अत्तिला: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 10: | Line 10: | ||
इटली से लौटकर अत्तिला ने बर्गडों को राजकुमारी इल्दिको से [[विवाह]] कर लिया, किन्तु अपनी सुहागरात के ही समय वह रक्तचाप से मस्तिष्क की नली फट जाने के कारण पानीनिया में मर गया। | इटली से लौटकर अत्तिला ने बर्गडों को राजकुमारी इल्दिको से [[विवाह]] कर लिया, किन्तु अपनी सुहागरात के ही समय वह रक्तचाप से मस्तिष्क की नली फट जाने के कारण पानीनिया में मर गया। | ||
अत्तिला ने पश्चिमी [[रोमन साम्राज्य]] की रीढ़ तोड़ दी थी। उसके और हूणों के नाम से यूरोपीय जनता थरथर काँपती थी। हंगरी में बसकर तो उन्होंने उस देश को अपना नाम दिया। उनका शासन नार्वे और स्वीडेन तक चला। [[चीन]] के उत्तर-पूर्वी प्रांत कासू से उनका निकास हुआ था और वहाँ से यूरोप तक [[हूण|हूणों]] ने अपना खूनी आधिपत्य कायम किया। उन्हीं की धाराओं ने दक्षिण बहकर [[भारत]] के [[गुप्त साम्राज्य]] की भी कमर तोड़ दी। | अत्तिला ने पश्चिमी [[रोमन साम्राज्य]] की रीढ़ तोड़ दी थी। उसके और हूणों के नाम से यूरोपीय जनता थरथर काँपती थी। [[हंगरी]] में बसकर तो उन्होंने उस देश को अपना नाम दिया। उनका शासन नार्वे और स्वीडेन तक चला। [[चीन]] के उत्तर-पूर्वी प्रांत कासू से उनका निकास हुआ था और वहाँ से यूरोप तक [[हूण|हूणों]] ने अपना खूनी आधिपत्य कायम किया। उन्हीं की धाराओं ने दक्षिण बहकर [[भारत]] के [[गुप्त साम्राज्य]] की भी कमर तोड़ दी। | ||
Revision as of 13:06, 14 May 2014
अत्तिला (लगभग 406-453 ई.) इतिहास प्रसिद्ध एक विध्वंसक हूण राजा था, जिसे बाद के इतिहासकारों ने "भगवान का कोड़ा" कहकर सम्बोधित किया। अपने चाचा रुआस के मरने पर अपने भाई ब्लेदा के साथ अत्तिला भी दानूबतटीय हूणों का संयुक्त राजा बना था। पूर्वी रोमन सम्राट भी वार्षिक कर दिया करता था। आगे के समय में अत्तिला कैस्पियन सागर और बाल्टिक सागर के बीच के समूचे राज्यों का और राइन नदी तक का स्वामी बन गया था।[1]
राज्य विस्तार
अत्तिला के पिता का नाम 'मुंदजुक' था। उसके जन्म से कुछ पहले ही कैस्पियन सागर के उत्तरवर्ती प्रदेशों के हूण दानूब नद की घाटों में जा बसे थे। अत्तिला के पिता का परिवार भी उन्हीं हूणों में से एक था। चाचा रुआस के मरने पर अपने भाई ब्लेदा के साथ अत्तिला दानूबतटीय हूणों का संयुक्त राजा बना। रुआस का शासन काल हूणों के यूरोप में विशेष उत्कर्ष का था। उसने जर्मन और स्लाव जातियों पर आधिपत्य कर लिया था और उसका दबदबा कुछ ऐसा बढ़ा कि पूर्वी रोमन सम्राट उसे वार्षिक कर देने लगा। चाचा के ऐश्वर्य का अत्तिला ने प्रभूत प्रसार किया और आठ वर्षों में वह कैस्पियन और बाल्टिक सागर के बीच के समूचे राज्यों का, राइन नदी तक, स्वामी बन गया।
भयंकर युद्ध तथा पराजय
450 ई. के पश्चात् अत्तिला पूर्वी साम्राज्य को छोड़ पश्चिमी साम्राज्य की ओर बढ़ा। पश्चिमी साम्राज्य का सम्राट तब वालेंतीनियन तृतीय था। सम्राट की भगिनी जुस्ताग्राता होनोरिया ने अपने भाई के विरुद्ध सहायता के अर्थ अत्तिला को अपनी अँगूठी भेजी थी। इसे विवाह का प्रस्ताव मान हूणराज ने सम्राट से भगिनी के यौतुक में आधा राज्य माँगा और अपनी सेना लिए वह गाल को रौंदता, मेत्स को लूटता, ल्वार नदी के तट पर बसे और्लियाँ जा पहुँचा, पर रोमन सेना ने पश्चिमी गोथों और नगरवासियों की सहायता से हूणों को नगर का घेरा उठा लेने को मजबूर किया। फिर दो महीने बाद जून, 451 में इतिहास की सबसे भयंकर खूनी लड़ाइयों में से एक लड़ी गई, जब दोनों सेनाएँ सेन नदी के तट पर त्रॉय के निकट परस्पर मिलीं। भीषण युद्ध हुआ और जीवन में बस एक वार हारकर अत्तिला को भागना पड़ा।
इटली पर धावा
अपनी हार से अत्तिला चुप बैठने वाला वीर नहीं था। अगले ही वर्ष उसने सेना लेकर शक्ति केंद्र इटली पर धावा बोल दिया और देखते-देखते उसका उत्तरी लोंबार्दी का प्रांत उजाड़ डाला। उखड़े, भागे हुए लोगों ने आद्रियातिक सागर पहुँच कर वहाँ के प्रसिद्ध नगर वेनिस की नींव डाली। सम्राट बालेंतीनियन ने भागकर रावेना में शरण ली। पर पोप लिओ प्रथम ने रोम की रक्षा के लिए मिंचिओ नदी के तीर पड़ाव डाले और अत्तिला से प्रार्थना की। कुछ पोप के अनुनय से, कुछ हूणों के बीच प्लेग फूट पड़ने से अत्तिला ने इटली छोड़ देना स्वीकार किया।[1]
मृत्यु
इटली से लौटकर अत्तिला ने बर्गडों को राजकुमारी इल्दिको से विवाह कर लिया, किन्तु अपनी सुहागरात के ही समय वह रक्तचाप से मस्तिष्क की नली फट जाने के कारण पानीनिया में मर गया।
अत्तिला ने पश्चिमी रोमन साम्राज्य की रीढ़ तोड़ दी थी। उसके और हूणों के नाम से यूरोपीय जनता थरथर काँपती थी। हंगरी में बसकर तो उन्होंने उस देश को अपना नाम दिया। उनका शासन नार्वे और स्वीडेन तक चला। चीन के उत्तर-पूर्वी प्रांत कासू से उनका निकास हुआ था और वहाँ से यूरोप तक हूणों ने अपना खूनी आधिपत्य कायम किया। उन्हीं की धाराओं ने दक्षिण बहकर भारत के गुप्त साम्राज्य की भी कमर तोड़ दी।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
|
|
|
|
|