बेल्हा देवी मंदिर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "बाजार" to "बाज़ार")
Line 26: Line 26:
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]]
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थल]][[Category:धार्मिक स्थल कोश]]
[[Category:हिन्दू मन्दिर]]
[[Category:हिन्दू मन्दिर]]
[[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
[[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
[[Category:उत्तर प्रदेश के मन्दिर]]
[[Category:उत्तर प्रदेश के मन्दिर]]
[[Category:नया पन्ना जून-2012]]
[[Category:नया पन्ना जून-2012]]

Revision as of 12:16, 21 March 2014

thumb|300px|बेल्हा देवी मंदिर,प्रतापगढ़ बेल्हा देवी मंदिर, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय प्राचीन शहर बेल्हा में स्थित है।अवध क्षेत्र अंतर्गत पूर्वांचल का प्रख्यात सिद्धपीठ माँ बेल्हा भवानी मंदिर वैदिक नदी सई के पावन तट पर अवस्थित है।

इतिहास

इस धाम को लेकर कई किवदंतियां हैं। एक धार्मिक किवदंती यह है कि राम वनगमन मार्ग (इलाहाबाद-फैजाबाद राजमार्ग) के किनारे सई नदी को त्रेता युग में भगवान राम ने पिता की आज्ञा मानकर वन जाते समय पार किया था। यहां उन्होंने आदिशक्ति का पूजन कर अपने संकल्प को पूरा करने के लिए ऊर्जा ली थी। दूसरी मान्यता यह है कि चित्रकूट से अयोध्या लौटते समय भरत ने यहां रुककर पूजन किया और तभी से यह स्थान अस्तित्व में आया। यह भी मान्यता है कि अपने पति भगवान शंकर के अपमान से क्षुब्ध होकर जाते समय माता गौरी के कमर (बेल) का कुछ भाग सई किनारे गिरा था, जिससे जोड़कर इसे बेला कहा जाता है।

रामायण में उल्लेख

thumb|200px|बेल्हा देवी सिद्धपीठ के रूप में विख्यात मां बेल्हा देवी धाम की स्थापना को लेकर तरह-तरह के मत हैं। वन गमन के समय भगवान श्रीराम सई तट पर रुके थे और उसके बाद आगे बढ़े। राम चरित मानस में भी गोस्वामी तुलसीदास ने इसका उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि 'सई तीर बसि चले बिहाने, श्रृंग्वेरपुर पहुंचे नियराने।' यहीं पर भरत से उनका मिलाप हुआ था। मान्यता है कि बेल्हा की अधिष्ठात्री देवी के मंदिर की स्थापना भगवान राम ने की थी और यहां पर उनके अनुज भरत ने रात्रि विश्राम किया था। इसे दर्शाने वाला एक पत्थर भी धाम में था। इसी प्रकार कई अन्य जन श्रुतियां हैं।

पुरातत्वविदों का मत

इतिहास के पन्ने कुछ और कहते हैं। एम.डी.पी.जी. कॉलेज के प्राचीन इतिहास विभाग के प्रो. पीयूषकांत शर्मा का कहना है कि एक तथ्य यह भी आता है कि चाहमान वंश के राजा पृथ्वीराज चौहान की बेटी बेला थी। उसका विवाह इसी क्षेत्र के ब्रह्मा नामक युवक से हुआ था। बेला के गौने के पहले ही ब्रह्मा की मृत्यु हो गई तो बेला ने सई किनारे खुद को सती कर लिया। इसलिए इसे सती स्थल और शक्तिपीठ के तौर पर भी माना जाता है। वास्तु के नज़रिए से मंदिर उत्तर मध्यकाल का प्रतीत होता है। पुरातात्विक आधार पर भले ही इन तथ्यों के प्रमाण नहीं मिलते हैं लेकिन आस्था के धरातल पर उतरकर देखें तो मां बेल्हा क्षेत्रवासियों के हृदय में सांस की तरह बसी हुई हैं। मंदिर से जुड़े पुरावशेष न मिलने के कारण इसका पुरातात्विक निर्धारण अभी नहीं हो सका। बहरहाल पुरातत्व विभाग का प्रयास जारी है।

मेला एवं मुंडन संस्कार

शुक्रवार और सोमवार को यहां मेला लगता है, जिसमें जनपद ही नहीं बल्कि आस पास के कई ज़िलों के लोग पहुंचकर मां का दर्शन पूजन करते हैं। हज़ारों श्रद्धालु दर्शन को आते हैं, रोट चढ़ाते हैं, बच्चों का मुंडन कराते हैं और निशान भी चढ़ाते हैं। बेला मंदिर बाद में जन भाषा में बेल्हा हो गया और यही इस शहर का नाम पड़ गया।

कैसे पहुचे

इलाहाबाद-फैजाबाद मार्ग पर सई तट पर स्थित मां बेल्हा देवी मंदिर तक पहुंचने के लिए बहुत ही आसान रास्ता है। इलाहाबाद व फैजाबाद की ओर से आने वाले भक्त सदर बाज़ार चौराहे पर उतरकर पश्चिम की ओर गई रोड से आगे जाकर दाहिने घूम जाएं। लगभग दो सौ मीटर दूरी पर मां का भव्य मंदिर विराजमान है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख