भद्राचलम: Difference between revisions

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'''भद्राचलम''' भगवान [[श्रीराम]] से जुड़ा और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] की आस्था का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो [[आन्ध्र प्रदेश]] के [[खम्मम ज़िला|खम्मम ज़िले]] में स्थित है। इस पुण्य क्षेत्र को "दक्षिण की अयोध्या" भी कहा जाता है। यह स्थान अगणित [[भक्त|भक्तों]] का श्रद्धा केन्द्र है। मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहाँ राम ने पर्णकुटी बनाकर वनवास का लंबा समय व्यतीत किया था। भद्राचलम से कुछ ही दूरी पर स्थित 'पर्णशाला' में भगवान श्रीराम अपनी पर्णकुटी बनाकर रहे थे। यहीं पर कुछ ऐसे शिलाखंड भी हैं, जिनके बारे में यह विश्वास किया जाता है कि [[सीता|सीताजी]] ने वनवास के दौरान यहाँ वस्त्र सुखाए थे। एक विश्वास यह भी किया जाता है कि [[रावण]] द्वारा सीताजी का अपहरण भी यहीं से हुआ था।
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==वनवासी बहुल क्षेत्र==
भद्राचलम की एक विशेषता यह भी है कि यह वनवासी बहुल क्षेत्र है और राम वनवासियों के पूज्य हैं। वनवासी भी परंपरागत रूप से भद्राचलम को अपना आस्था का केन्द्र मानते हैं और '[[रामनवमी]]' को भारी संख्या में यहाँ राम के सुप्रसिद्ध मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। वनवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण '[[ईसाई मिशनरी]]' यहाँ मतांतरण षड्यंत्र चलाने की कोशिश में वर्षों जुटे रहे, किंतु कई प्रयासों के बाद भी यहाँ उनका मतांतरण जोर नहीं पकड़ पाया। स्थानीय वनवासी उनका प्रखर विरोध भी करते रहे हैं।<ref name="ab">{{cite web |url=http://panchjanya.com/arch/2008/7/6/File38.htm|title=भद्राचलम का राम मन्दिर|accessmonthday=27 फ़रवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
====जनश्रुति====
यहाँ के मंदिर के आविर्भाव के विषय में एक जनश्रुति वनवासियों से जुड़ी हुई है। इसके अनुसार, एक राम [[भक्त]] वनवासी महिला दम्मक्का भद्रिरेड्डीपालेम ग्राम में रहा करती थी। इस वृद्धा ने राम नामक एक लड़के को गोद लेकर उसका पालन-पोषण किया। एक दिन राम वन में गया और वापस नहीं लौटा। पुत्र को खोजते-खोजते दम्मक्का जंगल में पहुँच गई और "राम-राम" पुकारते हुए भटकने लगी। तभी उसे एक गुफ़ा के अंदर से आवाज़ आई कि "माँ, मैं यहाँ हूँ"। खोजने पर वहाँ [[सीता]], [[राम]] और [[लक्ष्मण]] की प्रतिमाएँ मिलीं। उन्हें देखकर दम्मक्का भक्ति भाव से सराबोर हो गई। इतने में उसने अपने पुत्र को भी सामने खड़ा पाया। दम्मक्का ने उसी जगह पर देव प्रतिमाओं की स्थापना का संकल्प लिया और [[बाँस]] की छत बनाकर एक अस्थाई मंदिर बनाया। धीरे-धीरे स्थानीय वनवासी समुदाय 'भद्रगिरि' या 'भद्राचलम' नामक उस पहाड़ी पर श्रीराम की [[पूजा]] करने लगे। आगे चलकर भगवान ने भद्राचलम को वनवासियों-नगरवासियों के मिलन हेतु एक सेतु बना दिया।<ref name="ab"/>
==मंदिर का निर्माण==
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रामदास विदेशी अक्रमण के ख़िलाफ़ देश में '[[भक्ति आंदोलन]]' से जुड़े हुए थे। [[कबीर]] रामदास के आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने रामदास को 'रामानंदी संप्रदाय' की दीक्षा दी थी। रामदास के कीर्तन घर-घर में गाए जाते थे और तानाशाही राज के विरोध में खड़े होने की प्रेरणा देते थे। आज भी हरिदास नामक घुमंतु प्रजाति भक्त रामदास के कीर्तन गाते हुए राम भक्ति का प्रचार करती दिखाई देती है। लेकिन रामदास का यह [[धर्म]] कार्य तानाशाह को नहीं भाया और उसने रामदास को गोलकुंडा क़िले में क़ैद कर दिया। आज भी [[हैदराबाद]] स्थित इस क़िले में वह कालकोठरी देखने को मिलती है, जहाँ रामदास को बन्दी बनाकर रखा गया था।<ref name="ab"/>


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Revision as of 06:09, 27 February 2013

भद्राचलम भगवान श्रीराम से जुड़ा और हिन्दुओं की आस्था का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो आन्ध्र प्रदेश के खम्मम ज़िले में स्थित है। इस पुण्य क्षेत्र को "दक्षिण की अयोध्या" भी कहा जाता है। यह स्थान अगणित भक्तों का श्रद्धा केन्द्र है। मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहाँ राम ने पर्णकुटी बनाकर वनवास का लंबा समय व्यतीत किया था। भद्राचलम से कुछ ही दूरी पर स्थित 'पर्णशाला' में भगवान श्रीराम अपनी पर्णकुटी बनाकर रहे थे। यहीं पर कुछ ऐसे शिलाखंड भी हैं, जिनके बारे में यह विश्वास किया जाता है कि सीताजी ने वनवास के दौरान यहाँ वस्त्र सुखाए थे। एक विश्वास यह भी किया जाता है कि रावण द्वारा सीताजी का अपहरण भी यहीं से हुआ था।

वनवासी बहुल क्षेत्र

भद्राचलम की एक विशेषता यह भी है कि यह वनवासी बहुल क्षेत्र है और राम वनवासियों के पूज्य हैं। वनवासी भी परंपरागत रूप से भद्राचलम को अपना आस्था का केन्द्र मानते हैं और 'रामनवमी' को भारी संख्या में यहाँ राम के सुप्रसिद्ध मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। वनवासी बहुल क्षेत्र होने के कारण 'ईसाई मिशनरी' यहाँ मतांतरण षड्यंत्र चलाने की कोशिश में वर्षों जुटे रहे, किंतु कई प्रयासों के बाद भी यहाँ उनका मतांतरण जोर नहीं पकड़ पाया। स्थानीय वनवासी उनका प्रखर विरोध भी करते रहे हैं।[1]

जनश्रुति

यहाँ के मंदिर के आविर्भाव के विषय में एक जनश्रुति वनवासियों से जुड़ी हुई है। इसके अनुसार, एक राम भक्त वनवासी महिला दम्मक्का भद्रिरेड्डीपालेम ग्राम में रहा करती थी। इस वृद्धा ने राम नामक एक लड़के को गोद लेकर उसका पालन-पोषण किया। एक दिन राम वन में गया और वापस नहीं लौटा। पुत्र को खोजते-खोजते दम्मक्का जंगल में पहुँच गई और "राम-राम" पुकारते हुए भटकने लगी। तभी उसे एक गुफ़ा के अंदर से आवाज़ आई कि "माँ, मैं यहाँ हूँ"। खोजने पर वहाँ सीता, राम और लक्ष्मण की प्रतिमाएँ मिलीं। उन्हें देखकर दम्मक्का भक्ति भाव से सराबोर हो गई। इतने में उसने अपने पुत्र को भी सामने खड़ा पाया। दम्मक्का ने उसी जगह पर देव प्रतिमाओं की स्थापना का संकल्प लिया और बाँस की छत बनाकर एक अस्थाई मंदिर बनाया। धीरे-धीरे स्थानीय वनवासी समुदाय 'भद्रगिरि' या 'भद्राचलम' नामक उस पहाड़ी पर श्रीराम की पूजा करने लगे। आगे चलकर भगवान ने भद्राचलम को वनवासियों-नगरवासियों के मिलन हेतु एक सेतु बना दिया।[1]

मंदिर का निर्माण

गोलकुंडा[2] का क़ुतुबशाही नवाब अबुल हसन तानाशाह था, किंतु उसकी ओर से भद्राचलम के तहसीलदार के नाते नियुक्त कंचली गोपन्ना ने कालांतर में उस बाँस के मंदिर के स्थान पर भव्य मंदिर बनाकर उस क्षेत्र को धार्मिक जागरण का महत्वपूर्ण केन्द्र बनाने का प्रयास किया। कर वसूली से प्राप्त धन से उसने एक विशाल परकोटे के भीतर भव्य राम मंदिर बनवाया, जो आज भी आस्था के अपूर्व केन्द्र के रूप में स्थित है। गोपन्ना ने भक्ति भाव से सीता, श्रीराम व लक्ष्मण जी के लिए कटिबंध, कंठमाला[3], माला[4] एवं मुकुट मणि[5] भी बनवा कर अर्पित की। उन्होंने राम की भक्ति में कई भजन भी लिखे, इसी कारण लोग उन्हें रामदास कहने लगे।

रामदास विदेशी अक्रमण के ख़िलाफ़ देश में 'भक्ति आंदोलन' से जुड़े हुए थे। कबीर रामदास के आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने रामदास को 'रामानंदी संप्रदाय' की दीक्षा दी थी। रामदास के कीर्तन घर-घर में गाए जाते थे और तानाशाही राज के विरोध में खड़े होने की प्रेरणा देते थे। आज भी हरिदास नामक घुमंतु प्रजाति भक्त रामदास के कीर्तन गाते हुए राम भक्ति का प्रचार करती दिखाई देती है। लेकिन रामदास का यह धर्म कार्य तानाशाह को नहीं भाया और उसने रामदास को गोलकुंडा क़िले में क़ैद कर दिया। आज भी हैदराबाद स्थित इस क़िले में वह कालकोठरी देखने को मिलती है, जहाँ रामदास को बन्दी बनाकर रखा गया था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भद्राचलम का राम मन्दिर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2013।
  2. वर्तमान हैदराबाद
  3. तेलुगू में इसे पच्चला पतकम् कहा जाता है
  4. चिंताकु पतकम्
  5. कलिकि तुराई

बाहरी कड़ियाँ

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