सवैया: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 32: Line 32:
#[[सुखी सवैया]]  
#[[सुखी सवैया]]  


{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}


Line 41: Line 41:


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{छन्द}}
[[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:भाषा कोश]]
[[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:भाषा कोश]][[Category:छन्द]]
[[Category:छंद]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 14:05, 1 December 2011

वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चरण वाले जाति छन्दों को सामूहिक रूप से हिन्दी में सवैया कहने की परम्परा है। इस प्रकार सामान्य जाति-वृत्तों से बड़े और वर्णिक दण्डकों से छोटे छन्द को सवैया समझा जा सकता है। कवित्त - घनाक्षरी के समान ही हिन्दी रीतिकाल में विभिन्न प्रकार के सवैया प्रचलित रहे हैं। संस्कृत में ये समस्त भेद वृत्तात्मक हैं। परन्तु कुछ विद्वान हिन्दी के सवैया को मुक्तक वर्णक के रूप में समझते हैं।

  • जानकीनाथ सिंह ने अपने खोज-निबन्ध 'द कण्ट्रीब्यूशन ऑफ़ हिन्दी पोयट्स टु प्राज़ोडी' के चौथे प्रकरण में इस विषय पर विस्तार से विचार किया है और उनका मत है कि कवियों ने सवैया को वर्णिक सम-वृत्त रूप में लिया है। उसमें लय के साथ गुरु मात्रा का जो लघु उच्चारण किया जाता है, वह हिन्दी की सामान्य प्रवृत्ति है। इसके ह्रस्व ऍ और के उच्चारण के लिए लिपि चिह्न का अभाव भी है।[1] परन्तु हिन्दी में मात्रिक छन्दों के व्यापक प्रयोग के बीच प्रयुक्त इस वर्णिक छन्द पर उनका प्रभाव अवश्य पड़ा है। जिस प्रकार कवित्त एक विशेष लय पर चलता है, उसी प्रकार सवैया भी लयमूलक ही है।
रीति काल में

रीतिकाल की मुक्तक शैली में कवित्त और सवैया का महत्त्वपूर्ण योग है। वैसे भक्तिकाल में ही इन दोनों छन्दों की प्रतिष्ठा हो चुकी थी और तुलसी जैसे प्रमुख कवि ने अपनी 'कवितावली' की रचना इन्ही दो छन्दों में प्रधानत: की है। भगणात्मक, जगणात्मक तथा सगणात्मक सवैये की लय क्षिप्र गति से चलती है और यगण, तगण तथा रगणात्मक सवैये की लय मन्द गति होती है। इनकी लय के साथ वस्तु स्थिति तथा भावस्थिति के चित्र बहुत सफलतापूर्वक अंकित होते हैं। यह छन्द मुक्तक प्रकृति के बहुत अनुकूल है। यह छन्द श्रृंगार रस तथा भक्ति भावना की अभिव्यक्ति के लिए बहुत उत्कृष्ट रूप में प्रयुक्त हुआ है। रीतिकालीन कवियों ने श्रृंगार रस के विभिन्न अंगों, विभाव, अनुभाव, आलम्बन, उद्दीपन, संचारी, नायक-नायिका भेद आदि के लिए इनका चित्रात्मक तथा भावात्मक प्रयोग किया है। रसखान, घनानन्द, आलम जैसे प्रेमी-भक्त कवियों ने भक्ति-भावना के उद्वेग तथा आवेग की सफल अभिव्यक्ति सवैया में की है। भूषण ने वीर रस के लिए इस छन्द का प्रयोग किया है। पर वीर रस इसकी प्रकृति के बहुत अनुकूल नहीं है। आधुनिक कवियों में हरिश्चन्द्र, लक्ष्मण सिंह, नाथूराम शंकर आदि ने इनका सुन्दर प्रयोग किया है। जगदीश गुप्त ने इस छन्द में आधुनिक लक्षणा शक्ति का समावेश किया है।

उपजाति सवैया-

इसका प्रचलन रहा है। सम्भवत: उपजाति सवैया तुलसी की प्रतिभा का परिणाम है। सर्वप्रथम तुलसी ने 'कवितावली' में इसका प्रयोग किया है। उपजाति का अर्थ है जिसमें दो भिन्न सवैया एक साथ प्रयुक्त हुए हों। केशवदास ने भी इस दिशा में प्रयोग किये हैं।

मत्तगयन्द-सुन्दरी-

ये दोनों सवैया कई प्रकार के एक साथ प्रयुक्त हुए हैं। तुलसी ने इसका सबसे अधिक प्रयोग किया है। केशव तथा रसखान ने उनका अनुसरण किया है।

  • प्रथम पद मत्तगयन्द का (7 भ+ग ग) - "या लटुकी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुरको तजि डारौ"।
  • तीसरा पद सुन्दरी (8 स+ग) - "रसखानि कबों इन आँखिनते, ब्रजके बन बाग़ तड़ाग निहारौ"।[2]
मदिरा-दुर्मिल-

तुलसी ने एक पद मदिरा का रखकर शेष दुर्मिल के पद रखे हैं। केशव ने भी इसका अनुसरण किया है।

  • पहला मदिरा का पद (7 भ+ग) - "ठाढ़े हैं नौ द्रम डार गहे, धनु काँधे धरे कर सायक लै"।
  • दूसरा दुर्मिल का पद (8 स) - "बिकटी भृकुटी बड़री अँखियाँ, अनमोल कपोलन की छवि है"।[3]

इनके अतिरिक्त मत्तगयन्द-वाम और वाम-सुन्दरी के विभिन्न उपजाति तुलसी की 'कवितावली' में तथा केशव की 'रसिकप्रिया' में मिलते हैं। वस्तुत: इस प्रकार के प्रयोग कवियों ने भाव-चित्रणों में अधिक सौन्दर्य तथा चमत्कार उत्पन्न करने की दृष्टि से किया है।[4]

प्रकार

सवैया को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है-

  1. मदिरा सवैया
  2. मत्तगयन्द सवैया
  3. सुमुखि सवैया
  4. दुर्मिल सवैया
  5. किरीट सवैया
  6. गंगोदक सवैया
  7. मुक्तहरा सवैया
  8. वाम सवैया
  9. अरसात सवैया
  10. सुन्दरी सवैया
  11. अरविन्द सवैया
  12. मानिनी सवैया
  13. महाभुजंगप्रयात सवैया
  14. सुखी सवैया


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अप्रकाशित निबंध से
  2. रसखान
  3. कवितावली 2
  4. जानकीनाथ सिंह : द कण्ट्रीब्यूशन ऑफ़ हिन्दी पोयट्स टु प्राज़ोडी, अप्रकाशित

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 740।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख