पंच बदरी: Difference between revisions

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[[बदरीनाथ]] से आठ कि.मी. पूर्व 1380 मीटर की ऊंचाई पर [[अलकनंदा नदी]] की सुरम्य धारों में स्थित है वृद्ध बदरी धाम। इस मंदिर की खासियत इसका साल भर खुले रहना है। इसे पांचवां बदरी कहा गया है।
[[बदरीनाथ]] से आठ कि.मी. पूर्व 1380 मीटर की ऊंचाई पर [[अलकनंदा नदी]] की सुरम्य धारों में स्थित है वृद्ध बदरी धाम। इस मंदिर की ख़ासियत इसका साल भर खुले रहना है। इसे पांचवां बदरी कहा गया है।


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Latest revision as of 13:29, 1 November 2014

पंच बदरी हिन्दू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं। 'श्रीबदरी नारायण', 'आदि बदरी', 'वृद्ध बदरी', 'योग-ध्यान बदरी' और 'भविष्य बदरी' को ही 'पंच बदरी' कहा गया है। देवभूमि उत्तराखण्ड में बदरी-केदार धाम का जितना महात्म्य है, उतना ही पंच बदरी और पंच केदार का भी है। असल में ये मंदिर भी बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं। हालांकि इनमें से कुछ स्थल साल भर दर्शनार्थियों के लिए खुले रहते हैं, लेकिन शेष में चारधाम के समान ही कपाट खुलने व बंद होने की परंपरा है।

पाँच बदरी

पंच बदरी में निम्नलिखित पाँच तीर्थ स्थलों को सम्मिलित किया जाता है-

श्रीबदरी नारायण

[[चित्र:Badrinath-Temple-1.jpg|thumb|150px|बदरीनाथ]]

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

समुद्र के तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है बदरीनाथ धाम। माना जाता है कि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था। वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण भगवान बदरीविशाल की पूजा-अर्चना करते हैं। बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यान मुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ, तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्त कुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।

आदि बदरी

कर्णप्रयाग-रानीखेत मार्ग पर आदि बदरी अवस्थित है। यह तीर्थ स्थल 16 मंदिरों का एक समूह है, जिसका मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर समूह के सम्मुख एक जल धारा, जो 'उत्तर वाहिनी गंगा' के नाम से प्रसिद्ध है, प्रवाहित होती है। माना जाता है कि यह तीर्थ स्थल गुप्त काल में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था।

वृद्ध बदरी

बदरीनाथ से आठ कि.मी. पूर्व 1380 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी की सुरम्य धारों में स्थित है वृद्ध बदरी धाम। इस मंदिर की ख़ासियत इसका साल भर खुले रहना है। इसे पांचवां बदरी कहा गया है।

योग-ध्यान बदरी

जोशीमठ से 20 कि.मी. दूर और 1920 मीटर की ऊंचाई पर 'पांडुकेश्वर' नामक स्थान पर स्थित हैं तृतीय योग-ध्यान बदरी। पांडु द्वारा निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में कमल के पुष्प पर आसीन मूर्तिमान भगवान योगमुद्रा में दर्शन देते हैं।

भविष्य बदरी

समुद्र के तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर तपोवन से चार कि.मी. पैदल मार्ग की दूरी पर भविष्य बदरी है। कहा जाता है कि अगस्त्य ऋषि ने यहाँ तपस्या की थी। लेकिन विकट चढ़ाई के कारण शारीरिक रूप से फिट यात्री ही यहाँ तक पहुँच पाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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