कुषाण वंश: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति")
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
Line 34: Line 34:
}}
}}


{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

Revision as of 08:48, 21 March 2011

युइशि लोगों के पाँच राज्यों में अन्यतम का कुएई-शुआंगा था। 25 ई. पू. के लगभग इस राज्य का स्वामी कुषाण नाम का वीर पुरुष हुआ, जिसके शासन में इस राज्य की बहुत उन्नति हुई। उसने धीरे-धीरे अन्य युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया। वह केवल युइशि राज्यों को जीतकर ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु उसने समीप के पार्थियन और शक राज्यों पर भी आक्रमण किए। अनेक ऐतिहासिकों का मत है, कि कुषाण किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था। यह नाम युइशि जाति की उस शाखा का था, जिसने अन्य चारों युइशि राज्यों को जीतकर अपने अधीन कर लिया था। जिस राजा ने पाँचों युइशि राज्यों को मिलाकर अपनी शक्ति का उत्कर्ष किया, उसका अपना नाम कुजुल कदफ़ियस था। पर्याप्त प्रमाण के अभाव में यह निश्चित कर सकना कठिन है कि जिस युइशि वीर ने अपनी जाति के विविध राज्यों को जीतकर एक सूत्र में संगठित किया, उसका वैयक्तिक नाम कुषाण था या कुजुल था। यह असंदिग्ध है, कि बाद के युइशि राजा भी कुषाण वंशी थे। राजा कुषाण के वंशज होने के कारण वे कुषाण कहलाए, या युइशि जाति की कुषाण शाखा में उत्पन्न होने के कारण—यह निश्चित न होने पर भी इसमें सन्देह नहीं कि ये राजा कुषाण कहाते थे और इन्हीं के द्वारा स्थापित साम्राज्य को कुषाण साम्राज्य कहा जाता है।

कुषाण भी शकों की ही तरह मध्य एशिया से निकाले जाने पर क़ाबुल-कंधार की ओर यहाँ आ गये थे। उस काल में यहाँ के हिन्दी यूनानियों की शक्ति कम हो गई थी, उन्हें कुषाणों ने सरलता से पराजित कर दिया। उसके बाद उन्होंने क़ाबुल-कंधार पर अपना राज्याधिकार कायम किया। उनके प्रथम राजा का नाम कुजुल कडफाइसिस था। उसने क़ाबुल – कंधार के यवनों (हिन्दी यूनानियों) को हरा कर भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर बसे हुए पह्लवों को भी पराजित कर दिया। कुषाणों का शासन पश्चिमी पंजाब तक हो गया था। कुजुल के पश्चात उसके पुत्र विम तक्षम ने कुषाण राज्य का और भी अधिक विस्तार किया। भारत की तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति का लाभ उठा कर ये लोग आगे बढ़े और उन्होंने हिंद यूनानी शासकों की शक्ति को कमज़ोर कर शुंग साम्राज्य के पश्चिमी भाग को अपने अधिकार में कर लिया। विजित प्रदेश का केन्द्र उन्होंने मथुरा को बनाया, जो उस समय उत्तर भारत के धर्म, कला तथा व्यापारिक यातायात का एक प्रमुख नगर था।[1]

कुषाण वंश

कुषाण वंश (लगभग 1 ई. से 225 तक) ई. सन् के आरंभ से शकों की कुषाण नामक एक शाखा का प्रारम्भ हुआ। विद्वानों ने इन्हें युइशि, तुरूश्क (तुखार) नाम दिया है । युइशि जाति प्रारम्भ में मध्य एशिया में थी। वहाँ से निकाले जाने पर ये लोग कम्बोज-बाह्यीक में आकर बस गये और वहाँ की सभ्यता से प्रभावित रहे। हिंदुकुश को पार कर वे चितराल देश के पश्चिम से उत्तरी स्वात और हज़ारा के रास्ते आगे बढ़ते रहे। तुखार प्रदेश की उनकी पाँच रियासतों पर उनका अधिकार हो गया। ई. पूर्व प्रथम शती में कुषाणों ने यहाँ की सभ्यता को अपनाया। कुषाण वंश के जो शासक थे उनके नाम इस प्रकार है-

  1. कुजुल कडफ़ाइसिस
  2. विम तक्षम
  3. विम कडफ़ाइसिस
  4. कनिष्क
  5. राजा वासिष्क
  6. कनिष्क द्वितीय
  7. हुविष्क
  8. वासुदेव कुषाण

कुजुल कडफाइसिस

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

कुषाणों के एक सरदार का नाम कुजुल कडफाइसिस था । उसने क़ाबुल और कन्दहार पर अधिकार कर लिया । पूर्व में यूनानी शासकों की शक्ति कमज़ोर हो गई थी, कुजुल ने इस का लाभ उठा कर अपना प्रभाव यहाँ बढ़ाना शुरू कर दिया । पह्लवों को पराजित कर उसने अपने शासन का विस्तार पंजाब के पश्चिम तक स्थापित कर लिया। मथुरा में इस शासक के तांबे के कुछ सिक्के प्राप्त हुए है । [[चित्र:Vima Taktu.jpg|thumb|100px|विम तक्षम]]

विम तक्षम

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

विम तक्षम लगभग 60 ई. से 105 ई. के समय में शासक हुआ होगा। विम बड़ा शक्तिशाली शासक था। अपने पिता कुजुल के द्वारा विजित राज्य के अतिरिक्त विम ने पूर्वी उत्तर प्रदेश तक अपने राज्य की सीमा स्थापित कर ली। विम ने राज्य की पूर्वी सीमा बनारस तक बढा ली। इस विस्तृत राज्य का प्रमुख केन्द्र मथुरा नगर बना। विम के बनाये सिक्के बनारस से लेकर पंजाब तक बहुत बड़ी मात्रा में मिले है।

कनिष्क

[[चित्र:kanishk.jpg|thumb|100px|कनिष्क]]

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

कनिष्क कुषाण वंश का प्रमुख सम्राट कनिष्क भारतीय इतिहास में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, साहित्य तथा कला का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। कुमारलात की कल्पनामंड टीका के अनुसार इसने भारतविजय के पश्चात मध्य एशिया में खोतान जीता और वहीं पर राज्य करने लगा। इसके लेख पेशावर, माणिक्याल (रावलपिंडी), सुयीविहार (बहावलपुर), जेदा (रावलपिंडी), मथुरा, कौशांबी तथा सारनाथ में मिले हैं, और इसके सिक्के सिंध से लेकर बंगाल तक पाए गए हैं। कल्हण ने भी अपनी 'राजतरंगिणी' में कनिष्क, झुष्क और हुष्क द्वारा कश्मीर पर राज्य तथा वहाँ अपने नाम पर नगर बसाने का उल्लेख किया है। इनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सम्राट कनिष्क का राज्य कश्मीर से उत्तरी सिंध तथा पेशावर से सारनाथ के आगे तक फैला था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संभवतः इसी समय से जनपद का नाम भी शूरसेन के स्थान पर 'मथुरा' प्रसिद्ध हो गया।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख