कोलकाता की कला: Difference between revisions
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[[कोलकाता]] वासी लम्बे समय से [[साहित्य]] व [[कला]] क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं। 19वीं शताब्दी के मध्य में यहाँ पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित साहित्यिक आन्दोलन का उदय हुआ, जिसने सम्पूर्ण भारत में साहित्यिक पुनर्जागरण किया। इस आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण प्रणेताओं में से एक [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] थे, जिन्हें 1913 में साहित्य का [[नोबेल पुरस्कार]] प्रदान किया गया। उनकी कविता, संगीत, नाटक और चित्राकला में उल्लेखनीय सृजनात्मकता ने शहर के सांस्कृतिक जीवन का समृद्ध किया। | [[कोलकाता]] वासी लम्बे समय से [[साहित्य]] व [[कला]] क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं। 19वीं शताब्दी के मध्य में यहाँ पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित साहित्यिक आन्दोलन का उदय हुआ, जिसने सम्पूर्ण भारत में साहित्यिक पुनर्जागरण किया। इस आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण प्रणेताओं में से एक [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] थे, जिन्हें 1913 में साहित्य का [[नोबेल पुरस्कार]] प्रदान किया गया। उनकी कविता, संगीत, नाटक और चित्राकला में उल्लेखनीय सृजनात्मकता ने शहर के सांस्कृतिक जीवन का समृद्ध किया। | ||
कोलकाता पारम्परिक एवं समकालीन संगीत और नृत्य का भी केन्द्र है। 1937 में टैगोर ने कोलकाता में पहले अखिल बंगाल संगीत समारोह का उद्घाटन किया था। तभी से प्रतिवर्ष यहाँ पर कई भारतीय शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित किए जाते हैं। कई शास्त्रीय नर्तकों का घर कोलकाता पारम्परिक नृत्य कला में पश्चिम की मंचीय तकनीक को अपनाने के उदय शंकर के प्रयोग का स्थल भी था। 1965 से उनके द्वारा स्थापित नृत्य, संगीत और नाटक शालाएँ शहर में विद्यमान हैं। | कोलकाता पारम्परिक एवं समकालीन संगीत और नृत्य का भी केन्द्र है। 1937 में टैगोर ने कोलकाता में पहले अखिल बंगाल संगीत समारोह का उद्घाटन किया था। तभी से प्रतिवर्ष यहाँ पर कई [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] समारोह आयोजित किए जाते हैं। कई शास्त्रीय नर्तकों का घर कोलकाता पारम्परिक नृत्य कला में पश्चिम की मंचीय तकनीक को अपनाने के उदय शंकर के प्रयोग का स्थल भी था। 1965 से उनके द्वारा स्थापित नृत्य, संगीत और नाटक शालाएँ शहर में विद्यमान हैं। | ||
1870 के दशक में नेशनल थिएटर की स्थापना के साथ ही कोलकाता में व्यावसायिक नाटकों की शुरुआत हुई। शहर में नाटकों के आधुनिक रूपों की शुरुआत गिरीशचंद्र घोष और दीनबन्धु मित्र जैसे नाटककारों ने की। कोलकाता आज भी व्यावसायिक व शौक़िया रंगमंच और प्रयोगधर्मी नाटकों का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। '''यह शहर [[भारत]] में चलचित्र निर्माण का प्रारम्भिक केन्द्र भी रहा है। प्रयोगधर्मी फ़िल्म निर्देशक [[सत्यजित राय]] और [[मृणाल सेन]] ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा पाई है'''। शहर में कई सिनेमाघर हैं, जिनमें नियमित रूप से [[अंग्रेज़ी]], [[बांग्ला]] और [[हिन्दी]] फ़िल्में दिखाई जाती हैं। | 1870 के दशक में नेशनल थिएटर की स्थापना के साथ ही कोलकाता में व्यावसायिक नाटकों की शुरुआत हुई। शहर में नाटकों के आधुनिक रूपों की शुरुआत गिरीशचंद्र घोष और दीनबन्धु मित्र जैसे नाटककारों ने की। कोलकाता आज भी व्यावसायिक व शौक़िया रंगमंच और प्रयोगधर्मी नाटकों का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। '''यह शहर [[भारत]] में चलचित्र निर्माण का प्रारम्भिक केन्द्र भी रहा है। प्रयोगधर्मी फ़िल्म निर्देशक [[सत्यजित राय]] और [[मृणाल सेन]] ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा पाई है'''। शहर में कई सिनेमाघर हैं, जिनमें नियमित रूप से [[अंग्रेज़ी]], [[बांग्ला]] और [[हिन्दी]] फ़िल्में दिखाई जाती हैं। |
Revision as of 12:51, 23 November 2012
कोलकाता वासी लम्बे समय से साहित्य व कला क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं। 19वीं शताब्दी के मध्य में यहाँ पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित साहित्यिक आन्दोलन का उदय हुआ, जिसने सम्पूर्ण भारत में साहित्यिक पुनर्जागरण किया। इस आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण प्रणेताओं में से एक रवीन्द्रनाथ टैगोर थे, जिन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उनकी कविता, संगीत, नाटक और चित्राकला में उल्लेखनीय सृजनात्मकता ने शहर के सांस्कृतिक जीवन का समृद्ध किया।
कोलकाता पारम्परिक एवं समकालीन संगीत और नृत्य का भी केन्द्र है। 1937 में टैगोर ने कोलकाता में पहले अखिल बंगाल संगीत समारोह का उद्घाटन किया था। तभी से प्रतिवर्ष यहाँ पर कई भारतीय शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित किए जाते हैं। कई शास्त्रीय नर्तकों का घर कोलकाता पारम्परिक नृत्य कला में पश्चिम की मंचीय तकनीक को अपनाने के उदय शंकर के प्रयोग का स्थल भी था। 1965 से उनके द्वारा स्थापित नृत्य, संगीत और नाटक शालाएँ शहर में विद्यमान हैं।
1870 के दशक में नेशनल थिएटर की स्थापना के साथ ही कोलकाता में व्यावसायिक नाटकों की शुरुआत हुई। शहर में नाटकों के आधुनिक रूपों की शुरुआत गिरीशचंद्र घोष और दीनबन्धु मित्र जैसे नाटककारों ने की। कोलकाता आज भी व्यावसायिक व शौक़िया रंगमंच और प्रयोगधर्मी नाटकों का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। यह शहर भारत में चलचित्र निर्माण का प्रारम्भिक केन्द्र भी रहा है। प्रयोगधर्मी फ़िल्म निर्देशक सत्यजित राय और मृणाल सेन ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा पाई है। शहर में कई सिनेमाघर हैं, जिनमें नियमित रूप से अंग्रेज़ी, बांग्ला और हिन्दी फ़िल्में दिखाई जाती हैं।
कोलकाता से सम्बंधित कला क्षेत्र के व्यक्ति
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- कोलकाता
- कोलकाता-कोलकाता और जाब चार्नाक
- Weatherbase
- Calcutta- Not 'The City of Joy'
- UNFOLD WEST BENGAL WITH BLOOM9
- History of Calcutta