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सम्राट [[अकबर]] के समय में नागौर मुग़ल साम्राज्य का अंग था। 1570 ई. में अकबर ने नागौर में दरबार लगाया था, जिसमें अनेक राजपूत राजाओं ने अकबर से मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। | सम्राट [[अकबर]] के समय में नागौर मुग़ल साम्राज्य का अंग था। 1570 ई. में अकबर ने नागौर में दरबार लगाया था, जिसमें अनेक राजपूत राजाओं ने अकबर से मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। | ||
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Revision as of 14:09, 6 March 2012
नागौर राजस्थान राज्य, जयपुर से उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह क्षेत्र प्राकऐतिहासिक है, किंतु नागौर की प्रसिद्धि मध्ययुगीन है। सपादलक्ष अर्थात सांभर एवं नागौर चौहानों के मूल स्थान थे।
इतिहास
भारत में तुर्को के आगमन के साथ ही नागौर उनकी शाक्ति का केन्द्र बन गया। नागौर महाराणा कुम्भा के अधीन भी रहा। पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में गुजरात के मुस्लिम शासकों की नागौर की राजनीति में दिलचस्पी रही। सन् 1534 ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह द्वितीय ने नागौर पर थोड़े समय के लिए अधिकार कर लिया था। सम्राट अकबर के समय में नागौर मुग़ल साम्राज्य का अंग था। 1570 ई. में अकबर ने नागौर में दरबार लगाया था, जिसमें अनेक राजपूत राजाओं ने अकबर से मिलकर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी।
प्रसिद्ध केन्द्र
राजस्थान में अजमेर के बाद नागौर ही सूफी मत का प्रसिद्ध केन्द्र रहा। यहाँ पर ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती के शिष्य शेख हमीदुद्दीन नागौरी (1192-1274 ई.) ने अपने गुरु के आदेशानुसार सूफी मत का प्रचार-प्रसार किया। यद्यपि इनका जन्म दिल्ली में हुआ था लेकिन इनका अधिकांश समय नागौर में ही बीता। इन्होंने अपना जीवन एक आत्मनिर्भर किसान की तरह गुजारा और नागौर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति सुवाल नामक गाँव में खेती की। वे पूर्णतः शाकाहारी थे एवं अपने शिष्यों से भी शाकाहारी रहने को कहते थे। इनकी गरीबी को देखकर नागौर के प्रशासक ने इन्हें कुछ नकद एवं ज़मीन देने की पेशकश की, जिसको इन्होंने अस्वीकार कर दिया।
गुम्बद का निर्माण
हमीदुद्दीन नागौरी समंवयवादी थे इन्होंने भारतीय वातावरण के अनुरूप सूफी आन्दोलन को आगे को आगे बढ़ाया। नागौर में चिश्ती सम्प्रदाय के इस सूफी संत की मजार आज भी याद दिला रही है। इस मजार पर मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने एक गुम्बद का निर्माण करवाया था जो 1330 ई. में बनकर पूर्ण हुआ।
सम्प्रदाय का केन्द्र
नागौर को सूफी मत के केन्द्र के रूप में पुनर्स्थापित करने की दिशा में यहाँ के सूफी संत ख्वाजा मखदूम हुसैन नागौरी (15वीं शताब्दी) का नाम उल्लेखनीय है। 16 वीं शताब्दी में नागौर में राजपूत शाक्ति के उदय के बावजूद भी नागौर सूफी सम्प्रदाय का केन्द्र बना रहा। अकबर के दरबारी शेख मुबारक के पिता एवं अबुल फ़जल के दादा शेख ख़िज़्र नागौर में ही आकर बस गये थे। नागौर की प्राचीन इमारतों में अतारिकिन का विशाल दरवाजा प्रसिद्ध है, जिसे 1230 ई. में इल्तुतमिश ने बनवाया था।
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