जालौर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "विद्वान " to "विद्वान् ")
 
(4 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Jalore-Fort.jpg|thumb|250px|जालौर का क़िला]]
'''जालौर''' [[राजस्थान]] के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। जालौर पूर्व [[मध्यकाल]] का एक महत्त्वपूर्ण स्थल रहा है। महर्षि जाबालि की तपोभूमि जालौर को पहले जाबालिपुर कहते थे।
==इतिहास==
{{tocright}}
{{tocright}}
[[राजस्थान]] के दक्षिण-पश्चिम में स्थित जालौर पूर्व मध्यकाल का एक महत्त्वपूर्ण स्थल रहा है। महर्षि जाबालि की तपोभूमि जालौर को पहले जाबालिपुर कहते थे।
==इतिहास==
जालौर में सोनगरा चौहानों ने परमारों से जालौर को छीनकर अपनी राजधानी बनाया था। चौदहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहाँ का शासक कान्हड़देव था, जो एक शाक्तिशाली चौहान शासक था।  
जालौर में सोनगरा चौहानों ने परमारों से जालौर को छीनकर अपनी राजधानी बनाया था। चौदहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहाँ का शासक कान्हड़देव था, जो एक शाक्तिशाली चौहान शासक था।  
====<u>जालौर पर ख़िलजी का अधिकार</u>====
====जालौर पर ख़िलजी का अधिकार====
सन 1305 ई. में कान्हड़देव ने तुर्की आक्रमण को विफल बनाया था। ऐसी मान्यता है कि तुर्कों (ख़िलजी) से कान्हड़देव का कई वर्षों तक संघर्ष चलता रहा और अंत में इसी संघर्ष में कान्हड़देव मारा गया। इस प्रकार जालौर पर [[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]] का अधिकार हो गया। ठीक इसी के साथ ख़िलजी की [[राजपूताना]] की विजय यात्रा पूरी हुई। कान्हड़देव की वीरता की गाथाएँ आज भी [[मारवाड़]] के लोक जीवन में प्रतिध्वनित होती हैं।
सन 1305 ई. में कान्हड़देव ने तुर्की आक्रमण को विफल बनाया था। ऐसी मान्यता है कि तुर्कों (ख़िलजी) से कान्हड़देव का कई वर्षों तक संघर्ष चलता रहा और अंत में इसी संघर्ष में कान्हड़देव मारा गया। इस प्रकार जालौर पर [[ख़िलजी वंश|ख़िलजी]] का अधिकार हो गया। ठीक इसी के साथ ख़िलजी की [[राजपूताना]] की विजय यात्रा पूरी हुई। कान्हड़देव की वीरता की गाथाएँ आज भी [[मारवाड़]] के लोक जीवन में प्रतिध्वनित होती हैं।
==हिन्दू पद्धति==
==हिन्दू पद्धति==
जालौर का क़िला मारवाड़ के महत्त्वपूर्ण सुदृढ़ क़िलों में से एक है। आरम्भ में यह क़िला परमार शासकों के अधीन रहा। बाद में चौहानों और राठौड़ों का इस पर अधिकार रहा फिर यह मुसलमान शासकों के अधिकार में आ गया। यह क़िला हिन्दू पद्धति से बना है। क़िले में प्राचीन महल, कान्हड़देव की बावड़ी, वीरमदेव की चौकी, [[जैन]] मन्दिर और मल्लिकशाह की दरगाह आदि वास्तु शिल्प के मुख्य नमूने हैं। खगोल शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान ब्रह्मगुप्त इस क्षेत्र से सम्बद्ध रहे हैं।
जालौर का क़िला मारवाड़ के महत्त्वपूर्ण सुदृढ़ क़िलों में से एक है। आरम्भ में यह क़िला परमार शासकों के अधीन रहा। बाद में चौहानों और राठौड़ों का इस पर अधिकार रहा फिर यह मुसलमान शासकों के अधिकार में आ गया। यह क़िला [[हिन्दू]] पद्धति से बना है। क़िले में प्राचीन महल, कान्हड़देव की बावड़ी, वीरमदेव की चौकी, [[जैन]] मन्दिर और मल्लिकशाह की दरगाह आदि वास्तु शिल्प के मुख्य नमूने हैं। [[खगोल विज्ञान|खगोल शास्त्र]] के प्रकाण्ड विद्वान् ब्रह्मगुप्त इस क्षेत्र से सम्बद्ध रहे हैं।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
==संबंधित लेख==
{{राजस्थान के नगर}}
[[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान के नगर]][[Category:भारत के नगर]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 14:28, 6 July 2017

thumb|250px|जालौर का क़िला जालौर राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। जालौर पूर्व मध्यकाल का एक महत्त्वपूर्ण स्थल रहा है। महर्षि जाबालि की तपोभूमि जालौर को पहले जाबालिपुर कहते थे।

इतिहास

जालौर में सोनगरा चौहानों ने परमारों से जालौर को छीनकर अपनी राजधानी बनाया था। चौदहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहाँ का शासक कान्हड़देव था, जो एक शाक्तिशाली चौहान शासक था।

जालौर पर ख़िलजी का अधिकार

सन 1305 ई. में कान्हड़देव ने तुर्की आक्रमण को विफल बनाया था। ऐसी मान्यता है कि तुर्कों (ख़िलजी) से कान्हड़देव का कई वर्षों तक संघर्ष चलता रहा और अंत में इसी संघर्ष में कान्हड़देव मारा गया। इस प्रकार जालौर पर ख़िलजी का अधिकार हो गया। ठीक इसी के साथ ख़िलजी की राजपूताना की विजय यात्रा पूरी हुई। कान्हड़देव की वीरता की गाथाएँ आज भी मारवाड़ के लोक जीवन में प्रतिध्वनित होती हैं।

हिन्दू पद्धति

जालौर का क़िला मारवाड़ के महत्त्वपूर्ण सुदृढ़ क़िलों में से एक है। आरम्भ में यह क़िला परमार शासकों के अधीन रहा। बाद में चौहानों और राठौड़ों का इस पर अधिकार रहा फिर यह मुसलमान शासकों के अधिकार में आ गया। यह क़िला हिन्दू पद्धति से बना है। क़िले में प्राचीन महल, कान्हड़देव की बावड़ी, वीरमदेव की चौकी, जैन मन्दिर और मल्लिकशाह की दरगाह आदि वास्तु शिल्प के मुख्य नमूने हैं। खगोल शास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् ब्रह्मगुप्त इस क्षेत्र से सम्बद्ध रहे हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख