अफ़ग़ान: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
प्रीति चौधरी (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
*'''अफ़ग़ान''' उन पर्वतीय जन-जातियों के लिए प्रचलित शब्द, जो न केवल [[अफ़ग़ानिस्तान]] में बसती है, बल्कि पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्तों में भी रहती है। | *'''अफ़ग़ान''' उन पर्वतीय जन-जातियों के लिए प्रचलित शब्द, जो न केवल [[अफ़ग़ानिस्तान]] में बसती है, बल्कि पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्तों में भी रहती है। [[वंश]] अथवा प्राकृतिक दृष्टि से ये प्राय: [[तुर्क]]--[[ईरान|ईरानी]] हैं और [[भारत]] के निवासियों का भी काफी मिश्रण इनमे हुआ है। | ||
*[[इतिहास]] के आरम्भ काल से ही [[भारत]] के साथ इस दुर्धर्ष जाति के सम्बन्ध मित्रता के | * कुछ विद्धानो का मत है कि केवल [[दुर्रानी|दुर्रानी वर्ग]] के लोग ही सच्चे 'अफगान' हैं और वे उन बनी इसराइल फिरकों के वंशज हैं जिनको बादशाह नबूकद नज़ार फिलस्तीन से पकड़कर [[काबुल]] ले गया था। अफगानों के [[यहूदी |यहूदी]] फिरकों के वंशधर होने का आधार केवल यह है कि खाँजहाँ लोदी ने अपने इतिहास 'अमख़जने अफगानी' मे 16 वीं सदी मे इसका पहले पहल उल्लेख किया था। यह ग्रंथ [[जहाँगीर|बादशाह जहाँगीर]] के राज्यकाल में लिखा गया था। इससे पहले इसका कहीं उल्लेख नहीं पाया जाता। अफगान शब्द का प्रयोग [[अलबरूनी]] एवं उत्बी के समय, अर्थात् 10वीं शती के अंत से होना शुरू हुआ। दुर्रानी अफगानों के बनी इसराईल के वंशधर होने का दावा तो उसी परिपाटी का एक उदाहरण है जिसका प्रचलन [[मुसलमान|मुसलमानों]] में अपने को मुहम्मद के परिवार का अथवा अन्य किसी महान् व्यक्ति का वंशज बतलाने के लिए हो गया था। | ||
*भारत की सम्पदा पर लुब्ध होकर ये लोग व्यापारी और लुटेरे दोनों रूपों में भारत आते रहे। | [[चित्र:378-1.jpg|right|]] | ||
* यद्यपि [[अफगानिस्तान]] के [[दुर्रानी]] एवं अन्य निवासी अपने ही को वास्तविक अफगान मानते हैं तथा अन्य प्रदेशों के [[पठान|पठानों]] को अपने से भिन्न बतलाते हैं, तथापि यह धरणा असत्य एवं निस्सार है। वास्तव मे '[[पठान]]' शब्द ही इस जाति का सामूहिक जातिवाचक शब्द है। 'अफगान' शब्द तो केवल उन शिक्षित तथा सभ्य वर्गों में प्रयुक्त होने लगा है, जो अन्य पठानों की अपेक्षा उत्कृष्ट होने पर बड़ा गौरव करते हैं। | |||
* पठान शब्द 'पख़्तान' (ऋग्वैदिक पक्थान्) या 'पश्तान' शब्द का हिंदी रूपांतर है। [[पठान]] शब्द का प्रयोग पहले-पहल 16वीं शती में 'मख़ज़ने अफगानी' के रचचिता नियामतुल्ला ने किया था। परंतु, जैसा कहा जा चुका है, अफगान शब्द का प्रयोग बहुत पहले से होता आया था। | |||
*[[इतिहास]] के आरम्भ काल से ही [[भारत]] के साथ इस दुर्धर्ष जाति के सम्बन्ध मित्रता के बीज रहे हैं और शत्रुता के भी। | |||
*[[भारत]] की सम्पदा पर लुब्ध होकर ये लोग व्यापारी और लुटेरे दोनों रूपों में भारत आते रहे। | |||
*सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] पहला अफ़ग़ान सुल्तान था, जिसने भारत पर आक्रमण किया। | *सुल्तान [[महमूद ग़ज़नवी]] पहला अफ़ग़ान सुल्तान था, जिसने भारत पर आक्रमण किया। | ||
*[[शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] पहला अफ़ग़ान सुल्तान था, जिसने भारत में [[मुसलमान]] शासन की नींव डाली। | *[[शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] पहला अफ़ग़ान सुल्तान था, जिसने भारत में [[मुसलमान]] शासन की नींव डाली। | ||
Line 9: | Line 13: | ||
*[[शेरशाह सूरी]] ने दुबारा पठान राज्य स्थापित किया और [[पानीपत युद्ध द्वितीय|पानीपत की दूसरी लड़ाई]] को जीतकर [[अकबर]] ने उसे समाप्त कर दिया। | *[[शेरशाह सूरी]] ने दुबारा पठान राज्य स्थापित किया और [[पानीपत युद्ध द्वितीय|पानीपत की दूसरी लड़ाई]] को जीतकर [[अकबर]] ने उसे समाप्त कर दिया। | ||
*[[अकबर ख़ाँ]] ने प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध (1841-43) के दौरान अफ़ग़ानों को संगठित कर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के हमले का मुक़ाबला करने में ख़ास हिस्सा लिया था। | *[[अकबर ख़ाँ]] ने प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध (1841-43) के दौरान अफ़ग़ानों को संगठित कर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के हमले का मुक़ाबला करने में ख़ास हिस्सा लिया था। | ||
* अफगान जाति के लोगों के उत्तरपश्चिम के पहाड़ी प्रदेशों तथा आसपास की भूमि पर फैले होने के कारण, उनके चेहरे मोहरे और शरीर की बनावट में स्थानीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। तथापि सामान्य रूप वे उँचे कद के हृष्ट पुष्ट तथा प्राय: गोरे होते हैं। उनकी नाक लंबी एवं नोकदार, बाल भूरे और कभी--कभी आँखें कंजी पाई जाती हैं। | |||
* इन अफगानों या पठानों के विभिन्न वर्गों को एक सूत्र में बाँधनेवाली इनकी भाषा ''''पश्तो'''' है। इस बोली के समस्त बोलनेवाले, चाहे वे किसी कुल या जाति के हों, [[पठान]] कहलाते हैं। | |||
* समस्त अफगान एक सर्वमान्य अलिखित किंतु प्राचीन परंपरागत विधान के अनुयायी हैं। इस विधान का आदि स्रोत 'इब्रानी' है। परंतु उस पर मुस्लिम तथा भारतीय रीत्याचार का काफी प्रभाव पड़ा है। पठानों के कुछ नियम तथा सामाजिक प्रचलन [[राजपूत|राजपूतों]] से बहुत मिलते हैं। एक ओर [[अतिथि]] सत्कार, और दूसरी ओर शत्रु से भीषण प्रतिशोध, उनके जीवन के अंग हो गए हैं। ऊसर और सूखे पहाड़ी प्रदेशों के निवासी होने के कारण और निर्दय हो गए हैं। उनकी हिंस्र प्रवृत्ति धर्मांधता के कारण और भी उग्र हो गई है। किंतु उनके चरित्र में सौंदर्य तथा सद्गुणों की भी कमी नहीं है। वे बड़े वाक्चतुर, सामान्य परिस्थितियों में बड़े विनम्र और समझदार होते हैं। शायद उनके इन्हीं गुणों के कारण भारतीय स्वाधीनता संग्राम में [[महात्मा गांधी]] के प्रभाव से महामान्य अफगान नेता अब्दुल गफ्फार खाँ के नेतृत्व में समस्त [[पठान]] जनता के चरित्र में ऐसा [[मौलिक]] एवं आश्चर्यजनक परिवर्तन हुआ कि वह '[[अहिंसा]]' की सच्ची व्राती बन गई। इन अफगानों में ऐसा परिवर्तन होना [[इतिहास]] की एक अपूर्व एवं अनुपम घटना है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=150,151 |url=}}</ref> | |||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
Line 23: | Line 32: | ||
{{विदेशी जातियाँ}} | {{विदेशी जातियाँ}} | ||
[[Category:विदेशी जातियाँ]] | [[Category:विदेशी जातियाँ]] | ||
[[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:इतिहास कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 06:16, 27 May 2018
- अफ़ग़ान उन पर्वतीय जन-जातियों के लिए प्रचलित शब्द, जो न केवल अफ़ग़ानिस्तान में बसती है, बल्कि पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्तों में भी रहती है। वंश अथवा प्राकृतिक दृष्टि से ये प्राय: तुर्क--ईरानी हैं और भारत के निवासियों का भी काफी मिश्रण इनमे हुआ है।
- कुछ विद्धानो का मत है कि केवल दुर्रानी वर्ग के लोग ही सच्चे 'अफगान' हैं और वे उन बनी इसराइल फिरकों के वंशज हैं जिनको बादशाह नबूकद नज़ार फिलस्तीन से पकड़कर काबुल ले गया था। अफगानों के यहूदी फिरकों के वंशधर होने का आधार केवल यह है कि खाँजहाँ लोदी ने अपने इतिहास 'अमख़जने अफगानी' मे 16 वीं सदी मे इसका पहले पहल उल्लेख किया था। यह ग्रंथ बादशाह जहाँगीर के राज्यकाल में लिखा गया था। इससे पहले इसका कहीं उल्लेख नहीं पाया जाता। अफगान शब्द का प्रयोग अलबरूनी एवं उत्बी के समय, अर्थात् 10वीं शती के अंत से होना शुरू हुआ। दुर्रानी अफगानों के बनी इसराईल के वंशधर होने का दावा तो उसी परिपाटी का एक उदाहरण है जिसका प्रचलन मुसलमानों में अपने को मुहम्मद के परिवार का अथवा अन्य किसी महान् व्यक्ति का वंशज बतलाने के लिए हो गया था।
- यद्यपि अफगानिस्तान के दुर्रानी एवं अन्य निवासी अपने ही को वास्तविक अफगान मानते हैं तथा अन्य प्रदेशों के पठानों को अपने से भिन्न बतलाते हैं, तथापि यह धरणा असत्य एवं निस्सार है। वास्तव मे 'पठान' शब्द ही इस जाति का सामूहिक जातिवाचक शब्द है। 'अफगान' शब्द तो केवल उन शिक्षित तथा सभ्य वर्गों में प्रयुक्त होने लगा है, जो अन्य पठानों की अपेक्षा उत्कृष्ट होने पर बड़ा गौरव करते हैं।
- पठान शब्द 'पख़्तान' (ऋग्वैदिक पक्थान्) या 'पश्तान' शब्द का हिंदी रूपांतर है। पठान शब्द का प्रयोग पहले-पहल 16वीं शती में 'मख़ज़ने अफगानी' के रचचिता नियामतुल्ला ने किया था। परंतु, जैसा कहा जा चुका है, अफगान शब्द का प्रयोग बहुत पहले से होता आया था।
- इतिहास के आरम्भ काल से ही भारत के साथ इस दुर्धर्ष जाति के सम्बन्ध मित्रता के बीज रहे हैं और शत्रुता के भी।
- भारत की सम्पदा पर लुब्ध होकर ये लोग व्यापारी और लुटेरे दोनों रूपों में भारत आते रहे।
- सुल्तान महमूद ग़ज़नवी पहला अफ़ग़ान सुल्तान था, जिसने भारत पर आक्रमण किया।
- शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी पहला अफ़ग़ान सुल्तान था, जिसने भारत में मुसलमान शासन की नींव डाली।
- दिल्ली के जिन सुल्तानों ने 1200 से 1526 ई. तक यहाँ राज्य किया।, वे सभी अफ़ग़ान अथवा पठान पुकारे जाते थे। लेकिन उनमें से अधिकांश तुर्की थे।
- केवल लोदी राजवंश के सुल्तान (1450-1526 ई.) ही असल पठान थे।
- प्रथम मुग़ल बादशाह बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में भारत से पठान शासन का अन्त कर दिया।
- शेरशाह सूरी ने दुबारा पठान राज्य स्थापित किया और पानीपत की दूसरी लड़ाई को जीतकर अकबर ने उसे समाप्त कर दिया।
- अकबर ख़ाँ ने प्रथम आंग्ल-अफ़ग़ान युद्ध (1841-43) के दौरान अफ़ग़ानों को संगठित कर अंग्रेज़ों के हमले का मुक़ाबला करने में ख़ास हिस्सा लिया था।
- अफगान जाति के लोगों के उत्तरपश्चिम के पहाड़ी प्रदेशों तथा आसपास की भूमि पर फैले होने के कारण, उनके चेहरे मोहरे और शरीर की बनावट में स्थानीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। तथापि सामान्य रूप वे उँचे कद के हृष्ट पुष्ट तथा प्राय: गोरे होते हैं। उनकी नाक लंबी एवं नोकदार, बाल भूरे और कभी--कभी आँखें कंजी पाई जाती हैं।
- इन अफगानों या पठानों के विभिन्न वर्गों को एक सूत्र में बाँधनेवाली इनकी भाषा 'पश्तो' है। इस बोली के समस्त बोलनेवाले, चाहे वे किसी कुल या जाति के हों, पठान कहलाते हैं।
- समस्त अफगान एक सर्वमान्य अलिखित किंतु प्राचीन परंपरागत विधान के अनुयायी हैं। इस विधान का आदि स्रोत 'इब्रानी' है। परंतु उस पर मुस्लिम तथा भारतीय रीत्याचार का काफी प्रभाव पड़ा है। पठानों के कुछ नियम तथा सामाजिक प्रचलन राजपूतों से बहुत मिलते हैं। एक ओर अतिथि सत्कार, और दूसरी ओर शत्रु से भीषण प्रतिशोध, उनके जीवन के अंग हो गए हैं। ऊसर और सूखे पहाड़ी प्रदेशों के निवासी होने के कारण और निर्दय हो गए हैं। उनकी हिंस्र प्रवृत्ति धर्मांधता के कारण और भी उग्र हो गई है। किंतु उनके चरित्र में सौंदर्य तथा सद्गुणों की भी कमी नहीं है। वे बड़े वाक्चतुर, सामान्य परिस्थितियों में बड़े विनम्र और समझदार होते हैं। शायद उनके इन्हीं गुणों के कारण भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महात्मा गांधी के प्रभाव से महामान्य अफगान नेता अब्दुल गफ्फार खाँ के नेतृत्व में समस्त पठान जनता के चरित्र में ऐसा मौलिक एवं आश्चर्यजनक परिवर्तन हुआ कि वह 'अहिंसा' की सच्ची व्राती बन गई। इन अफगानों में ऐसा परिवर्तन होना इतिहास की एक अपूर्व एवं अनुपम घटना है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 150,151 |