बानगंगा नदी: Difference between revisions

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रामगढ़ में बानगंगा के तट पर वैरांट के प्राचीन खंडहरों की स्थिति है, जो महत्त्वपूर्ण है। लोक कथाओं के अनुसार यहाँ एक समय प्राचीन [[वाराणसी]] बसी थी। सबसे पहले वैरांट के खंडहरों की जांच पड़ताल ए.सी.एल. कार्लाईल 2 ने की। वैरांट की स्थिति [[गंगा]] के दक्षिण में सैदपुर से दक्षिण-पूर्व में और वाराणसी के उत्तर-पूर्व में क़रीब 16 मील और गाजीपुर के दक्षिण-पश्चिम क़रीब 12 मील है। वैरांट के खंडहर बानगंगा के बर्तुलाकार दक्षिण-पूर्वी किनारे पर हैं।
रामगढ़ में बानगंगा के तट पर वैरांट के प्राचीन खंडहरों की स्थिति है, जो महत्त्वपूर्ण है। लोक कथाओं के अनुसार यहाँ एक समय प्राचीन [[वाराणसी]] बसी थी। सबसे पहले वैरांट के खंडहरों की जांच पड़ताल ए.सी.एल. कार्लाईल 2 ने की। वैरांट की स्थिति [[गंगा]] के दक्षिण में सैदपुर से दक्षिण-पूर्व में और वाराणसी के उत्तर-पूर्व में क़रीब 16 मील और [[गाजीपुर]] के दक्षिण-पश्चिम क़रीब 12 मील है। वैरांट के खंडहर बानगंगा के बर्तुलाकार दक्षिण-पूर्वी किनारे पर हैं।


इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि प्राचीन काल में बरह शाखा के सिवा गंगा की कोई दूसरी धारा थी। लेकिन इस बात का प्रमाण है कि गंगा की धारा प्राचीन काल में दूसरी ही तरह से बहती थी। परगना [[कटेहर]] में कैथ के पास की चचरियों से ऐसा लगता है कि इन्हीं कंकरीले करारों की वजह से नदी एक समय दक्षिण की ओर घूम जाती थी। गंगा की इस प्राचीन धारा के बहाव का पता हमें बानगंगा से मिलता है जो बरसात में भर जाती है। बानगंगा टांडा से शुरू होकर दक्षिण की ओर छ: मील तक महुवारी की ओर जाती है, फिर पूर्व की ओर रसूलपुर तक, अन्त में उत्तर में रामगढ़ को पार करती हुई वह हसनपुर (सैयदपुर के सामने) तक जाती है। गंगा की धार का यह रुख जिस समय था गंगा की वर्तमान धारा में उस समय गोमती बहती थी जो गंगा में सैयदपुर के पास मिल जाती थी। कैथी और टांडा के बीच में कंकरीले करारे को गंगा ने कब तोड़ा इसका पता यहाँ की ज़मीन की बनावट से लगता है। इस स्थान पर नदी का पाट दूसरी जगहों की उपेक्षा जहां नदी ने अपना पाट नहीं बदला है, बहुत कम चौड़ा है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि किसी समय यह किसी बड़ी नदी का पाट था। इस मत की पुष्टि वैरांट की लोक कथाओं से भी होती है। जनश्रुति यह है कि [[शान्तनु]] ने बानगंगा को काशिराज की कन्या के स्वयंवर के अवसर पर पृथ्वी फोड़कर निकाला। उस समय काशिराज की राजधानी रामगढ़ थी। अगर किसी समय राजप्रसाद रामगढ़ में था तो वह गंगा पर रहा होगा और इस तरह इस लोक कथा के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि एक समय गंगा रामगढ़ से होकर बहती थी।
इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि प्राचीन काल में बरह शाखा के सिवा गंगा की कोई दूसरी धारा थी। लेकिन इस बात का प्रमाण है कि गंगा की धारा प्राचीन काल में दूसरी ही तरह से बहती थी। परगना [[कटेहर]] में कैथ के पास की चचरियों से ऐसा लगता है कि इन्हीं कंकरीले करारों की वजह से नदी एक समय दक्षिण की ओर घूम जाती थी। गंगा की इस प्राचीन धारा के बहाव का पता हमें बानगंगा से मिलता है जो बरसात में भर जाती है। बानगंगा टांडा से शुरू होकर दक्षिण की ओर छ: मील तक महुवारी की ओर जाती है, फिर पूर्व की ओर रसूलपुर तक, अन्त में उत्तर में रामगढ़ को पार करती हुई वह हसनपुर (सैयदपुर के सामने) तक जाती है। गंगा की धार का यह रुख जिस समय था गंगा की वर्तमान धारा में उस समय गोमती बहती थी जो गंगा में सैयदपुर के पास मिल जाती थी। कैथी और टांडा के बीच में कंकरीले करारे को गंगा ने कब तोड़ा इसका पता यहाँ की ज़मीन की बनावट से लगता है। इस स्थान पर नदी का पाट दूसरी जगहों की उपेक्षा जहां नदी ने अपना पाट नहीं बदला है, बहुत कम चौड़ा है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि किसी समय यह किसी बड़ी नदी का पाट था। इस मत की पुष्टि वैरांट की लोक कथाओं से भी होती है। जनश्रुति यह है कि [[शान्तनु]] ने बानगंगा को काशिराज की कन्या के स्वयंवर के अवसर पर पृथ्वी फोड़कर निकाला। उस समय काशिराज की राजधानी रामगढ़ थी। अगर किसी समय राजप्रसाद रामगढ़ में था तो वह गंगा पर रहा होगा और इस तरह इस लोक कथा के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि एक समय गंगा रामगढ़ से होकर बहती थी।

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[[चित्र:Ganga-River-Varanasi-5.jpg|thumb|250px|गंगा नदी, वाराणसी]] रामगढ़ में बानगंगा के तट पर वैरांट के प्राचीन खंडहरों की स्थिति है, जो महत्त्वपूर्ण है। लोक कथाओं के अनुसार यहाँ एक समय प्राचीन वाराणसी बसी थी। सबसे पहले वैरांट के खंडहरों की जांच पड़ताल ए.सी.एल. कार्लाईल 2 ने की। वैरांट की स्थिति गंगा के दक्षिण में सैदपुर से दक्षिण-पूर्व में और वाराणसी के उत्तर-पूर्व में क़रीब 16 मील और गाजीपुर के दक्षिण-पश्चिम क़रीब 12 मील है। वैरांट के खंडहर बानगंगा के बर्तुलाकार दक्षिण-पूर्वी किनारे पर हैं।

इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि प्राचीन काल में बरह शाखा के सिवा गंगा की कोई दूसरी धारा थी। लेकिन इस बात का प्रमाण है कि गंगा की धारा प्राचीन काल में दूसरी ही तरह से बहती थी। परगना कटेहर में कैथ के पास की चचरियों से ऐसा लगता है कि इन्हीं कंकरीले करारों की वजह से नदी एक समय दक्षिण की ओर घूम जाती थी। गंगा की इस प्राचीन धारा के बहाव का पता हमें बानगंगा से मिलता है जो बरसात में भर जाती है। बानगंगा टांडा से शुरू होकर दक्षिण की ओर छ: मील तक महुवारी की ओर जाती है, फिर पूर्व की ओर रसूलपुर तक, अन्त में उत्तर में रामगढ़ को पार करती हुई वह हसनपुर (सैयदपुर के सामने) तक जाती है। गंगा की धार का यह रुख जिस समय था गंगा की वर्तमान धारा में उस समय गोमती बहती थी जो गंगा में सैयदपुर के पास मिल जाती थी। कैथी और टांडा के बीच में कंकरीले करारे को गंगा ने कब तोड़ा इसका पता यहाँ की ज़मीन की बनावट से लगता है। इस स्थान पर नदी का पाट दूसरी जगहों की उपेक्षा जहां नदी ने अपना पाट नहीं बदला है, बहुत कम चौड़ा है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि किसी समय यह किसी बड़ी नदी का पाट था। इस मत की पुष्टि वैरांट की लोक कथाओं से भी होती है। जनश्रुति यह है कि शान्तनु ने बानगंगा को काशिराज की कन्या के स्वयंवर के अवसर पर पृथ्वी फोड़कर निकाला। उस समय काशिराज की राजधानी रामगढ़ थी। अगर किसी समय राजप्रसाद रामगढ़ में था तो वह गंगा पर रहा होगा और इस तरह इस लोक कथा के आधार पर भी यह कहा जा सकता है कि एक समय गंगा रामगढ़ से होकर बहती थी।


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