पी. ए. संगमा: Difference between revisions

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Revision as of 10:36, 25 March 2017

पी. ए. संगमा
पूरा नाम पूर्णो अगितोक संगमा
जन्म 1 सितम्बर, 1947
जन्म भूमि पश्चिम गारो हिल्स ज़िला, मेघालय
मृत्यु 4 मार्च, 2016
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनेता
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1999 से पहले); राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी; (1999 से 2004, 2005 से 2012); ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (2004 से 2005)
पद मेघालय के मुख्यमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष
कार्य काल मुख्यमंत्री - 6 फ़रवरी, 1988 - 25 मार्च, 1990; अध्यक्ष - 25 मई, 1996 - 23 मार्च, 1998
शिक्षा स्नातकोत्तर
विद्यालय सेंट एन्थोनी कालेज, डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय, असम
अन्य जानकारी पी. ए. संगमा 1986 के आम चुनावों में तुरा संसदीय क्षेत्र से पांचवी बार लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए थे। 23 मई, 1996 को सभी पार्टियों ने दलगत भावना से ऊपर उठते हुए उन्हें सर्वसम्मति से 11वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया।
अद्यतन‎

पूर्णो अगितोक संगमा (अंग्रेज़ी: Purno Agitok Sangma, जन्म: 1 सितम्बर, 1947, पश्चिम गारो हिल्स ज़िला, मेघालय; मृत्यु: 4 मार्च, 2016, नई दिल्ली) भारत के राजनीतिज्ञों में से एक थे। पूर्व में वे मेघालय के मुख्यमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष भी रह चुके थे। वे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सह-संस्थापक थे। संगमा आठ बार लोकसभा-सदस्य रहे। सन 2012 में उन्होंने भारत के राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा था, जिसमें वह प्रणब मुखर्जी से हार गये थे।

जीवन परिचय

पूर्णो अगितोक संगमा का जन्म 1 सितम्बर, 1947 को पूर्वोत्तर भारत में मेघालय राज्य के रमणीक पश्चिमी गारो हिल ज़िले के चपाहटी गांव में हुआ था। छोटे से आदिवासी गांव में पले बालक संगमा ने अपने जीवन के आरंभिक वर्षों में ही यह महसूस कर लिया था कि उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ेगा। उन्होंने अपनी मां, जिन्होंने उनके अंदर कर्मठता, विनम्रता, ईमानदारी के चारित्रिक गुणों का संचार किया था, से प्रेरणा प्राप्त कर यह समझ लिया कि शिक्षा ही जीवन में आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है। सेंट एन्थोनी कालेज से स्नातक डिग्री लेने के बाद वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के लिए असम में डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय गए। बाद में उन्होंने विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

राजनीतिक जीवन

संगमा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। राजनीति में आने से पहले उन्होंने प्राध्यापक, अधिवक्ता और पत्रकार के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में किया और वह पार्टी के पदों पर तेजी से आगे बढ़ते गए। 1974 में वह मेघालय प्रदेश युवा कांग्रेस के महासचिव बने। वह कुछ समय के लिए इसके उपाध्यक्ष भी रहे। पार्टी की विचारधारा के प्रति उनकी वचनबद्धता को समझते हुए और उनके संगठनात्मक कौशल को ध्यान में रखते हुए, उन्हें 1975 में मेघालय प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव बनाया गया और वह 1980 तक इस पद पर रहे।

लोकसभा सांसद

जिस समय 1977 में संगमा राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य पर उभरे, उस समय देश में छठे आम चुनाव की तैयारी चल रही थी। सगंमा अपने गृह राज्य में तुरा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए। 30 वर्षीय संगमा ने संसद में ऐसे समय प्रवेश किया जब देश में एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हो रहा था और कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहली बार केंद्र में चुनावों में हार के बाद सत्ता से हट रही थी। उभरते हुए सांसद के लिए अपनी छवि बनाने का यह एक सुअवसर था और प्रखर वक्ता संगमा ने एक ईमानदार तथा अध्यवसायी सदस्य के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करने के लिए इस अवसर का पूरा लाभ उठाया। दो वर्षों से भी कम समय में राष्ट्रीय राजनीति में स्थितियां बिल्कुल बदल गयीं और जनता पार्टी अपदस्थ हो गयी। चरण सिंह की सरकार, जिसने बाद में सत्ता संभाली, केवल कुछ ही महीनों तक टिक सकी। 1980 के मध्यावधि चुनावों में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी केंद्र में सत्ता में लौट आयी। संगमा उसी निर्वाचन क्षेत्र से लोक सभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए।

केंद्रीय मंत्री

पार्टी संगठन में संगमा द्रुतगति से आगे बढ़े और 1980 में केद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने से पूर्व वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के संयुक्त सचिव बने तथा नवम्बर 1980 में उद्योग मंत्रालय में उपमंत्री बनाए गए। दो वर्षों के बाद वह वाणिज्य मंत्रालय में उपमंत्री बने और दिसम्बर 1984 तक उस पद का कार्यभार संभाला। 1984 के आम चुनावों में संगमा आठवीं लोक सभा के लिए पुनः निर्वाचित हुए। उनकी क्षमताओं और कांग्रेस की विचारधारा के प्रति उनकी निष्ठा को पहचानते हुए श्री राजीव गांधी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया और इस बार उन्हें वाणिज्य तथा आपूर्ति का प्रभार देते हुए राज्य मंत्री बनया। कुछ समय के लिए उन्होंने गृह मंत्रालय के राज्य मंत्री का कार्यभार भी संभाला। अक्तूबर, 1986 में, संगमा ने श्रम मत्रालय के राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार संभाला।

कैबिनेट मंत्री बनने वाले पहले आदिवासी व्यक्ति

1991 के आम चुनावों में वह लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए और इस बार तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पी. वी. नरसिंह राव ने उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया। संगमा को कोयला मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया। फरवरी, 1992 में श्रम मंत्रालय में प्रधानमंत्री की सहायता हेतु उन्हें अतरिक्त जिम्मेदारी सौंपी गयी। केंद्र सरकार द्वारा घोषित आर्थिक सुधारों और उदारीकरण की नीति के संदर्भ में उनके सामने मुख्य चुनौती बेचैन और सशंकित श्रमिकों को आर्थिक सुधारों की विचारधारा को स्वीकार करने के लिए तैयार करना था। त्रिपक्षीय औद्योगिक समिति की बैठकों की लगातार अध्यक्षता करते हुए उन्होंने एक ऐसे नए प्रबंधन और नयी कार्य शैली की आवश्यकता पर बल दिया जिसका मुख्य उद्देश्य कार्यकुशलता, उत्पादकता और आधुनिकीकरण के माध्यम से धन की वृद्धि करना तथा उसका सम्यक वितरण करना था। जनवरी, 1993 में उन्होंने श्रम मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार संभाला। फरवरी, 1995 में संगमा को कैबिनेट स्तर का मंत्री बनाया गया। इस स्तर पर पहुंचने वाले वह पहले आदिवासी व्यक्ति थे।

लोकसभा अध्यक्ष

पी. ए. संगमा 1986 के आम चुनावों में तुरा संसदीय क्षेत्र से पांचवी बार लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए थे। 23 मई, 1996 को सभी पार्टियों ने दलगत भावना से ऊपर उठते हुए उन्हें सर्वसम्मति से 11वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया था। भारत के 50 वर्षों के संसदीय इतिहास में वह ऐसे पहले सदस्य थे, जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए अध्यक्ष का पद संभाला। नि:संदेह संगमा के पास क़ानूनी प्रशिक्षण, सांसद तथा मंत्री के रूप में लंबा अनुभव, निष्पक्षता के लिए नेकनामी, पारदर्शिता, शालीनता, बुद्धिमता तथा हाजिरजवाबी जैसे वे सभी गुण मौजूद थे, जो इस महिमामय पद के लिए आवश्यक होते हैं। अध्यक्ष पद संभालते ही उन्होंने जिस सूझबूझ और विश्वास से अपनी जिम्मेदारी निभायी थी, उससे ऐसा प्रतीत होता था कि वह इस कार्य में स्वभावतः निपुण थे। संसदीय सुधारों के लिए उनकी कार्यशैली अनूठी थी। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वाद-विवाद के उत्तेजनापूर्ण क्षणों के दौरान भी सदस्य नियमों का पालन करते रहें। उनके लिए संसदीय लोकतंत्र का अर्थ था- 'स्वतंत्र वाद-विवाद, निष्पक्ष विचार-विमर्श तथा स्वस्थ आलोचना।' अध्यक्ष के रूप में उन्हें यह सुनिश्चित करना था कि ये उद्देश्य पूरे हों। यद्यपि संगमा दो वर्ष से भी कम अवधि के लिए लोक सभा के अध्यक्ष रहे, फिर भी उन्होंने इस पद पर अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी। उनका भोला-भाला चेहरा, उन्मुक्त हंसी, हाज़िर जवाबी, असीम उत्साह, त्रुटिहीन आचरण तथा सहज विवेक जैसी विशिष्टताओं ने उनका नाम घर-घर में लोकप्रिय बना दिया था और जिस असाधारण कुशलता से उन्होंने सभा की कार्यवाही संचालित की थी, उसके लिए देशभर में लोगों ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। प्रचार माध्यमों ने भी उनके अध्यक्ष पद के कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों को खूब सराहा।

व्यक्तित्व

संगमा बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। सदन में शिष्टाचार, निष्पक्षता और गरिमा बनाए रखने के लिए उनके प्रयासों ने उन्हें उत्कृष्ट सांसद की प्रतिष्ठा दिलायी। तथापि संगमा जिस योग्यता के कारण विभिन्न विचारधाराओं वाले सभी राजनीतिक दलों के लिए स्वीकार्य बने, वह था उनका सदन में दोनों पक्षों के सदस्यों का विश्वास हासिल करने का गुण। सुविधाविहीन लोगों के प्रति उनकी गंभीर चिंता तथा गरीबी और सामाजिक-आर्थिक विषमताओं को दूर करने के उनके अथक प्रयासों ने उन्हें अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया था। नि:संदेह वह अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के जननायक थे। संगमा के व्यक्तित्व के मानवीय पक्ष के कारण ही उनके मित्रों की संख्या काफ़ी अधिक रही।

राष्ट्रपति चुनाव 2012

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) ने प्रणब मुखर्जी को जुलाई, 2012 में भारत के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नियुक्त किया तो विपक्ष की ओर से पी.ए. संगमा लड़े और 25 जुलाई, 2012 को प्रणब मुखर्जी, पी. ए. संगमा को हराकर भारत के 13वें राष्ट्रपति बने।

मृत्यु

पी. ए. संगमा की मृत्यु 4 मार्च, 2016 को नई दिल्ली में हुई।


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