरा भी प्रायः इतना ही होता है ऊपर का छिलका बहुत मोटा होता है जिसपर बहुत से नुकीले कंगूरे होते हैं फल के भीतर बीच में गुठली होती है जिसके चारों ओर मोटे मोटे रेशों की कथरियों में गूदेदार कोए रहते हैं। कोए पकने पर बड़े मोठे होते हैं। कोयों के भीतर बहुत पतली झिल्लियों में लपटे हुए बीज होते हैं । फल [[माघ]] [[फागुन]] में लगते और [[जेठ]] [[असाढ़]] में पकते हैं। | ||
*कच्चे फल की तरकारी और प्रचार होते हैं और पके फल के कोए खाए जाते हैं कटहल नीचे से ऊपर तक फलता है, जड़ और तने में भी फल लगते हैं इसकी छाल से बड़ा लसीला दूध निकलता है जिससे [[रबर]] बन सकता है इसकी लकड़ी नाव और चौखट आदि बनाने के काम में आती है इसकी छाल और बुरादे को उबालने से [[पीला रंग|पीला]] [[रंग]] निकलता है जिससे बरमा के [[साधु]] अपना [[वस्त्र]] रंगते हैं। | *कच्चे फल की तरकारी और प्रचार होते हैं और पके फल के कोए खाए जाते हैं कटहल नीचे से ऊपर तक फलता है, जड़ और तने में भी फल लगते हैं इसकी छाल से बड़ा लसीला दूध निकलता है जिससे [[रबर]] बन सकता है इसकी लकड़ी नाव और चौखट आदि बनाने के काम में आती है इसकी छाल और बुरादे को उबालने से [[पीला रंग|पीला]] [[रंग]] निकलता है जिससे बरमा के [[साधु]] अपना [[वस्त्र]] रंगते हैं। | ||
Latest revision as of 05:18, 5 February 2023
- कटहल का पौधा एक सदाबहार 8 से 15 मीटर ऊँचा बढ़ने वाला, फैलावदार तथा घने छत्रक युक्त बहुशाखीय वृक्ष है, जो भारत का देशज हैं।[1]
- कटहल या फनस का वानस्पतिक नाम औनतिआरिस टोक्सिकारीआ है।
- कटहल के पत्ते 10 सेमी से लेकर 20 सेमी लम्बे कुछ चौड़े, किंचित अंडाकार और किंचित कालापनयुक्त हरे रंग के होते हैं।
- कटहल Moraceae (मोरेसी) कुल का है। कटहल को अंग्रेज़ी में Jackfruit (जैकफ्रूट) कहते हैं।
- एक सदा बहार घना पेड़ जो भारतवर्ष के सब गरम भागों में लगाया जाता है तथा पूर्वी और पश्चिमी घाटों की पहाड़ियों पर आपसे आप होता है
विशेष- इसकी अंडाकार पत्तियाँ 4-5 अंगुल लंबी, कड़ी मोटी और ऊपर की ओर श्यामता लिए हुए हरे रंग की होती हैं इसमें बड़े बड़े फल लगते हैं जिनकी लंबाई हाथ डेढ़ हाथ तक की और घेरा भी प्रायः इतना ही होता है ऊपर का छिलका बहुत मोटा होता है जिसपर बहुत से नुकीले कंगूरे होते हैं फल के भीतर बीच में गुठली होती है जिसके चारों ओर मोटे मोटे रेशों की कथरियों में गूदेदार कोए रहते हैं। कोए पकने पर बड़े मोठे होते हैं। कोयों के भीतर बहुत पतली झिल्लियों में लपटे हुए बीज होते हैं । फल माघ फागुन में लगते और जेठ असाढ़ में पकते हैं।
- कच्चे फल की तरकारी और प्रचार होते हैं और पके फल के कोए खाए जाते हैं कटहल नीचे से ऊपर तक फलता है, जड़ और तने में भी फल लगते हैं इसकी छाल से बड़ा लसीला दूध निकलता है जिससे रबर बन सकता है इसकी लकड़ी नाव और चौखट आदि बनाने के काम में आती है इसकी छाल और बुरादे को उबालने से पीला रंग निकलता है जिससे बरमा के साधु अपना वस्त्र रंगते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 749 |