User:लक्ष्मी गोस्वामी/अभ्यास4: Difference between revisions
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-स्वर्णमयी | -स्वर्णमयी | ||
{ब्रह्म का विपरीतार्थ शब्द है- | {[[ब्रह्म]] का विपरीतार्थ शब्द है- | ||
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-माया | -माया | ||
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-भक्ति रस | -भक्ति रस | ||
-वत्सल | -[[वत्सल रस]] | ||
-करुण | -[[करुण रस]] | ||
+शांत | +[[शांत रस]] | ||
||शान्त रस [[साहित्य]] में प्रसिद्ध नौ रसों में अन्तिम रस माना जाता है - "शान्तोऽपि नवमो रस:।" इसका कारण यह है कि [[भरतमुनि]] के ‘[[नाट्यशास्त्र भरतमुनि|नाट्यशास्त्र]]’ में, जो रस विवेचन का आदि स्रोत है, नाट्य रसों के रूप में केवल आठ रसों का ही वर्णन मिलता है।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शांत रस]] | |||
{सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता है। | {सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता है। | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-रौद्र रस | -[[रौद्र रस]] | ||
-करुण रस | -[[करुण रस]] | ||
+श्रृंगार रस | +श्रृंगार रस | ||
-वीर रस | -[[वीर रस]] | ||
{[[छंद]] का सर्वप्रथम उल्लेख कहाँ मिलता है? | {[[छंद]] का सर्वप्रथम उल्लेख कहाँ मिलता है? | ||
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+[[ऋग्वेद]] | +[[ऋग्वेद]] | ||
-[[यजुर्वेद]] | -[[यजुर्वेद]] | ||
-सामवेद | -[[सामवेद]] | ||
-उपनिषद | -[[उपनिषद]] | ||
||[[चित्र:Rigveda.jpg|ॠग्वेद का आवरण पृष्ठ|100px|right}}सबसे प्राचीनतम है। 'ॠक' का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोक। ऋग्वेद के सूक्त विविध [[देवता|देवताओं]] की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋग्वेद]] | |||
{[[हिन्दी]] | {[[हिन्दी साहित्य]] के आरंभिक काल को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने क्या कहा है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-आदि काल | -आदि काल | ||
Line 55: | Line 57: | ||
+[[भूषण]] | +[[भूषण]] | ||
-[[केशवदास]] | -[[केशवदास]] | ||
- | -जगनिक | ||
{[[प्रेमचंद]] के अधूरे उपन्यास का नाम है? | {[[प्रेमचंद]] के अधूरे उपन्यास का नाम है? | ||
Line 67: | Line 69: | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द' | -राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिन्द' | ||
+लल्लूलाल | +[[लल्लू लालजी|लल्लूलाल]] | ||
-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | -[[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] | ||
-बालकृष्ण भट्ट | -बालकृष्ण भट्ट | ||
Line 74: | Line 76: | ||
प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार हैं- | प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार हैं- | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[ | +[[तुलसीदास]] | ||
-[[रसखान]] | -[[रसखान]] | ||
-[[बिहारी]] | -[[बिहारी]] | ||
-[[कबीर]] | -[[कबीर]] | ||
||[[चित्र:Tulsidas.jpg|गोस्वामी तुलसीदास|100px|right]]अपने जीवनकाल में तुलसीदास जी ने 12 ग्रन्थ लिखे और उन्हें [[संस्कृत]] विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ट कवियों में एक माना जाता है। तुलसीदासजी को महर्षि [[वाल्मीकि]] का भी अवतार माना जाता है जो मूल आदिकाव्य [[रामायण]] के रचयिता थे।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तुलसीदास]] | |||
{'अमृतवाला तत्व' का तात्पर्य है- | {'अमृतवाला तत्व' का तात्पर्य है- | ||
Line 100: | Line 103: | ||
-अनल | -अनल | ||
{'कठिन काव्य के प्रेत हैं' | {'कठिन काव्य के प्रेत हैं' यह किस कवि के लिए कहा गया है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -निराला | ||
-[[बिहारी]] | -[[बिहारी]] | ||
+[[अज्ञेय]] | +[[अज्ञेय]] | ||
-[[केशवदास]] | -[[केशवदास]] | ||
||[[चित्र:Agyeya.jpg|सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन|100px|right]]अज्ञेय का कृतित्व बहुमुखी है और वह उनके समृद्ध अनुभव की सहज परिणति है। अज्ञेय की प्रारंभ की रचनाएँ अध्ययन की गहरी छाप अंकित करती हैं या प्रेरक व्यक्तियों से दीक्षा की गरमाई का स्पर्श देती हैं, बाद की रचनाएँ निजी अनुभव की परिपक्वता की खनक देती हैं। और साथ ही भारतीय विश्वदृष्टि से तादात्म्य का बोध कराती हैं। अज्ञेय स्वाधीनता को महत्त्वपूर्ण मानवीय मूल्य मानते थे, परंतु स्वाधीनता उनके लिए एक सतत जागरुक प्रक्रिया रही।{{point}} अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अज्ञेय]] | |||
{"मुख रूपी चाँद पर राहु भी धोखा खा गया" पंक्तियों में अलंकार है? | {"मुख रूपी चाँद पर राहु भी धोखा खा गया" पंक्तियों में अलंकार है? |
Revision as of 10:47, 25 July 2011
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