पयस्विनी नदी

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'ताम्रपर्णी नदी यत्र कृतमाला पयस्विनी
कावेरी च महापुण्या प्रतीची च महानदी'।[1]

'लषण दीख पय उतर करारा
चहुं-दिशि फिरयों धनुष जिमि नारा'।

इसकी टीका में 'पय' का अर्थ करते हुए कुछ टीकाकारों ने पयस्विनी नदी का निर्देश किया है।

  • वाल्मीकि ने चित्रकूट के वर्णन में मुख्य नदी मंदाकिनी का ही वर्णन किया है। वास्तव में पयस्विनी मंदाकिनी की उपशाखा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीमद्भागवत , 11,5,39-40
  2. श्रीमद्भागवत, 5,19,18

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