प्रयोग:रविन्द्र१: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 28: | Line 28: | ||
-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | -[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
-[[मुइज़ुद्दीन बहरामशाह]] | -[[मुइज़ुद्दीन बहरामशाह]] | ||
||'कैकुबाद' (1287-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठाया गया था। इसके पूर्व [[बलबन]] ने अपनी मृत्यु से पहले कैख़ुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन दिल्ली के कोतवाल फ़ख़रुद्दीन मुहम्मद ने बलबन की मृत्यु के बाद कूटनीति के द्वारा कैख़ुसरो को [[मुल्तान]] की सूबेदारी देकर कैकुबाद को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा दिया। [[अफ़्रीका|अफ़्रीकी]] यात्री [[इब्नबतूता]] ने कैकुबाद के समय में यात्रा की थी, उसने सुल्तान के शासन काल को 'एक बड़ा समारोह' कहकर उसकी प्रशंसा की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कैकुबाद]] | ||'कैकुबाद' (1287-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठाया गया था। इसके पूर्व [[बलबन]] ने अपनी मृत्यु से पहले कैख़ुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन दिल्ली के कोतवाल फ़ख़रुद्दीन मुहम्मद ने बलबन की मृत्यु के बाद कूटनीति के द्वारा कैख़ुसरो को [[मुल्तान]] की सूबेदारी देकर [[कैकुबाद]] को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा दिया। [[अफ़्रीका|अफ़्रीकी]] यात्री [[इब्नबतूता]] ने कैकुबाद के समय में यात्रा की थी, उसने सुल्तान के शासन काल को 'एक बड़ा समारोह' कहकर उसकी प्रशंसा की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कैकुबाद]] | ||
{[[सल्तनत काल]] में 'हक-ए-शर्ब' क्या था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 166, प्र. 30) | {[[सल्तनत काल]] में 'हक-ए-शर्ब' क्या था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 166, प्र. 30) | ||
Line 37: | Line 37: | ||
-हज कर | -हज कर | ||
{'अद्धा' और ' | {'अद्धा' और 'मिस्र' नामक दो सिक्के चलाने का श्रेय किसे दिया जाता है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 166, प्र. 35) | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[कुतुबुद्दीन ऐबक]] | -[[कुतुबुद्दीन ऐबक]] | ||
Line 43: | Line 43: | ||
+[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | +[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
-[[इब्राहीम लोदी]] | -[[इब्राहीम लोदी]] | ||
||फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने मुद्रा व्यवस्था के अन्तर्गत बड़ी संख्या में [[ताँबा]] एवं [[चाँदी]] के मिश्रण से निर्मित सिक्के जारी करवाये, जिन्हें सम्भवतः 'अद्धा' एवं 'मिस्र' कहा जाता था। फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने 'शंशगानी सिक्का', जो कि 6 जीतल का था, चलवाया था। उसने सिक्कों पर अपने नाम के साथ अपने पुत्र अथवा उत्तराधिकारी 'फ़तह ख़ाँ' का नाम भी अंकित करवाया। फ़िरोज ने अपने को 'ख़लीफ़ा का नाइब' पुकारा तथा सिक्कों पर ख़लीफ़ा का नाम अंकित करवाया। फ़िरोजशाह तुग़लक़ का शासन कल्याणकारी निरंकुशता पर आधारित था। वह प्रथम सुल्तान था, जिसनें विजयों तथा युद्धों की तुलना में अपनी प्रजा की भौतिक उन्नति को श्रेष्ठ स्थान दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | |||
{'महाराष्ट्र धर्म' का प्रणेता किसे माना जाता है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 198, प्र. 749) | {'महाराष्ट्र धर्म' का प्रणेता किसे माना जाता है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 198, प्र. 749) | ||
Line 50: | Line 51: | ||
-[[नामदेव]] | -[[नामदेव]] | ||
-[[तुकाराम]] | -[[तुकाराम]] | ||
||[[चित्र:Sant-Gyaneshwar.gif|right|100px|संत ज्ञानेश्वर]]'संत ज्ञानेश्वर' की गणना [[भारत]] के महान संतों एवं [[मराठी]] कवियों में होती है। इनका जन्म 1275 ई. में [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर]] ज़िले में [[पैठाण]] के पास आपेगाँव में [[भाद्रपद]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को हुआ था। पंद्रह वर्ष की उम्र में ही [[ज्ञानेश्वर]] भगवान [[श्रीकृष्ण]] के [[भक्त]] और योगी बन चुके थे। अपने बड़े भाई 'निवृत्तिनाथ' के कहने पर उन्होंने एक वर्ष के अंदर ही [[श्रीमद्भागवदगीता]] पर टीका लिख डाली। 'ज्ञानेश्वरी' नाम का यह [[ग्रंथ]] मराठी भाषा का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ 10,000 पद्यों में लिखा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज्ञानेश्वर]] | |||
{निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[हुमायूँ]] के शासन के बारे में सूचना देती है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 199, प्र. 774) | {निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[हुमायूँ]] के शासन के बारे में सूचना देती है?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 199, प्र. 774) | ||
Line 78: | Line 80: | ||
-[[दिल्ली]] | -[[दिल्ली]] | ||
-[[कोलकाता]] | -[[कोलकाता]] | ||
||[[चित्र:Tajmahal-10.jpg|right|120px|ताजमहल, आगरा]]'आगरा' [[उत्तर प्रदेश]] प्रान्त का एक ज़िला, शहर व तहसील है। 16वीं सदी के आरंभ में इसकी स्थापना [[सिकन्दर लोदी]] ने की थी। [[मुग़ल]] शासकों [[अकबर]], [[जहाँगीर]] और [[शाहजहाँ]] के शासन काल में [[आगरा]] मुग़ल राजधानी थी। [[मध्य काल]] में आगरा, [[गुजरात]] तट के बंदरगाहों और पश्चिमी [[गंगा]] के मैदानों के बीच के व्यापार मार्ग पर एक महत्त्वपूर्ण शहर था। [[मुग़ल साम्राज्य]] के पतन के साथ ही 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यह शहर क्रमशः [[जाट|जाटों]], [[मराठा|मराठों]], [[मुग़ल|मुग़लों]] और [[ग्वालियर]] के शासक के अधीन रहा और अंततः 1803 में [[अंग्रेज़]] शासन के अंतर्गत आ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आगरा]] | |||
{[[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] की प्रथम | {[[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] की प्रथम कोठी 1668 ई. में कहाँ स्थापित हुई थी?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 196, प्र. 717) | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[मुम्बई]] में | -[[मुम्बई]] में | ||
Line 85: | Line 88: | ||
-त्रावणकोर में | -त्रावणकोर में | ||
+[[सूरत]] में | +[[सूरत]] में | ||
||[[चित्र:Parle-Point-Surat.jpg|right|100px|परले पॉइंट, सूरत]]12वीं से 15वीं शताब्दी तक [[सूरत]] [[मुस्लिम]] शासकों, [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]], [[मुग़ल|मुग़लों]] और [[मराठा|मराठों]] के आक्रमणों का शिकार हुआ था। 1514 में [[पुर्तग़ाली]] यात्री 'दुआरते बारबोसा' ने सूरत का वर्णन एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में किया। यहाँ [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] ने अपनी पहली कोठी 'फ़्रैकों कैरो' द्वारा 1668 ई. में स्थापित की थी। [[गोलकुण्डा]] रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्र प्राप्त करने के बाद फ़्राँसीसियों ने अपनी दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ई. में [[मसुलीपट्टम]] में की। 18वीं शताब्दी में धीरे-धीरे सूरत का पतन होने लगा था। उस समय [[अंग्रेज़]] और [[डच]], दोनों ने सूरत पर नियंत्रण का दावा किया, लेकिन 1800 ई. में अंग्रेज़ों का इस पर अधिकार हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरत]] | |||
{ | {किस [[मुग़ल]] बादशाह का राज्याभिषेक [[बैरम ख़ाँ]] द्वारा 'कलानौर' में किया गया?(भारतकोश) | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[अकबर]] | +[[अकबर]] | ||
Line 92: | Line 96: | ||
-[[शाहजहाँ]] | -[[शाहजहाँ]] | ||
-[[हुमायूँ]] | -[[हुमायूँ]] | ||
||[[चित्र:Akbar-Sketch.jpg|right|100px|अकबर की मृत्यु से कुछ समय पहले का चित्र]][[दिल्ली]] के तख्त पर बैठने के बाद [[मुग़ल]] बादशाह [[हुमायूँ]] का यह दुर्भाग्य ही था कि वह अधिक दिनों तक सत्ताभोग नहीं कर सका। [[जनवरी]], 1556 ई. में ‘दीनपनाह’ भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुमायूँ की मुत्यु हो गयी। हुमायूँ की मृत्यु का समाचार सुनकर [[बैरम ख़ाँ]] ने [[गुरदासपुर]] के निकट ‘कलानौर’ में [[14 फ़रवरी]], 1556 ई. को [[अकबर]] का राज्याभिषेक करवा दिया और वह 'जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाह ग़ाज़ी' की उपाधि से राजसिंहासन पर बैठा। राज्याभिषेक के समय अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष 4 महीने की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकबर]] | |||
{[[महाराष्ट्र]] में [[भक्ति आन्दोलन]] की शुरुआत कब हुई?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 197, प्र. 748) | {[[महाराष्ट्र]] में [[भक्ति आन्दोलन]] की शुरुआत कब हुई?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 197, प्र. 748) | ||
Line 114: | Line 119: | ||
-[[इब्नबतूता]] | -[[इब्नबतूता]] | ||
-[[फ़रिश्ता (यात्री)|फ़रिश्ता]] | -[[फ़रिश्ता (यात्री)|फ़रिश्ता]] | ||
||ज़ियाउद्दीन बरनी '[[भारत का इतिहास]]' लिखने वाला पहला ज्ञात [[मुस्लिम]] था। वह [[दिल्ली]] में सुल्तान [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] का 'नदीम' अर्थात 'प्रिय साथी' बनकर 17 वर्षों तक रहा था। [[ज़ियाउद्दीन बरनी|ज़ियाउद्दीन]] '[[बरन]]', आधुनिक [[बुलन्दशहर]] का रहने वाला था। यही कारण था कि वह अपने नाम के साथ 'बरनी' लिखता था। इसका बचपन अपने चाचा 'अला-उल-मुल्क' के साथ व्यतीत हुआ, जो [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के दरबार में सलाहकार था। संभवतः बरनी ने 46 विद्धानों से शिक्षा ग्रहण की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जियाउद्दीन बरनी]] | |||
{जेमोरिन कौन था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 194, प्र. 650) | {जेमोरिन कौन था?(प्रति.दर्प.सीरीज-16, पृ. 194, प्र. 650) |
Revision as of 06:36, 29 July 2012
इतिहास सामान्य ज्ञान
|