शकटार: Difference between revisions

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शकटार और उसके कुटुम्ब के साथ राजा ने जो व्यवहार किया था, उसे भूलना संभव नहीं था। वह जैसे भी हो महानंद से बदला लेना चाहता था। एक दिन उसने एक [[ब्राह्मण]] को देखा जो कुष से पांव कट जाने के कारण उसमें मट्ठा डालकर उसे नष्ट करने में जुटा था। शकटार को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए वांछित व्यक्ति मिल गया था। वह ब्राह्मण को आदरपूर्वक राजमहल में ले गया और श्राद्ध के आसन पर बैठा दिया।
शकटार और उसके कुटुम्ब के साथ राजा ने जो व्यवहार किया था, उसे भूलना संभव नहीं था। वह जैसे भी हो महानंद से बदला लेना चाहता था। एक दिन उसने एक [[ब्राह्मण]] को देखा जो कुष से पांव कट जाने के कारण उसमें मट्ठा डालकर उसे नष्ट करने में जुटा था। शकटार को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए वांछित व्यक्ति मिल गया था। वह ब्राह्मण को आदरपूर्वक राजमहल में ले गया और श्राद्ध के आसन पर बैठा दिया।


महानंद ने जब अपरिचित व्यक्ति को पुरोहित के आसन पर बैठा हुआ देखा तो क्रोध में आकर उसे बाल पकड़वाकर बाहर निकलवा दिया। ब्राह्मण इस अपराध को कहाँ सहता। वही बाद में [[चाणक्य|विष्णुगुप्त चाणक्य]] के नाम से प्रसिद्ध हुआ और [[नंद वंश]] को नष्ट करने में उसने महान भूमिका निभाई।  
महानंद ने जब अपरिचित व्यक्ति को पुरोहित के आसन पर बैठा हुआ देखा तो क्रोध में आकर उसे बाल पकड़वाकर बाहर निकलवा दिया। ब्राह्मण इस अपराध को कहाँ सहता। वही बाद में [[चाणक्य|विष्णुगुप्त चाणक्य]] के नाम से प्रसिद्ध हुआ और [[नंद वंश]] को नष्ट करने में उसने महान् भूमिका निभाई।  
==शकटार का प्रायश्चित==
==शकटार का प्रायश्चित==
महानंद मारा गया तो शकटार को भी अपने पाप कर्म की अनुभूति हुई और उसने वन में अनशन करके अपने प्राण दे दिए। जैन परंपरा में उपलब्ध सामग्री के अनुसार नंद राजा के वररुचि नामक ब्राह्मण मंत्री ने शूद्रमंत्री शकटार पर मिथ्या आरोप लगाकर राजा को उसके विरुद्ध भड़काया था।
महानंद मारा गया तो शकटार को भी अपने पाप कर्म की अनुभूति हुई और उसने वन में अनशन करके अपने प्राण दे दिए। जैन परंपरा में उपलब्ध सामग्री के अनुसार नंद राजा के वररुचि नामक ब्राह्मण मंत्री ने शूद्रमंत्री शकटार पर मिथ्या आरोप लगाकर राजा को उसके विरुद्ध भड़काया था।

Latest revision as of 07:32, 6 August 2017

शकटार मगध के नरेश महानंद का मंत्री था। वह शूद्र था।

महानंद द्वारा दण्ड

मगध के एक नरेश महानंद के दो मंत्रियों में राक्षस ब्राह्मण था और शकटार शूद्र। महानंद ने एक बार क्रुद्ध होकर शकटार को बंदीगृह में डाल दिया और उसके परिवार को एक एक करके भूखा मार डाला। लेकिन बाद में उसे राक्षस के अधीन फिर मंत्री पद पर भी रखा लिया।

शकटार का बदला

शकटार और उसके कुटुम्ब के साथ राजा ने जो व्यवहार किया था, उसे भूलना संभव नहीं था। वह जैसे भी हो महानंद से बदला लेना चाहता था। एक दिन उसने एक ब्राह्मण को देखा जो कुष से पांव कट जाने के कारण उसमें मट्ठा डालकर उसे नष्ट करने में जुटा था। शकटार को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए वांछित व्यक्ति मिल गया था। वह ब्राह्मण को आदरपूर्वक राजमहल में ले गया और श्राद्ध के आसन पर बैठा दिया।

महानंद ने जब अपरिचित व्यक्ति को पुरोहित के आसन पर बैठा हुआ देखा तो क्रोध में आकर उसे बाल पकड़वाकर बाहर निकलवा दिया। ब्राह्मण इस अपराध को कहाँ सहता। वही बाद में विष्णुगुप्त चाणक्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ और नंद वंश को नष्ट करने में उसने महान् भूमिका निभाई।

शकटार का प्रायश्चित

महानंद मारा गया तो शकटार को भी अपने पाप कर्म की अनुभूति हुई और उसने वन में अनशन करके अपने प्राण दे दिए। जैन परंपरा में उपलब्ध सामग्री के अनुसार नंद राजा के वररुचि नामक ब्राह्मण मंत्री ने शूद्रमंत्री शकटार पर मिथ्या आरोप लगाकर राजा को उसके विरुद्ध भड़काया था।


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टीका एवं टिप्पणी

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 827 |


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