बालाजी विश्वनाथ: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''बालाजी विश्वनाथ''' प्रथम पेशवा (1713-20 ई.) था, जिसका जन्म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
m (Adding category Category:शिवाजी (को हटा दिया गया हैं।))
Line 31: Line 31:
{{शिवाजी}}
{{शिवाजी}}
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:शिवाजी]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 13:10, 30 December 2010

बालाजी विश्वनाथ प्रथम पेशवा (1713-20 ई.) था, जिसका जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ था। शाहू के सेनापति धनाजी जादव ने 1708 ई. में उसे कारकून (राजस्व का क्लर्क) नियुक्त किया। धनाजी की मृत्यु के उपरान्त वह उसके पुत्र चन्द्रसेन जादव के साथ संयुक्त रहा। चन्द्रसेन जादव ने उसे 1712 ई. में सेनाकर्त्ते (सैन्यभार का संगठनकर्ता) की उपाधि दी। इस प्रकार उसे एक असैनिक शासक तथा सैनिक संगठनकर्ता-दोनों रूपों में अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का अवसर मिला। शीघ्र ही शाहू ने उसके द्वारा की गई बहुमूल्य सेवाओं को स्वीकार किया और 16 नवम्बर, 1713 ई. को उसे पेशवा (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया।

योग्य व्यक्ति

सिद्धान्त रूप में प्रतिनिधि का पद पेशवा के पद से ऊँचा था, परन्तु उच्चतर गुणों एवं योग्यताओं के कारण बालाजी विश्वनाथ तथा उसके प्रसिद्ध पुत्र एवं उत्तराधिकारी बाजीराव प्रथम ने पेशवा को मराठा साम्राज्य का वास्तविक प्रधान बना दिया और छत्रपति (राजा) कुछ वर्षों के बाद पृष्ठभुमि में चला गया। उसने मराठा राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि की।

मुग़ल बादशाह से संधि

मराठे लड़खड़ाते हुए साम्राज्य की विक्षिप्त अवस्था से लाभ उठाने में नहीं चुके। बालाजी विश्वनाथ ने वास्तव में हुसैन अली से, किन्तु नाम के लिए दिल्ली के कठपुतले बादशाह से महत्वपूर्ण रियासतें प्राप्त कीं, जब हुसैन अली दक्कन आया था। मराठों को अपने दल में मिलाने के लिए हुसैन अली ने 1714 ई. में उनके साथ निम्नलिखित शर्तों पर एक सन्धि की-

  1. इस संधि के अंतर्गत दस लाख रुपये वार्षिक ख़िराज देने के बदले उसे शाही सेवा के निमित्त 15,000 घुड़सवार तथा दक्षिण में शान्ति व्यवस्था क़ायम रखने का अधिकार प्राप्त हो गया।
  2. शिवाजी के जितने प्रदेशों पर मुग़लों ने अधिकार कर लिया था, वे शाहू को वापस लौटा दिए जाएँगे तथा उनमें मराठों के जीते हुए ख़ानदेश, गोंडवाना एवं बरार के प्रान्त और हैदराबाद एवं कर्नाटक के ज़िले जोड़ दिए जाएँगे।
  3. दक्कन के छ: सूबों की चौथ एवं सरदेशमुखी शाहू को दे दी जाएगी तथा बदले में वह शाही सेवा के लिए पन्द्रह हज़ार घोड़े रखेगा, दस लाख रुपये प्रति वर्ष कर के रूप में देगा और दक्कन में शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखेगा। शाहू के द्वारा दिल्ली के बादशाह का आधिपत्य स्वीकार करने का अर्थ था शिवाजी के पूर्ण स्वतंत्रता के आदर्श का परित्याग। मराठों के द्वारा प्राप्त रियासतों का दिल्ली के आधिपत्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। परन्तु यह याद रखना चाहिए कि इनका व्यापारिक मूल्य बहुत था। 1714 ई. की सन्धि को उचित ही "मराठा इतिहास में एक युगान्तकारी घटना" माना गया है, क्योंकि इसके द्वारा मराठे "शाही सूबों में राजस्व के तथा इसके परिणाम स्वरूप वहाँ की राजनीतिक शक्ति के साझीदार" माने गए।

बालाजी विश्वनाथ की नीति

इस नीति से पेशवा ने मराठों के लिए न केवल उन इलाक़ों को पुन: प्राप्त कर लिया, जो कभी शिवाजी के अधिकार में थे और बाद में मुग़लों के द्वारा छीन लिये गए थे, वरन् मराठी भाषी ज़िले-ख़ानदेश, गोंडवाना, बरार तथा हैदराबाद व कर्नाटक के कुछ हिस्से भी प्राप्त कर लिये। साथ ही उसने मराठा सरकार के लिए मुग़ल साम्राज्य के दक्खिन के छहसूबा में चौथ और सरदेशमुखी एकत्र करने का अधिकार भी प्राप्त कर लिया।

दिल्ली सरकार का अनुरोध

बाद में दिल्ली की सरकार के अनुरोध पर पेशवा ने एक बड़ी मराठा सेना मुग़ल राजधानी में सैयद बन्धुओं की सत्ता बनाये रखने के लिए भेजी, जो दिल्ली की बादशाहत के भाग्यविधाता बन गये थे। दिल्ली दरबार में सैय्यद विरोधी दल की प्रधानता का अन्त करने के लिए सैय्यद हुसैन अली अपने नये मित्रों के साथ सेना लेकर दिल्ली गया, फ़र्रुख़सियर को पदच्युत कर एक-दूसरे कठपुतले को राजसिंहासन पर बैठाया गया तथा उसे हुसैन अली एवं मराठों के बीच की गई सन्धि के प्रमाणित करने को विवश किया गया। 1719 ई. में मराठों का दिल्ली पर बढ़ना उनके इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। "राजधानी में भाड़े के टट्टुओं के रूप में नहीं, वरन् राजा बनाने वालों के मित्रों एवं समर्थकों के रूप में अपनी उपस्थिति से उन्हें यह आशा हुई कि वे भी एक दिन बादशाहों को गद्दी पर बैठा सकते हैं और हटा सकते हैं। वास्तव में यह सबसे निश्चित आधार था, जिस पर बालाजी विश्वनाथ मराठा साम्राज्य की स्थापना करने की नीति का विश्वासपूर्वक निर्माण कर सकता था।" अन्य तरीक़ों से भी मराठों की शक्ति बढ़ी।

मराठों को अधिकार

राजाराम के अशान्तिमय दिनों में जागीर प्रथा के पुन चालू होने के कारण मराठा साहसिकों को अपने लिए स्वतंत्र राज्यों की स्थापना करने के अपूर्व अवसर मिले। इसके अतिरिक्त मराठों को चौथ तथा सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार मिला। इसके लिए बालाजी विश्वनाथ ने प्रमुख मराठा सरदारों को अलग-अलग इलाके बाँट दिये। ये मराठा सरदार संघर्षशील मुसलमान सरदारों के युद्धों में भाड़े के पक्षावलम्बियों के रूप में भी भाग लेते थे।

पेशवा पद

1720 ई. में बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बाजीराव प्रथम, जो एक होनहार युवक था, पेशवा का पद मिला। बालाजी विश्वनाथ के परिवार में पेशवा का पद पैतृक हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-286
  • (पुस्तक 'भारत का बृहत इतिहास') पृष्ठ संख्या-256