भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (श्रेणी:नया पन्ना; Adding category Category:गणराज्य संरचना कोश (को हटा दिया गया हैं।))
Line 53: Line 53:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारत के संस्थान}}
{{भारत के संस्थान}}
[[Category:भारत सरकार के संस्थान]]
[[Category:भारत सरकार के संस्थान]]
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:गणराज्य संरचना कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 13:13, 16 December 2014

1861 में स्थापित भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण भारत में पुरातात्विक अनुसंधान करने वाली सर्वोच्च संस्था है। यह न सिर्फ अनुसंधान, बल्कि प्राचीन स्मारकों के संरक्षण एवं सुरक्षा की भी व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी निभाती है। यह प्रागैतिहासिक, आद्य-ऐतिहासिक तथा अन्य प्राचीन स्थलों के समस्यायुक्त अनुसन्धान एवं बडे पैमाने पर उनके उत्खनन के कार्यों को सम्पन्न करवाती है। इसके साथ ही यह संस्था वास्तुकला सर्वेक्षण, स्मारकों के आस-पास की भूमि को ठीक करना, मूर्तियों, स्मारकों तथा संग्रहालय वस्तुओं का रासायनिक रख-रखाव, शिलालेखों से सम्बद्ध पत्रिकाओं तथा पुस्तकों के प्रकाशन आदि का कार्य में भी संलग्न है। यह विभाग पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत संस्कृति विभाग के संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता है। इस विभाग के प्रमुख 'महानिदेशक' होते हैं।

गतिविधियाँ

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की प्रमुख गतिविधियाँ निम्नलिखित हैं -

  1. पुरातात्विक अवशेषों तथा उत्खनन कार्यो कार्यो का सर्वेक्षण
  2. केंद्र सरकार के सुरक्षा वाले स्मारकों, स्थलों और अवशेषों का रख्रखाव और परिरक्षण
  3. स्मारकों और भग्नावेषों का रासायनिक बचाव
  4. स्मारकों का पुरातात्विक सर्वेक्षण
  5. शिलालेख संबंधी अनुसंधान का विकास और मुद्राशास्त्र का अध्ययन
  6. स्थल संग्रहालयों की स्थापना और पुनर्गठन
  7. विदेशों में अभियान
  8. पुरातत्त्व विज्ञान में प्रशिक्षण
  9. तकनीकी रिपोर्ट और अनुसंधान कार्यों का प्रकाशन।

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण अपने 21 मंडलों और 3 मिनी मंडलों के माध्यम से अपने संरक्षण वाले स्मारकों का बचाव और संरक्षण करता अपने 21 मंडलों और 3 मिनी मंडलों के जरिए अपने संरक्षण वाले स्‍मारकों का बचाव और संरक्षण करता है।

प्राचीन स्मारक और पुरातत्त्व स्थल व विशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने देश में लगभग 3656 स्मारकों व स्थलों को राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया है, जिनमें 21 सम्पत्तियाँ यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल हैं। 144 वर्ष पहले हुई अपनी स्थापना के बाद से भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण बहुत विशाल संगठन का आकार ले चुका है और पूरे भारत में इसके कार्यालयों, शाखाओं और मंडलों का जाल फैला है।

गुजरात का पावगढ़ पार्क, मुम्बई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, जो पहले विक्टोरिया टर्मिनल था, रेलवे स्टेशन और गंगाकोंडाचोलापुरम का बृहदेश्वर तथा दारासुरम का ऐरावतेश्वरैया मंदिर, जो तंजावूर के बृहदेश्वर मंदिर परिसर का विकास है और महान चोला मंदिरों के नाम से विख्यात है। यूनेस्को द्वारा 2004 में विश्व सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल किए गये हैं। यूनेस्को की सूची में सम्मिलित कराने के लिए विश्व धरोहर केंद्र के पास निम्नस्थलों के विवरण भेजे गये हैं -

  1. पंजाब में अमृतसर का हरमिंदर साहब, स्वर्ण मंदिर
  2. असम में ब्रह्मपुत्र नदी की मध्य धारा में स्थित माजुली द्वीप समूह
  3. उत्तराखंड में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान का विस्तार, 'फूलों की घाटी'
  4. दिल्ली का लाल क़िला
  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण कुल पाँच हज़ार से ज़्यादा स्मारकों और ढांचों की देखरेख कर रहा है।
जलगत पुरातत्त्व शाखा

देश के भीतर या सीमावर्ती सागर क्षेत्र में पानी के नीचे मौजूद सांस्कृतिक धरोहर की खोज, अध्ययन और संरक्षण जलगत पुरातत्त्व शाखा के मुख्य कार्य हैं। यहा शाखा अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में खोज और खुदाई करती है।

विज्ञान शाखा

सर्वेक्षण की विज्ञान शाखा का मुख्यालय देहरादून में है और इसकी क्षेत्रीय प्रयोग्शालाएँ देश भर में हैं। यहा शाखा स्मारकों, प्राचीन सामग्रियों, पांडुलिपियों, पेंटिंग्स आदि के रासायनिक संरक्षण का दायित्व संभालती है। देहरादून स्थित विज्ञान शाखा की प्रयोगशालाओं ने निम्न वैज्ञानिक परियोजनाएँ हाथ में ली हैं-

  • पत्थर, टेराकोटा और ईंट से बने ढांचों पर संरक्षणात्मक कोटिंग करने और उन्हें मज़बूत बनाने के लिए नयी सामग्री की खोज
  • प्राचीन चूना पलस्तर के संरक्षण के विषय में वैज्ञानिक अध्ययन
  • त्वरित सख़्त होने वाले पलस्तर सीमेंट के विभिन्न अनुपातों में उसकी भौतिक विशेषताओं का आकलन।
बागवानी शाखा

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की बागवानी शाखा देश के विभिन्न भागों में स्थित केंद्र सरकार के संरक्षण वाले क़रीब 287 स्मारकों, स्थलों में बागीचों और उद्यानों की देखभाल करती हैं। यहा शाखा दिल्ली, आगरा, श्रीरंगपट्टनम और भुवनेश्वर में आधार नर्सरियाँ विकसित करके इन बगीचों, उद्यानों के लिए मौसमानुसार पौधे उपलब्ध कराती है।

पुरालेख शास्त्र शाखा

मैसूर स्थित पुरालेख शास्त्र संस्कृत और द्रविड भाषाओं में शोध कार्य करती है, जबकि नागपुर स्थित शाखा अरबी और फ़ारसी में शोध कार्य करती है।

सफल उत्खनन

इसकी सर्वप्रमुख सफलताओं में विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक सिन्धु घाटी की सभ्यता के स्थलों के उत्खनन का कार्य सर्वाधिक महत्व्पूर्ण है।

प्रकाशन विभाग

इसके प्रकाशन विभाग द्वारा अनेक महत्त्वपूर्ण रिपोर्टों का प्रकाशन करता आ रहा है। इसका अपना एक पुस्तकालय भी है।

विदेशों में अभियान

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने विदेश मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन आदान प्रदान कार्यक्रम के अंतर्गत कंबोडिया में 'ता प्रोह्म' के संरक्षण की परियोजना शुरू की है, जिसके लिए 19 करोड़ 51 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है। यह संरक्षण परियोजना भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अप्रैल और नवंबर में कंबोडिया यात्रा के समय 'प्रसात ता प्रोहम' के संरक्षण के विषय में वहां की सरकार के अनुरोध पर दिये गये आश्वासनों को पूरा करने के लिए शुरू की गयी है। यहा संरक्षण परियोजना दस वर्ष की है और इसे पाँच चरणों में पूरा किया जाएगा। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने यह परियोजना जनवरी 2004 में शुरू कर दी थी, परंतु इसे कंबोडिया में फरवरी 2004 में विधिवत प्रारम्भ किया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख