गाडविन आस्टिन (के 2): Difference between revisions

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====पहला प्रयास====
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[[1902]] में ब्रिटिश पर्वतारोही एलीस्टर क्रॉले और ऑस्कर एकिनस्टीन समेत 6 पर्वतारोहियों का अभियान दल के-2 पर चढ़ाई का सर्वप्रथम प्रयास करने पहुँचा। इस दल ने पर्वत पर 68 दिन बिताए जिसमें से चढ़ाई के लिए अनुकूल केवल 8 दिन ही मिल पाए। इनमें शिखर पर पहुँचने के 5 प्रयास किए गए। लेकिन खराब मौसम और तमाम प्रतिकूलताओं के कारण दल के सभी प्रयास विफल रहे और अंततः उन्हें हार माननी पड़ी।
[[1902]] में ब्रिटिश पर्वतारोही एलीस्टर क्रॉले और ऑस्कर एकिनस्टीन समेत 6 पर्वतारोहियों का अभियान दल के-2 पर चढ़ाई का सर्वप्रथम प्रयास करने पहुँचा। इस दल ने पर्वत पर 68 दिन बिताए जिसमें से चढ़ाई के लिए अनुकूल केवल 8 दिन ही मिल पाए। इनमें शिखर पर पहुँचने के 5 प्रयास किए गए। लेकिन ख़राब मौसम और तमाम प्रतिकूलताओं के कारण दल के सभी प्रयास विफल रहे और अंततः उन्हें हार माननी पड़ी।


====पहली सफलता====
====पहली सफलता====

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गाडविन आस्टिन (Godwin Austin) (माउंट के-2 / K-2) पर्वत|thumb|250px गाडविन आस्टिन (अंग्रेज़ी: Godwin Austin) (माउंट के-2 / K-2) पर्वत, हिमालय का नहीं, बल्कि पीओके में कश्मीर के कराकोरम पर्वतमाला श्रेणी की सबसे ऊँची चोटी है, जो उत्तरी कश्मीर में 35 53 उ. अ. और 76 31 पू. दे. पर है। यह चीन के तक्सकोर्गन ताजिक, झिंगजियांग और पाकिस्तान के गिलगित- बाल्टिस्तान की सीमाओं के बीच स्थित है। यह संसार में एवरेस्ट के बाद दूसरी सबसे ऊँची चोटी है, जो 28,250 फुट / 8611 मीटर ऊँची है। यह चोटी प्राय: हिमाच्छादित तथा बादलों में छिपी रहती है। इसके पार्श्व में 30 और 40 मील लंबी हिमसरिताएँ हैं। इसके नाम की हिमसरिता तो इसके आधार पर ही है। हिमाचल प्रदेश में 16,000 फुट से अधिक ऊँचाई पर हमेशा बर्फ़ जमी रहती है। इसलिए इस पर्वतमाला को हिमालय कहना सर्वथा उपयुक्त है।

नामकरण

  • इसका नामकरण हेनरी हैवरशम गाडविन आस्टिन (1834-1923 ई.) के नाम पर हुआ है जिसने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसका सर्वेक्षण किया था। उसने इस समय इसका नाम के टू (K2) रखा था। इसको स्थानीय लोग दाप्सांग कहते है।

thumb|250px|left|गाडविन आस्टिन (के 2)

  • इस पहाड़ का नाम 'के-2' 1852 में ब्रिटिश सर्वेक्षक टीजी मोंटगोमेर्य ने दिया। चूँकि यह काराकोरम पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है, इसलिए 'के' और दूसरे क्रम पर होने के कारण '2'। इसका स्थानीय नाम है 'छोगोरी'। बाल्टिक भाषा के इस शब्द का मतलब होता है विशाल पहाड़।
  • के-2 को इसके विकट मौसम और कठिनाइयों के चलते 'सेवेज माउंटेन' भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है हिंसक पर्वत। तकनीकी चढ़ाई, कठोर मौसम और हिमस्खलन के भारी खतरे के साथ के-2 चढ़ाई के लिए 'एटथाउसेन्डर' के सबसे मुश्किल पहाड़ों में से एक है। पर्वतारोही इस दुखदायी पर्वत पर जून से अगस्त के बीच ही चढ़ाई के प्रयास करते हैं। यह एक ऐसा पर्वत है जिस पर सर्दी के मौसम में आज तक कोई भी चढ़ाई नहीं कर पाया है।

शिखर पर विजय

  • वर्ष 2009 तक 305 पर्वतारोही के-2 के शिखर पर पहुँचने के प्रयास कर चुके हैं जिनमें से 76 मारे गए। के-2 का 'डेडलिएस्ट ईयर' कहा जाने वाला वर्ष 1986 सबसे दुखद वर्ष था, जब इस पर 27 में से 13 पर्वतारोही मारे गए थे। के टू को माउंट एवरेस्ट की तुलना में अधिक कठिन और खतरनाक माना जाता है। के टू पर 246 लोगों चढ़ चुके हैं जबकि माउंट एवरेस्ट पर 2238।
  • इस चोटी पर कई पर्वतारोहण अभियान हुए हैं जिनमें के टू पर चढ़ने की पहली अभियान 1902 में हुआ जो विफलता पर समाप्त हुई। फिर 1909, 1934, 1938, 1939 और 1953 के लिए प्रयास भी विफल हुई। उल्लेखनीय हैं कि 1909, 1938 और 1939 ई. के अभियान क्रमश: एबूजी के ड्यूक, डा. चार्ल्स हाउस्टन तथा फ्रटज़ विसनर के नेतृत्व में हुए थे। अंतिम अभियान में 27,500 तक की ही ऊँचाई चढ़ी गई थी लेकिन 1954 ई. की 31 जुलाई में मिलन विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र के प्रोफेसर 'आर्दितो देसिओ' के नेतृत्व में सर्वप्रथम इतालवी अभियानदल इसकी चोटी पर पहुँचने में सफल हुआ था।

भारतीय डाकटिकट में गाडविन आस्टिन / K-2 पर्वत|thumb|250px

पहला प्रयास

1902 में ब्रिटिश पर्वतारोही एलीस्टर क्रॉले और ऑस्कर एकिनस्टीन समेत 6 पर्वतारोहियों का अभियान दल के-2 पर चढ़ाई का सर्वप्रथम प्रयास करने पहुँचा। इस दल ने पर्वत पर 68 दिन बिताए जिसमें से चढ़ाई के लिए अनुकूल केवल 8 दिन ही मिल पाए। इनमें शिखर पर पहुँचने के 5 प्रयास किए गए। लेकिन ख़राब मौसम और तमाम प्रतिकूलताओं के कारण दल के सभी प्रयास विफल रहे और अंततः उन्हें हार माननी पड़ी।

पहली सफलता

दो इतावली आरोही एचाईल कॉम्पेगनोनी और लिनो लासेडेली के-2 के शिखर तक पहुँचने वाले पहले इंसान हैं। उन्हें यह सफलता 19 जुलाई 1954 को मिली जिसे इटली में काफ़ी गर्व के साथ मनाया गया। लेकिन जब आर्डिटो डेसिओ के नेतृत्व वाली यह टीम स्वदेश लौटी तब टीम के ही वॉल्टर बोनाटी ने दोनों पर इल्ज़ाम लगाते हुए विवाद खड़ा कर दिया। लेकिन बाद में ये इल्ज़ाम झूठे और गलतफ़हमीजन्य साबित हुए। thumb|250px|left|गाडविन आस्टिन (के 2)

  • 23 साल बाद अगस्त 1977 में एक जापानी कोहे पैमाने चैरो वशीज़ुआ उस पर चढ़ने में सफल हुआ। उसके साथ अशरफ व्यवस्था पहला पाकिस्तानी था जो इस पर चढ़ा। 1978 में एक अमेरिकी टीम चढ़ने में सफल हुई।

गॉडविन आस्टेन अभियान

1981 में एक सेटेलाइट ट्रांजिट सर्वे ने माऊंट गॉडविन आस्टेन जिसे के2 के नाम से भी जाना जाता है, पर गए एक अमेरिकी अभियान के साथ मिलकर यह निष्कर्ष निकाला कि के2 चोटी जिसे काफ़ी लंबे समय से विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी के रूप में जाना ताजा है। दरअसल 26228 फूट यानी 8990 मीटर ऊंची है। जिससे यह एवरेस्ट से भी ऊंची चोटी बन जाती है। 1981 में किया गया अध्ययन उस समय संभवत: अधिक सटीक अध्ययन हो। जिनमें लेजर रेंज फाइडर्स और पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे उपग्रहों का प्रयोग किया गया था। लेकिन ज़्यादातर इस नई खोज से सहमत नहीं थे और एवरेस्ट को ही विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी मानते हैं। अधिकतर स्रोतों ने जिनमें 1994 की ऑक्सफोर्ड एनसाईक्लोपेडिक वर्ल्ड एटलस भी शामिल है, मे एवरेस्ट की ऊंचाई 29029 फुट यानी 8848 मीटर बताई और के2 की 28251 फुट यानी, 8611 मीटर। इस दौरान 1994 की गिनीज बुक ऑफ रिकार्डस ने रिसर्च कांउसिल ऑफ रोम की 1987 की व्यवस्था के हवाले से एवरेस्ट की ऊंचाई 29078 फुट यानी 8863 मीटर और के2 की 28238 फुट यानी 8607 मीटर बताई।


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