ॠग्वेद: Difference between revisions
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*सबसे प्राचीनतम है। 'ॠक' का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोक। | *सबसे प्राचीनतम है। 'ॠक' का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोक। |
Revision as of 06:59, 20 April 2010
ॠग्वेद / Rigveda
- सबसे प्राचीनतम है। 'ॠक' का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोक।
- ॠग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ॠग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है।
- ॠग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें 1,029 सूक्त हैं और कुल 10,580 ॠचाएँ हैं। ये स्तुति मन्त्र हैं।
- ॠग्वेद के दस मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ मण्डल बड़े हैं।
- प्रथम और अन्तिम मण्डल, दोनों ही समान रूप से बड़े हैं। उनमें सूक्तों की संख्या भी 191 है।
- दूसरे मण्डल से सातवें मण्डल तक का अंश ॠग्वेद का श्रेष्ठ भाग है, उसका ह्रदय है।
- आठवें मण्डल और प्रथम मण्डल के प्रारम्भिक पचास सूक्तों में समानता है।
- नवाँ मण्डल सोम से सम्बन्धित होने से पूर्ण रुप से स्वतन्त्र है। यह नवाँ मण्डल आठ मण्डलों में सम्मिलित सोम सम्बन्धी सूक्तों का संग्रह है, इसमें नवीन सूक्तों की रचना नहीं है।
- दसवें मण्डल में प्रथम मण्डल की सूक्त संख्याओं को ही बनाये रखा है। पर इस मण्डल का विषय, कथा, भाषा आदि सभी परिवर्तीकरण की रचनाएँ हैं।
- ॠग्वेद के मन्त्रों या ॠचाओं की रचना किसी एक ॠषि ने एक निश्चित अवधि में नहीं की अपितु विभिन्न काल में विभिन्न ॠषियों द्वारा ये रची और संकलित की गयीं।
- ॠग्वेद के मन्त्र स्तुति मन्त्र होने से ॠग्वेद का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अधिक है।