ब्रज का स्वतंत्रता संग्राम 1920-1947: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==सम्बंधित लिंक==" to "==संबंधित लेख==") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
Line 7: | Line 7: | ||
[[20 अक्टूबर]] सन् 1921 को मथुरा में दिल्ली सूवे की एक राजनीतिक कांफ्रेंस पंजाबी पेच(चौकी बागबहादुर के पास) स्थान पर हुई थी । दिल्ली के असफअली बैरिस्टर और ला. शंकरलाल बेकर का भी इस अवसर पर आगमन हुआ था । इस कान्फ्रेंस को सफल बनाने में सर्वश्री [[लक्ष्मण प्रसाद नागर]], [[डा. गंगोली]], [[डा. मुन्नालाल]], [[द्वारिकाप्रसाद भरतिया]], [[डा. राजस्वरूप सरीन]], [[नारायणदास बी.ए.]] (वृन्दावन), [[गो. छबीले लाल]](वृन्दावन) आदि ने अथक परिश्रम किया था । 7 नवम्बर सन् 1921 को महात्मा गांधी का 3॥बजे मथुरा में आगमन हुआ और एक विशाल सभा हुई । उनके साथ में मौलाना आजाद, पं. मोतीलाल नेहरू, डा. अन्सारी, श्री मुहम्मद लकई, डा. बाबूराम, डा.लक्ष्मीदत्त आदि का भी आगमन हुआ था । गांधी जी के अतिरिक्त पं. मोतीलाल नेहरू ने भी भाषण दिया था । सरकारी विरोध होते हुए भी यह सभा सफल हुई । [[दिल्ली]], [[आगरा]] और [[अलीगढ]] के 150 स्वयंसेवक और मथुरा के 125 स्वयंसेवक इसमें सम्मिलित हुए थे। | [[20 अक्टूबर]] सन् 1921 को मथुरा में दिल्ली सूवे की एक राजनीतिक कांफ्रेंस पंजाबी पेच(चौकी बागबहादुर के पास) स्थान पर हुई थी । दिल्ली के असफअली बैरिस्टर और ला. शंकरलाल बेकर का भी इस अवसर पर आगमन हुआ था । इस कान्फ्रेंस को सफल बनाने में सर्वश्री [[लक्ष्मण प्रसाद नागर]], [[डा. गंगोली]], [[डा. मुन्नालाल]], [[द्वारिकाप्रसाद भरतिया]], [[डा. राजस्वरूप सरीन]], [[नारायणदास बी.ए.]] (वृन्दावन), [[गो. छबीले लाल]](वृन्दावन) आदि ने अथक परिश्रम किया था । 7 नवम्बर सन् 1921 को महात्मा गांधी का 3॥बजे मथुरा में आगमन हुआ और एक विशाल सभा हुई । उनके साथ में मौलाना आजाद, पं. मोतीलाल नेहरू, डा. अन्सारी, श्री मुहम्मद लकई, डा. बाबूराम, डा.लक्ष्मीदत्त आदि का भी आगमन हुआ था । गांधी जी के अतिरिक्त पं. मोतीलाल नेहरू ने भी भाषण दिया था । सरकारी विरोध होते हुए भी यह सभा सफल हुई । [[दिल्ली]], [[आगरा]] और [[अलीगढ]] के 150 स्वयंसेवक और मथुरा के 125 स्वयंसेवक इसमें सम्मिलित हुए थे। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= |
Revision as of 13:06, 10 January 2011
असहयोग आन्दोलन
सितंबर सन् 1920 में कलकत्ता कांग्रेस ने अपने विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन का सहज स्वागत किया । गांधी जी के आह्रान पर मथुरा ज़िला अपना योगदान देने को प्रस्तुत हो गया । उन दिनों चूंकि कांग्रेज-संगठन की दृष्टि से मथुरा ज़िला दिल्ली प्रान्त में सम्मिलित था अतएव दिल्ली से समय-समय पर कांग्रेसी नेताओं का आगमन होता था । गांधी जी के असहयोग कार्यक्रम के अनुसार सरकारी उपाधियों का त्याग, नौकरियों का त्याग, अंग्रेज़ी अदालतों एवं शिक्षण संस्थाओं में त्याग का भी क्रियान्वयन हुआ । सन् 1921 के प्रारम्भ होने पर असहयोग आंदोलन में तेजी आने लगी तथा मथुरा ज़िले के गांवों एवं कस्बों में भी इसकी लहर फैलने लगी । अड़ींग, गोवर्धन, वृन्दावन एवं कोसी आदि स्थानों में भी राष्द्रीय हलचल प्रारम्भ हो गयी । गोवर्धन में राष्द्रीय चेतना को बढाने में सर्वश्री कृष्णबल्लभ शर्मा, ब्रजकिशोर, रामचन्द्र भट्ट एवं अपंग बाबू आदि प्रमुख थे । वृदावन में सर्वश्री गोस्वामी छबीले लाल, नारायण बी.ए., पुरुषोत्तम लाल, मूलचन्द सर्राफ आदि ने प्रमुख भाग लिया । असहयोग आन्दोलन तीव्र करने के लिए 9 अगस्त सन् 1921 को लाला लाजपत राय के सभापतित्व में वृन्दावन की मिर्जापुर वाली धर्मशाला में एक विशाल सभा हुई थी । इसमें हज़ारों की संख्या में जनता उपस्थित थी । गां0 छबीले लाल ने अभिनन्दन पत्र पढा था । सर्वश्री भगवानदास केला, आनन्दी लाल चतुर्वेदी, हमीद, ब्रजलाल वर्मन ने इस अवसर पर व्याख्यान दिये थे । वृन्दावन के गुरुकुल और प्रेम महाविधालय में भी उनका पदार्पण हुआ था । दूसरे दिन मथुरा के अग्रवाल विधालय में उनका आगमन हुआ । पुरानी कोतवाली (गांधी पार्क) में एक विशाल सभा में उनका भाषण हुआ । इस अवसर पर लाला गोवर्धनदास (लाहौर) का भी स्वदेशी पर भाषण हुआ । मथुरा के श्री द्वारिका प्रसाद भरतिया ने इस अवसर पर लाला लाजपतराय को समाज की ओर से अभिनन्दन पत्र भी दिया था ।
मथुरा राम-बारात केस
4 अक्टूबर सन् 1921 को मथुरा के तमोलियों ने एक भव्य रामलीला की बारात निकालने की योजना बनायी थी । तत्कालीन राष्द्रीयता की लहर ने इसको भी राष्द्रीय रंग से रंग दिया था अतएव विदेशी शासन ने इसके अधिकारियों का दमन करने का निश्चय किया । 19 अक्टूबर और इसके उपरान्त इसी सम्बंध में सर्वश्री ब्रजगोपाल भाटिया, द्वारकानाथ भार्गव, रामनाथ मुख्त्यार, ला. रामनारायण नारायण बेकर, मुंशी नारायण प्रसाद, देवीचरण, रामचन्द्र सूरदास, मुकन्दलाल, श्री निवास, ला. कृष्ण गोपाल, ला. प्रभुदयाल, राधाकांत भार्गव, सूरजभान दलाल, ला. छिदामल, शंकर तमोली, मनोहरी तमोली, ला. कद्दूमल सर्राफ, रणछोरलाल शर्मा, ज्योति स्वरूप, गोपालदास, ठाकुरदास, बद्री प्रसाद, पं0 मूलचन्द, ला. चिरंजीलाल बजाज, पन्नालाल बेदई, परसादी तमोली, ला. पन्नालाल, नन्दकुमार शर्मा, फूलखाँ रंगरेज, जदुनाथ मेहता, मुरलीधर आदि गिरफ़्तार हुए थे । हकीम ब्रजलाल वर्मन और मा0 रामसिंह के भी वारण्ट थे लेकिन बाहर रहने के कारण गिरफ़्तार न हो सके । कुल मिलाकर 43 देशभक्त गिरफ़्तार हुए थे । यह केस 2 नवम्बर सन् 1921 से प्रारम्भ होकर 3 मार्च सन् 1922 को तत्कालीन डिप्टी मजिस्द्रेट श्री द्वारिकानाथ साहू द्वारा छाता में फैसला देने के साथ समाप्त हुआ । 13 अभियुक्तों को मुकदमे के प्रारम्भ में ही छोड दिया गया था । मुकदमे के दौरान 8 अभियुक्तों पर फर्द जुर्म नहीं लगा । अन्त में केवल 20 पर मुक़दमा चलाया गया । इसमें कई को छोड दिया गया । केवल सर्वश्री हकीम ब्रजलाल वर्मन, मास्टर रामसिंह, मनोहरी तमोली, राधाकांत भार्गव, मुकुन्दलाल वर्मन, श्री निवास, काशीनाथ, पन्नालाल वेदई, मौलाना यासीन खाँ आदि दण्डित हुए और जेल गये ।
20 अक्टूबर सन् 1921 को मथुरा में दिल्ली सूवे की एक राजनीतिक कांफ्रेंस पंजाबी पेच(चौकी बागबहादुर के पास) स्थान पर हुई थी । दिल्ली के असफअली बैरिस्टर और ला. शंकरलाल बेकर का भी इस अवसर पर आगमन हुआ था । इस कान्फ्रेंस को सफल बनाने में सर्वश्री लक्ष्मण प्रसाद नागर, डा. गंगोली, डा. मुन्नालाल, द्वारिकाप्रसाद भरतिया, डा. राजस्वरूप सरीन, नारायणदास बी.ए. (वृन्दावन), गो. छबीले लाल(वृन्दावन) आदि ने अथक परिश्रम किया था । 7 नवम्बर सन् 1921 को महात्मा गांधी का 3॥बजे मथुरा में आगमन हुआ और एक विशाल सभा हुई । उनके साथ में मौलाना आजाद, पं. मोतीलाल नेहरू, डा. अन्सारी, श्री मुहम्मद लकई, डा. बाबूराम, डा.लक्ष्मीदत्त आदि का भी आगमन हुआ था । गांधी जी के अतिरिक्त पं. मोतीलाल नेहरू ने भी भाषण दिया था । सरकारी विरोध होते हुए भी यह सभा सफल हुई । दिल्ली, आगरा और अलीगढ के 150 स्वयंसेवक और मथुरा के 125 स्वयंसेवक इसमें सम्मिलित हुए थे।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख