कैमूर पहाड़ियाँ: Difference between revisions

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*यहाँ यह [[सोन नदी|सोन]] और [[टोन्स नदी|टोन्स]] नदियों की घाटियों को विभक्त करती हुई [[उत्तर प्रदेश]] के [[मिर्ज़ापुर ज़िला|मिर्ज़ापुर ज़िले]] और बिहार के [[शाहाबाद]] तक जाती है।  
*इसकी अधिकतम चौड़ाई 80 किलोमीटर है।  
*इसकी अधिकतम चौड़ाई 80 किलोमीटर है।  
*मध्य प्रदेश में इस पर्वत श्रेणी का विशिष्ट स्वरूप है। जहाँ रूपान्तरित चट्टानें और ऐसी परतदार चट्टानें हैं, जो अनेक उतार-चढ़ाव से गुज़री है। ये परतें लगभग ऊर्ध्वाधर हैं, जो इसे चाकू की धारनुमा नुकीले स्कन्ध का स्वरूप प्रदान करते हैं। कई स्थानों पर ये लगभग ग़ायब हो जाती हैं और सिर्फ़ निचली शैल श्रृंखला के रूप में ही इसके चिह्न दिखाई देते हैं।  
*मध्य प्रदेश में इस पर्वत श्रेणी का विशिष्ट स्वरूप है। जहाँ रूपान्तरित चट्टानें और ऐसी परतदार चट्टानें हैं, जो अनेक उतार-चढ़ाव से गुज़री है। ये परतें लगभग ऊर्ध्वाधर हैं, जो इसे चाकू की धारनुमा नुकीले स्कन्ध का स्वरूप प्रदान करते हैं। कई स्थानों पर ये लगभग ग़ायब हो जाती हैं और सिर्फ़ निचली शैल शृंखला के रूप में ही इसके चिह्न दिखाई देते हैं।  
*यह श्रेणी मैदान से कभी भी कुछ सौ मीटर से अधिक ऊँची नहीं जाती है।  
*यह श्रेणी मैदान से कभी भी कुछ सौ मीटर से अधिक ऊँची नहीं जाती है।  
*इन पहाड़ियों में रोहतास दुर्ग के [[भग्नावशेष]] स्थित हैं।  
*इन पहाड़ियों में रोहतास दुर्ग के [[भग्नावशेष]] स्थित हैं।  

Revision as of 10:37, 29 June 2013

कैमूर पहाड़ियाँ, विंध्य पर्वतश्रेणी का पूर्वी हिस्सा है, जो मध्य प्रदेश के जबलपुर ज़िले के पास कटंगी से शुरू होता है।

  • यह पूर्व से किंचित उत्तर दिशा में बिहार में सासाराम तक लगभग 483 किलोमीटर से भी अधिक फैला हुआ है।
  • जबलपुर के उत्तरी और मैहर के दक्षिण-पूर्वी हिस्से से होते हुए यह श्रेणी पूर्व की ओर मुड़ती है और रीवा से गुज़रती है।
  • यहाँ यह सोन और टोन्स नदियों की घाटियों को विभक्त करती हुई उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले और बिहार के शाहाबाद तक जाती है।
  • इसकी अधिकतम चौड़ाई 80 किलोमीटर है।
  • मध्य प्रदेश में इस पर्वत श्रेणी का विशिष्ट स्वरूप है। जहाँ रूपान्तरित चट्टानें और ऐसी परतदार चट्टानें हैं, जो अनेक उतार-चढ़ाव से गुज़री है। ये परतें लगभग ऊर्ध्वाधर हैं, जो इसे चाकू की धारनुमा नुकीले स्कन्ध का स्वरूप प्रदान करते हैं। कई स्थानों पर ये लगभग ग़ायब हो जाती हैं और सिर्फ़ निचली शैल शृंखला के रूप में ही इसके चिह्न दिखाई देते हैं।
  • यह श्रेणी मैदान से कभी भी कुछ सौ मीटर से अधिक ऊँची नहीं जाती है।
  • इन पहाड़ियों में रोहतास दुर्ग के भग्नावशेष स्थित हैं।
  • समूची श्रेणी की चट्टानों में बलुआ पत्थर और स्लेटी पत्थर मिलते हैं।
  • विजयगढ़ के पास गुफ़ाओं और चट्टानी आश्रय स्थलों में अनगढ़ चित्रकारी और पत्थर से बने औ­ज़ारों के रूप में प्रागैतिहासिक मानव के रोचक स्मृति चिह्न मिले हैं।


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