अजीजन बेगम: Difference between revisions
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==एक योद्धा के रूप में== | ==एक योद्धा के रूप में== | ||
प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार सर जार्ज ट्रेवेलियन ने उसका वर्णन एक योद्धा के रूप में इस प्रकार किया है-'''घोड़े पर सवार सैनिक वेशभूषा में अनेक तमगे लगाए और हाथ में पिस्तौल लिए अजीजन बिजली की तरह | प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार सर जार्ज ट्रेवेलियन ने उसका वर्णन एक योद्धा के रूप में इस प्रकार किया है-'''घोड़े पर सवार सैनिक वेशभूषा में अनेक तमगे लगाए और हाथ में पिस्तौल लिए अजीजन बिजली की तरह अंग्रेज़ सैनिकों को रौंदती चली जाती थी। उसके साथ महिलाओं की घुड़सवार टुकड़ी भी घूमा करती थी। सैनिकों को हथियार देना, प्यासे सैनिकों को पानी पिलाना एवं घायलों की देखभाल उनके महत्त्वपूर्ण कार्य थे।''' पं. सुन्दरलाल ने अपनी पुस्तक '[[भारत]] में अग्रेज़ी राज' में लिखा है कि कानपुर पर विद्रोहियों का क़ब्ज़ा होने के बाद बंदी अंग्रेज़ स्त्रियों व बच्चों की हत्या के लिए विद्रोहियों को उकसाने वाली अजीजन ही थी। | ||
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सम्भवत: ऐसा उसने अंग्रेज़ों के अमानवीय अत्याचारों के कारण क्रोध और घृणा के आवेश में किया होगा। अंतत: अजीजन को गिरफ्तार कर अंग्रेज़ कमाण्डर सर हेनरी हेवलाक के समक्ष लाया गया। एक मुस्लिम क्रांतिकारी [[अजीम उल्लाह ख़ाँ]] का पता बताने की शर्त पर उसने माफ़ी देने वायदा किया गया। अजीजन ने ऐसा करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। अंतत: 'हिन्दुस्तान अमर रहे' का नाम लगाते हुए वह अंग्रेज़ों की गोली खाकर शहीद हो गई। | सम्भवत: ऐसा उसने अंग्रेज़ों के अमानवीय अत्याचारों के कारण क्रोध और घृणा के आवेश में किया होगा। अंतत: अजीजन को गिरफ्तार कर अंग्रेज़ कमाण्डर सर हेनरी हेवलाक के समक्ष लाया गया। एक मुस्लिम क्रांतिकारी [[अजीम उल्लाह ख़ाँ]] का पता बताने की शर्त पर उसने माफ़ी देने वायदा किया गया। अजीजन ने ऐसा करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। अंतत: 'हिन्दुस्तान अमर रहे' का नाम लगाते हुए वह अंग्रेज़ों की गोली खाकर शहीद हो गई। |
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1857 के स्वतंत्रता संग्राम की बलिदानी महिलाओं में कानपुर की नाचने गाने वाली महिला अजीजन बेगम का नाम विशेष उल्लेखनीय है। अजीजन बेगम का जन्म 1832 में हुआ था। उनका जन्म लखनऊ में हुआ था।
क्रांतिकारियों से सम्पर्क
आगे चलकर दुर्भाग्य की मारी अजीजन कानपुर आकर मशहूर तवायफ़ उमराव जान अदा के साथ नाचने गाने का काम करने लगी। यहीं उनका सम्पर्क क्रांतिकारियों से हुआ। नाना साहब के आह्वान पर अजीजन ने अंग्रेज़ों से टक्कर लेने के लिए स्त्रियों का सशस्त्र दल गठित किया एवं स्वयं उसकी कमान सम्भाली।
एक योद्धा के रूप में
प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार सर जार्ज ट्रेवेलियन ने उसका वर्णन एक योद्धा के रूप में इस प्रकार किया है-घोड़े पर सवार सैनिक वेशभूषा में अनेक तमगे लगाए और हाथ में पिस्तौल लिए अजीजन बिजली की तरह अंग्रेज़ सैनिकों को रौंदती चली जाती थी। उसके साथ महिलाओं की घुड़सवार टुकड़ी भी घूमा करती थी। सैनिकों को हथियार देना, प्यासे सैनिकों को पानी पिलाना एवं घायलों की देखभाल उनके महत्त्वपूर्ण कार्य थे। पं. सुन्दरलाल ने अपनी पुस्तक 'भारत में अग्रेज़ी राज' में लिखा है कि कानपुर पर विद्रोहियों का क़ब्ज़ा होने के बाद बंदी अंग्रेज़ स्त्रियों व बच्चों की हत्या के लिए विद्रोहियों को उकसाने वाली अजीजन ही थी।
शहीद
सम्भवत: ऐसा उसने अंग्रेज़ों के अमानवीय अत्याचारों के कारण क्रोध और घृणा के आवेश में किया होगा। अंतत: अजीजन को गिरफ्तार कर अंग्रेज़ कमाण्डर सर हेनरी हेवलाक के समक्ष लाया गया। एक मुस्लिम क्रांतिकारी अजीम उल्लाह ख़ाँ का पता बताने की शर्त पर उसने माफ़ी देने वायदा किया गया। अजीजन ने ऐसा करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। अंतत: 'हिन्दुस्तान अमर रहे' का नाम लगाते हुए वह अंग्रेज़ों की गोली खाकर शहीद हो गई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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