अज़रा का फ़िल्मी कॅरियर: Difference between revisions

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साल 1958 में अज़रा जी की फ़िल्म 'टैक्सी 555' प्रदर्शित हुई। प्रदीप कुमार और शकीला की मुख्य भूमिकाओं वाली इस फ़िल्म में वह सहनायिका थीं। 1959 में बनी फ़िल्म ‘घर घर की बात’ में वे नायिका बनीं। इस फ़िल्म का निर्माण उनके मौसा और सलीम शाह के पिता रमणीकलाल शाह ने किया, लेकिन ये दोनों ही फ़िल्में कुछ ख़ास नहीं चल पायीं। 1960 में अज़रा जी की दो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिनमें से एक थी ‘फ़िल्मिस्तान’ के बैनर में बनी ‘बाबर’ और दूसरी, ‘फ़िल्मिस्तान’ से अलग हुए शशधर मुकर्जी के बैनर ‘फ़िल्मालय’ की ‘लव इन शिमला’। ‘फ़िल्मालय’ के बैनर में इससे पहले ‘दिल देके देखो’ (1959) और ‘हम हिंदुस्तानी’ (1960) बन चुकी थीं।

प्रमुख फ़िल्में

फ़िल्म ‘लव इन शिमला’ जॉय मुखर्जी और साधना की बतौर नायक-नायिका पहली फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में अज़रा जी सहनायिका की भूमिका में थीं। अपने दौर की सुपरहिट फ़िल्म ‘लव इन शिमला’ ने अज़रा जी को दर्शकों के बीच अच्छी पहचान दी। लेकिन उनका कॅरियर महज़ 15 साल का रहा। उन 15 सालों में अज़रा जी ने ‘जंगली’, ‘गंगा जमुना’, ‘गंगा की लहरें’, ‘इशारा’, ‘बहारों के सपने’, ‘बंदिश’, ‘वापस’, ‘राजा साहब’, ‘महल’, ‘माय लव’ और ‘इल्ज़ाम’ जैसी क़रीब दो दर्जन फ़िल्मों में मुख्यत: सहनायिका और चरित्र भूमिकाएं कीं और फिर शादी करके फ़िल्मों से अलग हो गयीं। ‘गंगा जमुना’ में वे सहनायक नासिर ख़ान की प्रेमिका की भूमिका में थीं। फ़िल्म ‘शाने ख़ुदा’ (1971) और ‘पॉकेटमार’ (1974) उनकी शादी के बाद प्रदर्शित हुईं। फ़िल्म ‘शाने ख़ुदा’ का निर्देशन उनके पिता नानूभाई वक़ील ने किया था।

अज़रा जी के अनुसार- "जनवरी, 1971 में मुम्बई के एक मशहूर कारोबारी परिवार में मेरी शादी हुई। मेरे ससुराल पक्ष का न तो फ़िल्मों से कोई रिश्ता था और न ही वे रिश्ता रखना चाहते थे। ऐसे में मैंने भी फ़िल्मों से अलग होने में देर नहीं की। देव आनंद ने, जिनके साथ मैं फ़िल्म ‘महल’ में काम कर चुकी थी, मुझे अपनी किसी फ़िल्म में लेना चाहा, लेकिन मैंने उन्हें भी विनम्रता से इंकार कर दिया। शादी के बाद मैंने सिर्फ़ अपना बचा हुआ काम निपटाया और फिर फ़िल्मी दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।"


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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