प्रयोग:रविन्द्र१: Difference between revisions
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<quiz display=simple> | <quiz display=simple> | ||
{निम्नलिखित में से किस सुल्तान ने सैन्य सेवा को वंशानुगत बनाया? | {निम्नलिखित में से किस सुल्तान ने सैन्य सेवा को वंशानुगत बनाया? | ||
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-[[इल्तुतमिश]] | -[[इल्तुतमिश]] | ||
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||'फ़िरोजशाह तुग़लक़' के शासन काल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 तक पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान ने 'दीवान-ए-बंदग़ान' की स्थापना की। कुछ दास प्रांतों में भेजे गये तथा शेष को केन्द्र में रखा गया। दासों को नकद वेतन या भूखण्ड दिए गये। दासों को दस्तकारी का प्रशिक्षण भी दिया गया। सैन्य व्यवस्था के अन्तर्गत [[फ़िरोजशाह तुग़लक़|फ़िरोज]] ने सैनिकों को पुनः जागीर के रूप में वेतन देना प्रारम्भ कर दिया। उसने सैन्य पदों को वंशानुगत बना दिया, इससे सैनिकों की योग्यता की जाँच पर असर पड़ा। 'खुम्स' का 4/5 भाग फिर से सैनिकों को देने के आदेश दिए गये। कुछ समय बाद उसका भयानक परिणम सामने आया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||'फ़िरोजशाह तुग़लक़' के शासन काल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 तक पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान ने 'दीवान-ए-बंदग़ान' की स्थापना की। कुछ दास प्रांतों में भेजे गये तथा शेष को केन्द्र में रखा गया। दासों को नकद वेतन या भूखण्ड दिए गये। दासों को दस्तकारी का प्रशिक्षण भी दिया गया। सैन्य व्यवस्था के अन्तर्गत [[फ़िरोजशाह तुग़लक़|फ़िरोज]] ने सैनिकों को पुनः जागीर के रूप में वेतन देना प्रारम्भ कर दिया। उसने सैन्य पदों को वंशानुगत बना दिया, इससे सैनिकों की योग्यता की जाँच पर असर पड़ा। 'खुम्स' का 4/5 भाग फिर से सैनिकों को देने के आदेश दिए गये। कुछ समय बाद उसका भयानक परिणम सामने आया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
{किसके शासन काल को [[इब्नबतूता]] ने "एक बहुत बड़ा समारोह" कहा है? | {किसके शासन काल को [[इब्नबतूता]] ने "एक बहुत बड़ा समारोह" कहा है? | ||
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-[[सुल्तान महमूद]] | -[[सुल्तान महमूद]] | ||
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||'कैकुबाद' (1287-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठाया गया था। इसके पूर्व [[बलबन]] ने अपनी मृत्यु से पहले कैख़ुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन दिल्ली के कोतवाल फ़ख़रुद्दीन मुहम्मद ने बलबन की मृत्यु के बाद कूटनीति के द्वारा कैख़ुसरो को [[मुल्तान]] की सूबेदारी देकर [[कैकुबाद]] को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा दिया। [[अफ़्रीका|अफ़्रीकी]] यात्री [[इब्नबतूता]] ने कैकुबाद के समय में यात्रा की थी, उसने सुल्तान के शासन काल को 'एक बड़ा समारोह' कहकर उसकी प्रशंसा की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कैकुबाद]] | ||'कैकुबाद' (1287-1290 ई.) को 17-18 वर्ष की अवस्था में [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठाया गया था। इसके पूर्व [[बलबन]] ने अपनी मृत्यु से पहले कैख़ुसरो को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। लेकिन दिल्ली के कोतवाल फ़ख़रुद्दीन मुहम्मद ने बलबन की मृत्यु के बाद कूटनीति के द्वारा कैख़ुसरो को [[मुल्तान]] की सूबेदारी देकर [[कैकुबाद]] को दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा दिया। [[अफ़्रीका|अफ़्रीकी]] यात्री [[इब्नबतूता]] ने कैकुबाद के समय में यात्रा की थी, उसने सुल्तान के शासन काल को 'एक बड़ा समारोह' कहकर उसकी प्रशंसा की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कैकुबाद]] | ||
{[[सल्तनत काल]] में 'हक-ए-शर्ब' क्या था? | {[[सल्तनत काल]] में 'हक-ए-शर्ब' क्या था? | ||
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-धार्मिक कर | -धार्मिक कर | ||
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-हज कर | -हज कर | ||
{किस [[मुग़ल]] बादशाह का राज्याभिषेक [[बैरम ख़ाँ]] द्वारा 'कलानौर' में किया गया? | {किस [[मुग़ल]] बादशाह का राज्याभिषेक [[बैरम ख़ाँ]] द्वारा 'कलानौर' में किया गया? | ||
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+[[अकबर]] | +[[अकबर]] | ||
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||[[चित्र:Akbar-Sketch.jpg|right|100px|अकबर की मृत्यु से कुछ समय पहले का चित्र]][[दिल्ली]] के तख्त पर बैठने के बाद [[मुग़ल]] बादशाह [[हुमायूँ]] का यह दुर्भाग्य ही था कि वह अधिक दिनों तक सत्ताभोग नहीं कर सका। [[जनवरी]], 1556 ई. में ‘दीनपनाह’ भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुमायूँ की मुत्यु हो गयी। हुमायूँ की मृत्यु का समाचार सुनकर [[बैरम ख़ाँ]] ने [[गुरदासपुर]] के निकट ‘कलानौर’ में [[14 फ़रवरी]], 1556 ई. को [[अकबर]] का राज्याभिषेक करवा दिया और वह 'जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाह ग़ाज़ी' की उपाधि से राजसिंहासन पर बैठा। राज्याभिषेक के समय अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष 4 महीने की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकबर]] | ||[[चित्र:Akbar-Sketch.jpg|right|100px|अकबर की मृत्यु से कुछ समय पहले का चित्र]][[दिल्ली]] के तख्त पर बैठने के बाद [[मुग़ल]] बादशाह [[हुमायूँ]] का यह दुर्भाग्य ही था कि वह अधिक दिनों तक सत्ताभोग नहीं कर सका। [[जनवरी]], 1556 ई. में ‘दीनपनाह’ भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरने के कारण हुमायूँ की मुत्यु हो गयी। हुमायूँ की मृत्यु का समाचार सुनकर [[बैरम ख़ाँ]] ने [[गुरदासपुर]] के निकट ‘कलानौर’ में [[14 फ़रवरी]], 1556 ई. को [[अकबर]] का राज्याभिषेक करवा दिया और वह 'जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर बादशाह ग़ाज़ी' की उपाधि से राजसिंहासन पर बैठा। राज्याभिषेक के समय अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष 4 महीने की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकबर]] | ||
{'अद्धा' और 'मिस्र' नामक दो सिक्के चलाने का श्रेय किसे दिया जाता है? | {'अद्धा' और 'मिस्र' नामक दो सिक्के चलाने का श्रेय किसे दिया जाता है? | ||
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-[[कुतुबुद्दीन ऐबक]] | -[[कुतुबुद्दीन ऐबक]] | ||
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||फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने मुद्रा व्यवस्था के अन्तर्गत बड़ी संख्या में [[ताँबा]] एवं [[चाँदी]] के मिश्रण से निर्मित सिक्के जारी करवाये, जिन्हें सम्भवतः 'अद्धा' एवं 'मिस्र' कहा जाता था। फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने 'शंशगानी सिक्का', जो कि 6 जीतल का था, चलवाया था। उसने सिक्कों पर अपने नाम के साथ अपने पुत्र अथवा उत्तराधिकारी 'फ़तह ख़ाँ' का नाम भी अंकित करवाया। फ़िरोज ने अपने को 'ख़लीफ़ा का नाइब' पुकारा तथा सिक्कों पर ख़लीफ़ा का नाम अंकित करवाया। फ़िरोजशाह तुग़लक़ का शासन कल्याणकारी निरंकुशता पर आधारित था। वह प्रथम सुल्तान था, जिसनें विजयों तथा युद्धों की तुलना में अपनी प्रजा की भौतिक उन्नति को श्रेष्ठ स्थान दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने मुद्रा व्यवस्था के अन्तर्गत बड़ी संख्या में [[ताँबा]] एवं [[चाँदी]] के मिश्रण से निर्मित सिक्के जारी करवाये, जिन्हें सम्भवतः 'अद्धा' एवं 'मिस्र' कहा जाता था। फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने 'शंशगानी सिक्का', जो कि 6 जीतल का था, चलवाया था। उसने सिक्कों पर अपने नाम के साथ अपने पुत्र अथवा उत्तराधिकारी 'फ़तह ख़ाँ' का नाम भी अंकित करवाया। फ़िरोज ने अपने को 'ख़लीफ़ा का नाइब' पुकारा तथा सिक्कों पर ख़लीफ़ा का नाम अंकित करवाया। फ़िरोजशाह तुग़लक़ का शासन कल्याणकारी निरंकुशता पर आधारित था। वह प्रथम सुल्तान था, जिसनें विजयों तथा युद्धों की तुलना में अपनी प्रजा की भौतिक उन्नति को श्रेष्ठ स्थान दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[फ़िरोजशाह तुग़लक़]] | ||
{'महाराष्ट्र धर्म' का प्रणेता किसे माना जाता है? | {'महाराष्ट्र धर्म' का प्रणेता किसे माना जाता है? | ||
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+[[ज्ञानेश्वर]] | +[[ज्ञानेश्वर]] | ||
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||[[चित्र:Sant-Gyaneshwar.gif|right|100px|संत ज्ञानेश्वर]]'संत ज्ञानेश्वर' की गणना [[भारत]] के महान संतों एवं [[मराठी]] कवियों में होती है। इनका जन्म 1275 ई. में [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर]] ज़िले में [[पैठाण]] के पास आपेगाँव में [[भाद्रपद]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को हुआ था। पंद्रह वर्ष की उम्र में ही [[ज्ञानेश्वर]] भगवान [[श्रीकृष्ण]] के [[भक्त]] और योगी बन चुके थे। अपने बड़े भाई 'निवृत्तिनाथ' के कहने पर उन्होंने एक वर्ष के अंदर ही [[श्रीमद्भागवदगीता]] पर टीका लिख डाली। 'ज्ञानेश्वरी' नाम का यह [[ग्रंथ]] मराठी भाषा का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ 10,000 पद्यों में लिखा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज्ञानेश्वर]] | ||[[चित्र:Sant-Gyaneshwar.gif|right|100px|संत ज्ञानेश्वर]]'संत ज्ञानेश्वर' की गणना [[भारत]] के महान संतों एवं [[मराठी]] कवियों में होती है। इनका जन्म 1275 ई. में [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर]] ज़िले में [[पैठाण]] के पास आपेगाँव में [[भाद्रपद]] के [[कृष्ण पक्ष]] की [[अष्टमी]] को हुआ था। पंद्रह वर्ष की उम्र में ही [[ज्ञानेश्वर]] भगवान [[श्रीकृष्ण]] के [[भक्त]] और योगी बन चुके थे। अपने बड़े भाई 'निवृत्तिनाथ' के कहने पर उन्होंने एक वर्ष के अंदर ही [[श्रीमद्भागवदगीता]] पर टीका लिख डाली। 'ज्ञानेश्वरी' नाम का यह [[ग्रंथ]] मराठी भाषा का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ 10,000 पद्यों में लिखा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज्ञानेश्वर]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[हुमायूँ]] के शासन के बारे में सूचना देती है? | {निम्नलिखित में से कौन-सी पुस्तक [[हुमायूँ]] के शासन के बारे में सूचना देती है? | ||
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+तारीख-ए-रशीदी | +तारीख-ए-रशीदी | ||
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-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
{निम्न में से कौन-सा एक रोग [[मीर जुमला]] की मृत्यु का कारण था? | {निम्न में से कौन-सा एक रोग [[मीर जुमला]] की मृत्यु का कारण था? | ||
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-कैंसर | -कैंसर | ||
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||'प्लूरिसी' मानव में होने वाला एक रोग है। [[मानव शरीर]] में [[फेफड़ा|फेफड़े]] और छाती की अन्दरूनी दोहरी परत को ढकने वाली पतली झिल्ली को 'प्लूरा' कहते हैं। अगर इस झिल्ली में किसी तरह का संक्रमण हो जाता है तो उसे 'प्लूरिसी रोग' कहा जाता है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके फेफड़े की झिल्लियाँ थोड़ी मोटी हो जाती है और इसमें पाई जाने वाली दोनों सतह एक-दूसरे से टकराने लगती हैं। इन दोनों सतहों के बीच [[द्रव्य]] भरा रहता है, जो इस रोग के कारण एक जगह ठहर जाता है और अपने स्थान से बाहर होकर जमा होने लगता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्लूरिसी]] | ||'प्लूरिसी' मानव में होने वाला एक रोग है। [[मानव शरीर]] में [[फेफड़ा|फेफड़े]] और छाती की अन्दरूनी दोहरी परत को ढकने वाली पतली झिल्ली को 'प्लूरा' कहते हैं। अगर इस झिल्ली में किसी तरह का संक्रमण हो जाता है तो उसे 'प्लूरिसी रोग' कहा जाता है। जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके फेफड़े की झिल्लियाँ थोड़ी मोटी हो जाती है और इसमें पाई जाने वाली दोनों सतह एक-दूसरे से टकराने लगती हैं। इन दोनों सतहों के बीच [[द्रव्य]] भरा रहता है, जो इस रोग के कारण एक जगह ठहर जाता है और अपने स्थान से बाहर होकर जमा होने लगता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्लूरिसी]] | ||
{मुग़लकालीन [[भारत]] में बादशाह के बाद प्रमुख स्थान किस वर्ग को प्राप्त था? | {मुग़लकालीन [[भारत]] में बादशाह के बाद प्रमुख स्थान किस वर्ग को प्राप्त था? | ||
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-व्यापारियों को | -व्यापारियों को | ||
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+अमीरों को | +अमीरों को | ||
{यह कथन किसका है- "इतिहास की जानकारी के वगैर रदीस को समझना सम्भव नहीं है? | {यह कथन किसका है- "इतिहास की जानकारी के वगैर रदीस को समझना सम्भव नहीं है? | ||
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-[[अमीर ख़ुसरो]] | -[[अमीर ख़ुसरो]] | ||
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||ज़ियाउद्दीन बरनी '[[भारत का इतिहास]]' लिखने वाला पहला ज्ञात [[मुस्लिम]] था। वह [[दिल्ली]] में सुल्तान [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] का 'नदीम' अर्थात 'प्रिय साथी' बनकर 17 वर्षों तक रहा था। [[ज़ियाउद्दीन बरनी|ज़ियाउद्दीन]] '[[बरन]]', आधुनिक [[बुलन्दशहर]] का रहने वाला था। यही कारण था कि वह अपने नाम के साथ 'बरनी' लिखता था। इसका बचपन अपने चाचा 'अला-उल-मुल्क' के साथ व्यतीत हुआ, जो [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के दरबार में सलाहकार था। संभवतः बरनी ने 46 विद्धानों से शिक्षा ग्रहण की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जियाउद्दीन बरनी]] | ||ज़ियाउद्दीन बरनी '[[भारत का इतिहास]]' लिखने वाला पहला ज्ञात [[मुस्लिम]] था। वह [[दिल्ली]] में सुल्तान [[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] का 'नदीम' अर्थात 'प्रिय साथी' बनकर 17 वर्षों तक रहा था। [[ज़ियाउद्दीन बरनी|ज़ियाउद्दीन]] '[[बरन]]', आधुनिक [[बुलन्दशहर]] का रहने वाला था। यही कारण था कि वह अपने नाम के साथ 'बरनी' लिखता था। इसका बचपन अपने चाचा 'अला-उल-मुल्क' के साथ व्यतीत हुआ, जो [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] के दरबार में सलाहकार था। संभवतः बरनी ने 46 विद्धानों से शिक्षा ग्रहण की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जियाउद्दीन बरनी]] | ||
{[[भारत]] में [[डच]] शक्ति का केन्द्र बिन्दु क्या था? | {[[भारत]] में [[डच]] शक्ति का केन्द्र बिन्दु क्या था? | ||
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-[[मसुलीपटटम|मसूलीपट्टम]] | -[[मसुलीपटटम|मसूलीपट्टम]] | ||
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-कोरोमण्डल | -कोरोमण्डल | ||
{[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने मलमल का व्यापार [[भारत]] में कहाँ से प्रारम्भ किया? | {[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने मलमल का व्यापार [[भारत]] में कहाँ से प्रारम्भ किया? | ||
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-[[सूरत]] | -[[सूरत]] | ||
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||[[चित्र:Tajmahal-10.jpg|right|120px|ताजमहल, आगरा]]'आगरा' [[उत्तर प्रदेश]] प्रान्त का एक ज़िला, शहर व तहसील है। 16वीं सदी के आरंभ में इसकी स्थापना [[सिकन्दर लोदी]] ने की थी। [[मुग़ल]] शासकों [[अकबर]], [[जहाँगीर]] और [[शाहजहाँ]] के शासन काल में [[आगरा]] मुग़ल राजधानी थी। [[मध्य काल]] में आगरा, [[गुजरात]] तट के बंदरगाहों और पश्चिमी [[गंगा]] के मैदानों के बीच के व्यापार मार्ग पर एक महत्त्वपूर्ण शहर था। [[मुग़ल साम्राज्य]] के पतन के साथ ही 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यह शहर क्रमशः [[जाट|जाटों]], [[मराठा|मराठों]], [[मुग़ल|मुग़लों]] और [[ग्वालियर]] के शासक के अधीन रहा और अंततः 1803 में [[अंग्रेज़]] शासन के अंतर्गत आ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आगरा]] | ||[[चित्र:Tajmahal-10.jpg|right|120px|ताजमहल, आगरा]]'आगरा' [[उत्तर प्रदेश]] प्रान्त का एक ज़िला, शहर व तहसील है। 16वीं सदी के आरंभ में इसकी स्थापना [[सिकन्दर लोदी]] ने की थी। [[मुग़ल]] शासकों [[अकबर]], [[जहाँगीर]] और [[शाहजहाँ]] के शासन काल में [[आगरा]] मुग़ल राजधानी थी। [[मध्य काल]] में आगरा, [[गुजरात]] तट के बंदरगाहों और पश्चिमी [[गंगा]] के मैदानों के बीच के व्यापार मार्ग पर एक महत्त्वपूर्ण शहर था। [[मुग़ल साम्राज्य]] के पतन के साथ ही 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यह शहर क्रमशः [[जाट|जाटों]], [[मराठा|मराठों]], [[मुग़ल|मुग़लों]] और [[ग्वालियर]] के शासक के अधीन रहा और अंततः 1803 में [[अंग्रेज़]] शासन के अंतर्गत आ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आगरा]] | ||
{[[सल्तनत काल]] में शाही पत्र व्यवहार किस मंत्री का कार्य था? | {[[सल्तनत काल]] में शाही पत्र व्यवहार किस मंत्री का कार्य था? | ||
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-वज़ीर | -वज़ीर | ||
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||'दीवान-ए-इंशा' [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में [[सल्तनत काल]] का एक महत्त्वपूर्ण पद था। इस पद पर कार्य करने वाला व्यक्ति 'दबीर-ए-मुमालिक' विभाग के अन्तर्गत आता था। शाही पत्र व्यवहार के लिए कार्य करने का भार इस विभाग द्वारा होता था। यह सुल्तान की घोषणाओं एवं पत्रों का मसविदा तैयार करता था। सभी राजकीय [[अभिलेख]] इसी कार्यालय में सुरक्षित रखे जाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दीवान-ए-इंशा]] | ||'दीवान-ए-इंशा' [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में [[सल्तनत काल]] का एक महत्त्वपूर्ण पद था। इस पद पर कार्य करने वाला व्यक्ति 'दबीर-ए-मुमालिक' विभाग के अन्तर्गत आता था। शाही पत्र व्यवहार के लिए कार्य करने का भार इस विभाग द्वारा होता था। यह सुल्तान की घोषणाओं एवं पत्रों का मसविदा तैयार करता था। सभी राजकीय [[अभिलेख]] इसी कार्यालय में सुरक्षित रखे जाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दीवान-ए-इंशा]] | ||
{[[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] की प्रथम कोठी 1668 ई. में कहाँ स्थापित हुई थी? | {[[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] की प्रथम कोठी 1668 ई. में कहाँ स्थापित हुई थी? | ||
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-[[मुम्बई]] में | -[[मुम्बई]] में | ||
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||[[चित्र:Parle-Point-Surat.jpg|right|100px|परले पॉइंट, सूरत]]12वीं से 15वीं शताब्दी तक [[सूरत]] [[मुस्लिम]] शासकों, [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]], [[मुग़ल|मुग़लों]] और [[मराठा|मराठों]] के आक्रमणों का शिकार हुआ था। 1514 में [[पुर्तग़ाली]] यात्री 'दुआरते बारबोसा' ने सूरत का वर्णन एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में किया। यहाँ [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] ने अपनी पहली कोठी 'फ़्रैकों कैरो' द्वारा 1668 ई. में स्थापित की थी। [[गोलकुण्डा]] रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्र प्राप्त करने के बाद फ़्राँसीसियों ने अपनी दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ई. में [[मसुलीपट्टम]] में की। 18वीं शताब्दी में धीरे-धीरे सूरत का पतन होने लगा था। उस समय [[अंग्रेज़]] और [[डच]], दोनों ने सूरत पर नियंत्रण का दावा किया, लेकिन 1800 ई. में अंग्रेज़ों का इस पर अधिकार हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरत]] | ||[[चित्र:Parle-Point-Surat.jpg|right|100px|परले पॉइंट, सूरत]]12वीं से 15वीं शताब्दी तक [[सूरत]] [[मुस्लिम]] शासकों, [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]], [[मुग़ल|मुग़लों]] और [[मराठा|मराठों]] के आक्रमणों का शिकार हुआ था। 1514 में [[पुर्तग़ाली]] यात्री 'दुआरते बारबोसा' ने सूरत का वर्णन एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में किया। यहाँ [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] ने अपनी पहली कोठी 'फ़्रैकों कैरो' द्वारा 1668 ई. में स्थापित की थी। [[गोलकुण्डा]] रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्र प्राप्त करने के बाद फ़्राँसीसियों ने अपनी दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ई. में [[मसुलीपट्टम]] में की। 18वीं शताब्दी में धीरे-धीरे सूरत का पतन होने लगा था। उस समय [[अंग्रेज़]] और [[डच]], दोनों ने सूरत पर नियंत्रण का दावा किया, लेकिन 1800 ई. में अंग्रेज़ों का इस पर अधिकार हो गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरत]] | ||
{[[महाराष्ट्र]] में [[भक्ति आन्दोलन]] की शुरुआत कब हुई? | {[[महाराष्ट्र]] में [[भक्ति आन्दोलन]] की शुरुआत कब हुई? | ||
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-1120 ई. में | -1120 ई. में | ||
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-1327 ई. में | -1327 ई. में | ||
{'जमोरिन' कौन था? | {'जमोरिन' कौन था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[कालीकट]] का राजा | +[[कालीकट]] का राजा |
Revision as of 06:59, 29 July 2012
इतिहास सामान्य ज्ञान
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