सौमित्र चटर्जी

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सौमित्र चटर्जी
पूरा नाम सौमित्र चटर्जी
जन्म 19 जनवरी, 1935
जन्म भूमि बंगाल
मृत्यु 15 नवंबर, 2020
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, कवि
मुख्य फ़िल्में ‘अपूर संसार’, तीन कन्या, ‘देवी’ ‘चारुलता’ और ‘घरे बाइरे’ आदि।
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, दादा साहब फाल्के पुरस्कार
नागरिकता भारतीय

सौमित्र चटर्जी (अंग्रेज़ी: Soumitra Chatterjee, जन्म: 19 जनवरी, 1935; मृत्यु- 15 नवंबर, 2020, कोलकाता, पश्चिम बंगाल) प्रसिद्ध बांग्ला अभिनेता थे। सन 2001 में राष्ट्रीय पुरस्कार को ठुकराने वाले प्रख्यात बांग्ला अभिनेता सौमित्र चटर्जी को सन 2011 में भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। उन्हें अभिनेता प्राण, मनोज कुमार और अभिनेत्री वैजयंती माला पर वरीयता देते हुए इस पुरस्कार के लिए चुना गया था।[1] सौमित्र चटर्जी प्रथम बांग्ला व्यक्ति थे, जिन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला था। चटर्जी को राजनेता और साथी कलाकार एक महान सांस्कृतिक प्रतीक, भरोसेमंद दोस्त और विविध क्षेत्रों में रुचि रखने वाले दिग्गज के तौर पर याद कर रहे हैं।

जीवन परिचय

सौमित्र चटर्जी का जन्म 19 जनवरी, 1935 में बंगाल में हुआ था। उन्होंने लंबे समय तक सत्यजीत रे के साथ भी काम किया। सत्यजीत रे की 14 फ़िल्मों में उन्होंने अभिनय किया। सौमित्र चटर्जी ने 1959 में सत्यजीत रे की फ़िल्म ‘अपूर संसार’ से अपना कैरियर शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने सत्यजीत रे की फ़िल्म ‘देवी,’ ‘चारुलता’ और ‘घरे बाइरे’ में भी अभिनय किया। फ़िल्मकार सत्यजित रे और अभिनेता सौमित्र चटर्जी की जोड़ी की तुलना हॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता-निर्देशक जो़डी अकीरा कुरोसोवा-तोशिरो मिफ्यून और मार्केलो मास्ट्रोइयान्नी-फेडेरिको फेलिनो से की जानी लगी थी।

सौमित्र चटर्जी ने सत्यजित रे के अलावा मृणाल सेन, तपन सिन्हा और तरुण मजुमदार सहित कई अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त निर्देशकों के साथ भी काम किया। 2004 में पद्म भूषण से सम्मानित अभिनेता सौमित्र चटर्जी अपर्णा सेन, गौतम घोष और ऋतुपर्णो घोष जैसे प्रसिद्ध निर्देशकों के साथ भी काम कर चुके थे। वह रंगमंच से भी जु़डे रहे। उनको कला के क्षेत्र का फ्रांस का सर्वोच्च पुरस्कार "द ऑफिसर डेस आर्ट्स एट मेटियर्स" तथा इटली से लाइफ टाइम अचीवमेंट पुस्कार भी मिला।

नाटक मंच से स्नेह

बीबीसी बांग्ला को दिए एक साक्षात्कार में सौमित्र चटर्जी ने कहा था कि कृष्णानगर में बचपन में ही उन्होंने नाटकों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। बचपन में हम घर में तख्तों से मंच बनाते थे और बेड शीट से पर्दे बनाते थे। हम भाई-बहनों और दोस्तों के साथ मिलकर नाटक करते थे। इसके लिए घर के बुज़ुर्गों ने भी हमें बहुत हौसला दिया। नाटकों का उनका शौक बाद में भी उनके साथ रहा और वो फ़िल्मों के साथ-साथ मंच पर नज़र आते। बाद में उनके पिता काम के लिए कलकत्ता चले गए, फिर कॉलेज में पढ़ाई करने के लिए सौमित्र भी कलकत्ता चले आए।[2]

सत्यजीत रे से मित्रता

thumb|250px|सौमित्र चटर्जी कॉलेज के अपने दिनों के दौरान उनके एक मित्र ने उनका परिचय सत्यजीत रे से करवाया था। उस वक़्त हुई ये छोटी-सी मुलाक़ात बाद में दोनों के बीच गहरी दोस्ती में बदल गई। सत्यजीत रे की फ़िल्म के साथ शुरुआत करने के बाद उन्होंने उनके साथ कई और फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म आलोचक जीवनी लेखिका मैसी सेटॉन को एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था, "जब सत्यजीत रे ने मुझसे पूछा कि मैं क्या करना चाहता हूं तो मेरे पास कोई उत्तर नहीं था। मुझे उस वक़्त स्टेज पर और फ़िल्मों में ऐक्टिंग के फ़र्क़ के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी। मुझे डर था कि मैं ओवरऐक्ट न करूं।" सौमित्र चटर्जी ने फ़िल्मों में कई तरह के किरदार निभाए। 'शोनार किल्ला' में वो शरलॉक होम्स की तरह के एक जासूस के किरदार में नज़र आए, 'देवी' में वो नियमों का पालन करने वाला दूल्हा बने, 'अभिजान' में ग़ुस्से में रहने वाला उत्तर भारतीय टैक्सी ड्राइवर बने तो 'अशनि संकट' में एक शांत रहने वाले पुजारी के किरदार में दिखे। नोबल सम्मान पाने वाले रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी 'चारूलता' पर बनी सत्यजीत रे की फ़िल्म में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सौमित्र चटर्जी, सत्यजीत रे के पसंदीदा एक्टर थे और सत्यजीत उन्हें सिनेमा पर लिखी किताबें पढ़ने के लिए देते थे। रविवार को दोनों साथ मिलकर हॉलीवुड की फ़िल्में देखते थे और चर्चा करते थे। सौमित्र चटर्जी ने एक बार कहा था, "वो जो भी करते थे वो बिना कारण नहीं था, ऐसे नहीं था कि रविवार को मुझे एंटरटेंमेन्ट के लिए साथ में लेकर जाते थे।" सत्यजीत रे का कहना था कि सौमित्र बेहतरीन एक्टर हैं लेकिन अगर उन्हें "बुरी कहानी दी जाएगी तो उनका अभिनय भी वैसा ही होगा।" साल 1992 में सत्यजीत रे की मौत हो गई। उस दौरान सौमित्र ने एक इंटरव्यू में कहा था, "एक भी दिन ऐसा नहीं गुज़रा, जब मैंने सत्यजीत रे को याद न किया हो या उनके बारे में बात न की हो। प्रेरणा के तौर पर मेरी ज़िंदगी में वो हमेशा ही मौजूद रहे हैं। मैं जब भी उनके बारे में सोचता हूं मुझे प्रेरणा मिलती है।"

मृत्यु

सौमित्र चटर्जी की मृत्यु 15 नवंबर, 2020, कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुई। उन्हें 6 अक्टूबर को अस्पताल में कोविड-19 से संक्रमित पाए जाने पर भर्ती कराया गया था। वह संक्रमण से उबर गए लेकिन उनकी सेहत में सुधार नहीं हुआ। न्यूरोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, कार्डियोलॉजी, क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विशेषज्ञों की एक बड़ी टीम पिछले 40 दिनों में सौमित्र चटर्जी के स्वास्थ्य को फिर पटरी पर लाने का प्रयास कर रही थी, लेकिन कोई भी कोशिश सफल नहीं हो पा रही थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सौमित्र चटर्जी के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि- "उनका निधन विश्व सिनेमा के साथ-साथ पश्चिम बंगाल और पूरे देश के सांस्कृतिक जीवन के लिए बहुत बड़ी क्षति है"। मोदी जी ने ट्वीट कर कहा, "श्री सौमित्र चटर्जी का निधन विश्व सिनेमा के साथ-साथ पश्चिम बंगाल और पूरे देश के सांस्कृतिक जीवन के लिए बहुत बड़ी क्षति है। उनके निधन से अत्यंत दु:ख हुआ है। परिजनों और प्रशंसकों के लिए मेरी संवेदनाएं। ओम शांति"।[3]

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वयोवृद्ध अभिनेता के निधन को बंगाल के लिये बड़ी क्षति बताते हुए कहा कि- "सौमित्र चटर्जी एक योद्धा थे, जिन्हें उनके काम के लिये याद किया जाता रहेगा। यह बंगाल और दुनिया भर में उनके प्रशंसकों के लिये दु:खद दिन है"। ममता बनर्जी ने ट्विटर पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, "फेलूदा नहीं रहे। ‘अपु’ ने अलविदा कह दिया। विदाई, सौमित्र (दा) चटर्जी। वह अपने जीवनकाल में दिग्गज रहे"।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मुझे खुशी है कि मेरे काम को सराहा गया (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) अमर उजाला। अभिगमन तिथि: 3 अक्टूबर, 2012।
  2. बंगाली सिनेमा के जाने-माने अभिनेता का निधन (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 17 नवंबर, 2020।
  3. बेहद भरोसेमंद और मजाकिया इंसान थे प्रख्यात अभिनेता सौमित्र चटर्जी (हिंदी) prabhasakshi.com। अभिगमन तिथि: 17 नवंबर, 2020।

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