पंढरपुर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Pandharpur.jpg|thumb|250px|पंढरपुर, [[महाराष्ट्र]]]]
[[चित्र:Pandharpur.jpg|thumb|250px|पंढरपुर, [[महाराष्ट्र]]]]
'''पंढरपुर''' नगर [[पश्चिमी भारत]] के दक्षिणी [[महाराष्ट्र]] राज्य में [[भीमा नदी]]<ref>घुमावदार बहाव के कारण यहाँ चंद्रभागा कहलाती है।</ref> के [[तट]] पर [[सोलापुर]] नगर के पश्चिम में स्थित है।  
'''पंढरपुर''' [[महाराष्ट्र]] राज्य का एक नगर और प्रसिद्ध [[तीर्थ स्थान]] है। यह [[पश्चिमी भारत]] के दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में [[भीमा नदी]]<ref>यहाँ भीमा नदी अपने घुमावदार बहाव के कारण '[[चन्द्रभागा नदी|चन्द्रभागा]]' कहलाती है।</ref> के [[तट]] पर [[सोलापुर]] नगर के पश्चिम में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार [[भक्त|भक्तराज]] पुंडलीक के स्मारक के रूप में यहाँ का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में विठोबा के रूप में भगवान [[श्रीकृष्ण]] की [[पूजा]] की जाती है।
====धार्मिक स्थल====
====धार्मिक स्थल====
सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहां साल भर हज़ारों [[हिंदू]] तीर्थयात्री आते हैं। भगवान [[विष्णु के अवतार]] बिठोबा और उनकी पत्नी [[रुक्मिणी]] के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित [[मराठी भाषा|मराठी]] [[कवि]] संतों की भूमि भी है।  
शोलापुर से 38 मील {{मील|मील=38}} पश्चिम की ओर चंद्रभागा अथवा भीमा नदी के तट पर महाराष्ट्र का शायद यह सबसे बड़ा तीर्थ है। 11वीं शती में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी। सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहाँ साल भर हज़ारों [[हिंदू]] तीर्थयात्री आते हैं। भगवान [[विष्णु के अवतार]] बिठोबा और उनकी पत्नी [[रुक्मिणी]] के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में [[देवगिरि का यादव वंश|देवगिरि के यादव]] शासकों द्वारा कराया गया था। यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित [[मराठी भाषा|मराठी]] [[कवि]] संतों की भूमि भी है।  
==इतिहास==
1159 शकाब्द<ref>= 1081 ई.</ref> के एक [[शिलालेख]] में जो यहाँ से प्राप्त हुआ था, 'पंडरिगे' क्षेत्र के ग्राम निवासियों के द्वारा वर्षाशन दिये जाने का उल्लेख है। 1195 शकाब्द<ref>= 1117 ई.</ref> के दूसरे शिलालेख में पंढरपुर के मंदिर के लिए दिए गए गद्यानों (सुवर्ण मुद्राओं) का वर्णन है। इन दानियों में [[कर्नाटक]], तेलंगाना, [[पैठान]], [[विदर्भ]] आदि के निवासियों के नाम हैं।


भक्त पुण्ढरीक की भक्ति से रीझकर भगवान जब सामने प्रकट हुए तो भक्त ने उनके बैठने के लिए ईंट (विट) धर दी (थल)। इससे भगवान का नाम विट्ठल पड़ गया। [[देवशयनी एकादशी|देवशयनी]] और [[देवोत्थान एकादशी]] को बारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही वारी देना कहते हैं। भक्त पुण्ढरीक इस धाम के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं। संत [[तुकाराम]], [[ज्ञानेश्वर]], [[संत नामदेव|नामदेव]], राँका-बाँका, नरहरि आदि भक्तों की यह निवास स्थली रही है। पण्ढरपुर [[भीमा नदी]] के [[तट]] पर है, जिसे यहाँ चन्द्रभागा भी कहते हैं।
वास्तव में पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यह मंदिर बना हुआ है। इसके अधिष्ठाता विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण है, जिन्होंने [[भक्त]] पुंडलीक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था। कहा जाता है कि [[विजयनगर साम्राज्य|विजयनगर]] नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गया था, किन्तु फिर वह एक महाराष्ट्रीय भक्त के द्वारा पंढरपुर वापस ले जाई गई। 1117 ई. के एक [[अभिलेख]] से यह भी सिद्ध होता है कि भागवत संप्रदाय के अंतर्गत वारकरी ग्रंथ के भक्तों ने विट्ठलदेव के पूजनार्थ पर्याप्त धनराशि एकत्र की थी। इस मंडल के अध्यक्ष थे रामदेव राय जाधव।<ref>([[मराठी भाषा|मराठी]] वांड्मया च्या इतिहास, प्रथम खंड, पृष्ठ 334-351)</ref>
 
पंढरपुर की यात्रा आज कल [[आषाढ़ मास|आषाढ़]] में तथा [[कार्तिक मास|कार्तिक]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[एकादशी]] को होती है। [[देवशयनी एकादशी|देवशयनी]] और [[देवोत्थान एकादशी]] को बारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। भक्त पुण्ढरीक इस धाम के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं। संत [[तुकाराम]], [[ज्ञानेश्वर]], [[संत नामदेव|नामदेव]], राँका-बाँका, नरहरि आदि भक्तों की यह निवास स्थली रही है। पण्ढरपुर [[भीमा नदी]] के [[तट]] पर है, जिसे यहाँ चन्द्रभागा भी कहते हैं।
====जनसंख्या ====
====जनसंख्या ====
2001 की जनगणना के अनुसार पंढरपुर की जनसंख्या 91,381 है।
[[2001]] की जनगणना के अनुसार पंढरपुर की जनसंख्या 91,381 है।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Revision as of 06:12, 7 June 2012

[[चित्र:Pandharpur.jpg|thumb|250px|पंढरपुर, महाराष्ट्र]] पंढरपुर महाराष्ट्र राज्य का एक नगर और प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह पश्चिमी भारत के दक्षिणी महाराष्ट्र राज्य में भीमा नदी[1] के तट पर सोलापुर नगर के पश्चिम में स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यहाँ का मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में विठोबा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।

धार्मिक स्थल

शोलापुर से 38 मील (लगभग 60.8 कि.मी.) पश्चिम की ओर चंद्रभागा अथवा भीमा नदी के तट पर महाराष्ट्र का शायद यह सबसे बड़ा तीर्थ है। 11वीं शती में इस तीर्थ की स्थापना हुई थी। सड़क और रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचने योग्य पंढरपुर एक धार्मिक स्थल है, जहाँ साल भर हज़ारों हिंदू तीर्थयात्री आते हैं। भगवान विष्णु के अवतार बिठोबा और उनकी पत्नी रुक्मिणी के सम्मान में इस शहर में वर्ष में चार बार त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरि के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। यह शहर भक्ति संप्रदाय को समर्पित मराठी कवि संतों की भूमि भी है।

इतिहास

1159 शकाब्द[2] के एक शिलालेख में जो यहाँ से प्राप्त हुआ था, 'पंडरिगे' क्षेत्र के ग्राम निवासियों के द्वारा वर्षाशन दिये जाने का उल्लेख है। 1195 शकाब्द[3] के दूसरे शिलालेख में पंढरपुर के मंदिर के लिए दिए गए गद्यानों (सुवर्ण मुद्राओं) का वर्णन है। इन दानियों में कर्नाटक, तेलंगाना, पैठान, विदर्भ आदि के निवासियों के नाम हैं।

वास्तव में पौराणिक कथाओं के अनुसार भक्तराज पुंडलीक के स्मारक के रूप में यह मंदिर बना हुआ है। इसके अधिष्ठाता विठोबा के रूप में श्रीकृष्ण है, जिन्होंने भक्त पुंडलीक की पितृभक्ति से प्रसन्न होकर उसके द्वारा फेंके हुए एक पत्थर (विठ या ईंट) को ही सहर्ष अपना आसन बना लिया था। कहा जाता है कि विजयनगर नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गया था, किन्तु फिर वह एक महाराष्ट्रीय भक्त के द्वारा पंढरपुर वापस ले जाई गई। 1117 ई. के एक अभिलेख से यह भी सिद्ध होता है कि भागवत संप्रदाय के अंतर्गत वारकरी ग्रंथ के भक्तों ने विट्ठलदेव के पूजनार्थ पर्याप्त धनराशि एकत्र की थी। इस मंडल के अध्यक्ष थे रामदेव राय जाधव।[4]

पंढरपुर की यात्रा आज कल आषाढ़ में तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को होती है। देवशयनी और देवोत्थान एकादशी को बारकरी सम्प्रदाय के लोग यहाँ यात्रा करने के लिए आते हैं। यात्रा को ही 'वारी देना' कहते हैं। भक्त पुण्ढरीक इस धाम के प्रतिष्ठाता माने जाते हैं। संत तुकाराम, ज्ञानेश्वर, नामदेव, राँका-बाँका, नरहरि आदि भक्तों की यह निवास स्थली रही है। पण्ढरपुर भीमा नदी के तट पर है, जिसे यहाँ चन्द्रभागा भी कहते हैं।

जनसंख्या

2001 की जनगणना के अनुसार पंढरपुर की जनसंख्या 91,381 है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यहाँ भीमा नदी अपने घुमावदार बहाव के कारण 'चन्द्रभागा' कहलाती है।
  2. = 1081 ई.
  3. = 1117 ई.
  4. (मराठी वांड्मया च्या इतिहास, प्रथम खंड, पृष्ठ 334-351)

संबंधित लेख