रानी बाघेली: Difference between revisions

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'''रानी बाघेली''' [[मारवाड़]] ([[जोधपुर]]) राज्य के बलुन्दा के मोहकमसिंह की रानी थीं। मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के नवजात राजकुमार अजीतसिंह को [[औरंगज़ेब]] से बचाने के लिए मारवाड़ राज्य के बलुन्दा ठिकाने की रानी बाघेली ने अपनी नवजात दूध पीती राजकुमारी का बलिदान देकर राजकुमार अजीतसिंह के जीवन की रक्षा की व राजकुमार अजीतसिंह का औरंगज़ेब के आतंक के बावजूद लालन पालन किया।
'''रानी बाघेली''' [[मारवाड़]] ([[जोधपुर]]) राज्य के बलुन्दा के मोहकमसिंह की रानी थीं। [[मारवाड़]], जोधपुर राज्य के नवजात राजकुमार अजीतसिंह को [[औरंगज़ेब]] से बचाने के लिए मारवाड़ राज्य के बलुन्दा ठिकाने की रानी बाघेली ने अपनी नवजात दूध पीती राजकुमारी का बलिदान देकर राजकुमार अजीतसिंह के जीवन की रक्षा की व राजकुमार अजीतसिंह का औरंगज़ेब के आतंक के बावजूद लालन पालन किया।
==इतिहास से==
==इतिहास से==
[[28 नवम्बर]] 1678 को [[अफगानिस्तान]] के जमरूद नामक सैनिक ठिकाने पर जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह का निधन हो गया था उनके निधन के समय उनके साथ रह रही दो रानियाँ गर्भवती थी इसलिए वीर शिरोमणि दुर्गादास सहित जोधपुर राज्य के अन्य सरदारों ने इन रानियों को महाराजा के पार्थिव शरीर के साथ सती होने से रोक लिया। और इन गर्भवती रानियों को सैनिक चौकी से [[लाहौर]] ले जाया गया। जहाँ इन दोनों रानियों ने [[19 फरवरी]] 1679 को एक एक पुत्र को जन्म दिया। बड़े राजकुमार नाम अजीतसिंह व छोटे का दलथंभन रखा गया। इन दोनों नवजात राजकुमारों व रानियों को लेकर जोधपुर के सरदार अपने दलबल के साथ [[अप्रॅल]] 1679 में [[लाहौर]] से [[दिल्ली]] पहुंचे। तब तक औरंगज़ेब ने कूटनीति से पूरे मारवाड़ राज्य पर कब्ज़ा कर लिया और जगह जगह मुग़ल चौकियां स्थापित कर दी और राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर राज्य के उतराधिकारी के तौर पर मान्यता देने में आनाकानी करने लगा। <br />
[[28 नवम्बर]] 1678 को [[अफगानिस्तान]] के जमरूद नामक सैनिक ठिकाने पर जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह का निधन हो गया था। उनके निधन के समय उनके साथ रह रही दो रानियाँ गर्भवती थी, इसलिए वीर शिरोमणि दुर्गादास सहित जोधपुर राज्य के अन्य सरदारों ने इन रानियों को महाराजा के पार्थिव शरीर के साथ सती होने से रोक लिया। और इन गर्भवती रानियों को सैनिक चौकी से [[लाहौर]] ले जाया गया। जहाँ इन दोनों रानियों ने [[19 फरवरी]] 1679 को एक एक पुत्र को जन्म दिया। बड़े राजकुमार नाम अजीतसिंह व छोटे का दलथंभन रखा गया। इन दोनों नवजात राजकुमारों व रानियों को लेकर जोधपुर के सरदार अपने दलबल के साथ [[अप्रॅल]] 1679 में [[लाहौर]] से [[दिल्ली]] पहुंचे। तब तक औरंगज़ेब ने कूटनीति से पूरे मारवाड़ राज्य पर कब्ज़ा कर लिया और जगह जगह मुग़ल चौकियां स्थापित कर दी और राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर राज्य के उतराधिकारी के तौर पर मान्यता देने में आनाकानी करने लगा। <br />
तब जोधपुर के सरदार दुर्गादास राठौड़, बलुन्दा के ठाकुर मोहकम सिंह, खिंची मुकंदास आदि ने औरंगज़ेब के षड्यंत्र को भांप लिया उन्होंने शिशु राजकुमार को जल्द जल्द से दिल्ली से बाहर निकलकर मारवाड़ पहुँचाने का निर्णय लिया पर औरंगज़ेब ने उनके चारों ओर कड़े पहरे बिठा रखे थे ऐसी परिस्थितियों में शिशु राजकुमार को दिल्ली से बाहर निकलना बहुत दुरूह कार्य था। उसी समय बलुन्दा के मोहकमसिंह की रानी बाघेली भी अपनी नवजात शिशु राजकुमारी के साथ दिल्ली में मौजूद थीं। वह एक छोटे सैनिक दल से [[हरिद्वार]] की यात्रा से आते समय दिल्ली में ठहरी हुई थीं। उसने राजकुमार अजीतसिंह को बचाने के लिए राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया और राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंददास व कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से निकालकर बलुन्दा ले आई। यह कार्य इतने गोपनीय तरीके से किया गया कि रानी, दुर्गादास, ठाकुर मोहकम सिंह, खिंची मुकंदास, कु. हरिसिघ के अलावा किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी। यही नहीं रानी ने अपनी दासियों तक को इसकी भनक नहीं लगने दी कि राजकुमारी के वेशभूषा में [[जोधपुर]] के राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन हो रहा है। <br />
तब जोधपुर के सरदार दुर्गादास राठौड़, बलुन्दा के ठाकुर मोहकम सिंह, खिंची मुकंदास आदि ने औरंगज़ेब के षड्यंत्र को भांप लिया उन्होंने शिशु राजकुमार को जल्द जल्द से दिल्ली से बाहर निकलकर मारवाड़ पहुँचाने का निर्णय लिया पर औरंगज़ेब ने उनके चारों ओर कड़े पहरे बिठा रखे थे ऐसी परिस्थितियों में शिशु राजकुमार को दिल्ली से बाहर निकलना बहुत दुरूह कार्य था। उसी समय बलुन्दा के मोहकमसिंह की रानी बाघेली भी अपनी नवजात शिशु राजकुमारी के साथ दिल्ली में मौजूद थीं। वह एक छोटे सैनिक दल से [[हरिद्वार]] की यात्रा से आते समय दिल्ली में ठहरी हुई थीं। उसने राजकुमार अजीतसिंह को बचाने के लिए राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया और राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंददास व कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से निकालकर बलुन्दा ले आई। यह कार्य इतने गोपनीय तरीके से किया गया कि रानी, दुर्गादास, ठाकुर मोहकम सिंह, खिंची मुकंदास, कु. हरिसिंह के अलावा किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी। यही नहीं रानी ने अपनी दासियों तक को इसकी भनक नहीं लगने दी कि राजकुमारी के वेशभूषा में [[जोधपुर]] के राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन हो रहा है। <br />
छ:माह तक रानी राजकुमार को खुद ही अपना दूध पिलाती, नहलाती व कपडे पहनाती ताकि किसी को पता न चले पर एक दिन राजकुमार को कपड़े पहनाते एक दासी ने देख लिया और उसने यह बात दूसरी रानियों को बता दी, अत: अब बलुन्दा का किला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित न जानकार रानी बाघेली ने मायके जाने का बहाना कर खिंची मुकंददास व कु.हरिसिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर सिरोही के कालिंद्री गाँव में अपने एक परिचित व निष्टावान जयदेव नामक पुष्करणा ब्राह्मण के घर ले आई व राजकुमार को लालन-पालन के लिए उसे सौंपा जहाँ उसकी (जयदेव) की पत्नी ने अपना दूध पिलाकर जोधपुर के उतराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया।
छ:[[माह]] तक रानी राजकुमार को ख़ुद ही अपना दूध पिलाती, नहलाती व कपडे पहनातीं ताकि किसी को पता न चले पर एक दिन राजकुमार को कपड़े पहनाते समय एक दासी ने देख लिया और उसने यह बात दूसरी रानियों को बता दी, अत: अब बलुन्दा का क़िला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित न जानकार रानी बाघेली ने मायके जाने का बहाना कर खिंची मुकंददास व कु.हरिसिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर [[सिरोही]] के कालिंद्री गाँव में अपने एक परिचित व निष्ठावान जयदेव नामक पुष्करणा [[ब्राह्मण]] के घर ले आईं व राजकुमार को लालन-पालन के लिए उसे सौंपा जहाँ उसकी (जयदेव) की पत्नी ने अपना दूध पिलाकर जोधपुर के उत्तराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया।
यही राजकुमार अजीतसिंह बड़े होकर जोधपुर का महाराजा बने। इस तरह रानी बाघेली द्वारा अपनी कोख सूनी कर राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदलकर जोधपुर राज्य के उतराधिकारी को सुरक्षित बचा कर जोधपुर राज्य में वही भूमिका अदा की जो [[पन्ना धाय]] ने [[मेवाड़]] राज्य के उतराधिकारी [[राणा उदयसिंह|उदयसिंह]] को बचाने में की थी।<ref>{{cite web |url=http://www.gyandarpan.com/2011/02/blog-post_24.html |title=पन्ना धाय से कम न था रानी बाघेली का बलिदान |accessmonthday= 27 जुलाई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ज्ञान दर्पण |language=हिंदी }}  </ref>
यही राजकुमार अजीतसिंह बड़े होकर जोधपुर का महाराजा बने। इस तरह रानी बाघेली द्वारा अपनी कोख सूनी कर राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदलकर जोधपुर राज्य के उत्तराधिकारी को सुरक्षित बचा कर वही भूमिका अदा की जो [[पन्ना धाय]] ने [[मेवाड़]] राज्य के उतराधिकारी [[राणा उदयसिंह|उदयसिंह]] को बचाने में की थी।<ref>{{cite web |url=http://www.gyandarpan.com/2011/02/blog-post_24.html |title=पन्ना धाय से कम न था रानी बाघेली का बलिदान |accessmonthday= 27 जुलाई|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ज्ञान दर्पण |language=हिंदी }}  </ref>





Revision as of 11:26, 28 July 2013

रानी बाघेली
पूरा नाम रानी बाघेली
परिचय मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के बलुन्दा के मोहकमसिंह की रानी थीं।
अन्य जानकारी मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के नवजात राजकुमार अजीतसिंह को औरंगज़ेब से बचाने के लिए मारवाड़ राज्य के बलुन्दा ठिकाने की रानी बाघेली ने अपनी नवजात दूध पीती राजकुमारी का बलिदान देकर राजकुमार अजीतसिंह के जीवन की रक्षा की व राजकुमार अजीतसिंह का औरंगज़ेब के आतंक के बावजूद लालन पालन किया।

रानी बाघेली मारवाड़ (जोधपुर) राज्य के बलुन्दा के मोहकमसिंह की रानी थीं। मारवाड़, जोधपुर राज्य के नवजात राजकुमार अजीतसिंह को औरंगज़ेब से बचाने के लिए मारवाड़ राज्य के बलुन्दा ठिकाने की रानी बाघेली ने अपनी नवजात दूध पीती राजकुमारी का बलिदान देकर राजकुमार अजीतसिंह के जीवन की रक्षा की व राजकुमार अजीतसिंह का औरंगज़ेब के आतंक के बावजूद लालन पालन किया।

इतिहास से

28 नवम्बर 1678 को अफगानिस्तान के जमरूद नामक सैनिक ठिकाने पर जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह का निधन हो गया था। उनके निधन के समय उनके साथ रह रही दो रानियाँ गर्भवती थी, इसलिए वीर शिरोमणि दुर्गादास सहित जोधपुर राज्य के अन्य सरदारों ने इन रानियों को महाराजा के पार्थिव शरीर के साथ सती होने से रोक लिया। और इन गर्भवती रानियों को सैनिक चौकी से लाहौर ले जाया गया। जहाँ इन दोनों रानियों ने 19 फरवरी 1679 को एक एक पुत्र को जन्म दिया। बड़े राजकुमार नाम अजीतसिंह व छोटे का दलथंभन रखा गया। इन दोनों नवजात राजकुमारों व रानियों को लेकर जोधपुर के सरदार अपने दलबल के साथ अप्रॅल 1679 में लाहौर से दिल्ली पहुंचे। तब तक औरंगज़ेब ने कूटनीति से पूरे मारवाड़ राज्य पर कब्ज़ा कर लिया और जगह जगह मुग़ल चौकियां स्थापित कर दी और राजकुमार अजीतसिंह को जोधपुर राज्य के उतराधिकारी के तौर पर मान्यता देने में आनाकानी करने लगा।
तब जोधपुर के सरदार दुर्गादास राठौड़, बलुन्दा के ठाकुर मोहकम सिंह, खिंची मुकंदास आदि ने औरंगज़ेब के षड्यंत्र को भांप लिया उन्होंने शिशु राजकुमार को जल्द जल्द से दिल्ली से बाहर निकलकर मारवाड़ पहुँचाने का निर्णय लिया पर औरंगज़ेब ने उनके चारों ओर कड़े पहरे बिठा रखे थे ऐसी परिस्थितियों में शिशु राजकुमार को दिल्ली से बाहर निकलना बहुत दुरूह कार्य था। उसी समय बलुन्दा के मोहकमसिंह की रानी बाघेली भी अपनी नवजात शिशु राजकुमारी के साथ दिल्ली में मौजूद थीं। वह एक छोटे सैनिक दल से हरिद्वार की यात्रा से आते समय दिल्ली में ठहरी हुई थीं। उसने राजकुमार अजीतसिंह को बचाने के लिए राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदल लिया और राजकुमार को राजकुमारी के कपड़ों में छिपाकर खिंची मुकंददास व कुंवर हरीसिंह के साथ दिल्ली से निकालकर बलुन्दा ले आई। यह कार्य इतने गोपनीय तरीके से किया गया कि रानी, दुर्गादास, ठाकुर मोहकम सिंह, खिंची मुकंदास, कु. हरिसिंह के अलावा किसी को कानों कान भनक तक नहीं लगी। यही नहीं रानी ने अपनी दासियों तक को इसकी भनक नहीं लगने दी कि राजकुमारी के वेशभूषा में जोधपुर के राजकुमार अजीतसिंह का लालन पालन हो रहा है।
छ:माह तक रानी राजकुमार को ख़ुद ही अपना दूध पिलाती, नहलाती व कपडे पहनातीं ताकि किसी को पता न चले पर एक दिन राजकुमार को कपड़े पहनाते समय एक दासी ने देख लिया और उसने यह बात दूसरी रानियों को बता दी, अत: अब बलुन्दा का क़िला राजकुमार की सुरक्षा के लिए उचित न जानकार रानी बाघेली ने मायके जाने का बहाना कर खिंची मुकंददास व कु.हरिसिंह की सहायता से राजकुमार को लेकर सिरोही के कालिंद्री गाँव में अपने एक परिचित व निष्ठावान जयदेव नामक पुष्करणा ब्राह्मण के घर ले आईं व राजकुमार को लालन-पालन के लिए उसे सौंपा जहाँ उसकी (जयदेव) की पत्नी ने अपना दूध पिलाकर जोधपुर के उत्तराधिकारी राजकुमार को बड़ा किया। यही राजकुमार अजीतसिंह बड़े होकर जोधपुर का महाराजा बने। इस तरह रानी बाघेली द्वारा अपनी कोख सूनी कर राजकुमार को अपनी राजकुमारी से बदलकर जोधपुर राज्य के उत्तराधिकारी को सुरक्षित बचा कर वही भूमिका अदा की जो पन्ना धाय ने मेवाड़ राज्य के उतराधिकारी उदयसिंह को बचाने में की थी।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पन्ना धाय से कम न था रानी बाघेली का बलिदान (हिंदी) ज्ञान दर्पण। अभिगमन तिथि: 27 जुलाई, 2013।

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