सत्यकाम विद्यालंकार: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('सत्यकाम जी स्वामी श्रद्धानंद जी के दोहते थे। इन्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
सत्यकाम जी [[स्वामी श्रद्धानंद]] जी के दोहते थे। [[इन्द्र विद्यावाचस्पति|पंडित इंद्र विद्यावाचस्पति]] उनके [[मामा]] थे। | सत्यकाम जी [[स्वामी श्रद्धानंद]] जी के दोहते थे। [[इन्द्र विद्यावाचस्पति|पंडित इंद्र विद्यावाचस्पति]] उनके [[मामा]] थे। | ||
==पत्रकारिता== | |||
गुरुकुल से स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने मामा जी के साथ '''दैनिक अर्जुन''' में किया। अपने क्रांतिकारी लेखों के कारण उन्हें [[ब्रिटिश सरकार]] का कोपभाजन बनना पड़ा। और उन्हें जेल की सजा हुई। सत्यकाम जी अपने संपादकीय प्रतिभा के बल पर उन्नति करते हुए अंततः दैनिक 'नवयुग' दिल्ली के संपादक बने और फिर 'टाइम्स ऑफ इंडिया समूह' के लोकप्रिय हिंदी साप्ताहिक 'धर्मयुग' अनेक वर्ष संपादक रहे। वहां से अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने साहित्यिक सांस्कृतिक मासिक पत्र नवनीत का संपादन संभाला। | गुरुकुल से स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने मामा जी के साथ '''दैनिक अर्जुन''' में किया। अपने क्रांतिकारी लेखों के कारण उन्हें [[ब्रिटिश सरकार]] का कोपभाजन बनना पड़ा। और उन्हें जेल की सजा हुई। सत्यकाम जी अपने संपादकीय प्रतिभा के बल पर उन्नति करते हुए अंततः दैनिक 'नवयुग' दिल्ली के संपादक बने और फिर 'टाइम्स ऑफ इंडिया समूह' के लोकप्रिय हिंदी साप्ताहिक 'धर्मयुग' अनेक वर्ष संपादक रहे। वहां से अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने साहित्यिक सांस्कृतिक मासिक पत्र नवनीत का संपादन संभाला। | ||
==लेखक== | |||
सत्यकाम जी ने बीसियों मौलिक रचना लिखकर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की । स्वामी सत्य प्रकाश जी के सहयोग से चारों वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया अपने नाम के अनुसार वह सदा सत्य का पक्ष लेते थे और स्वभाव से सौम्य और सात्विक बुद्धि के थे। आज भी लोग उनके गुणों का स्मरण करते हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=914 |url=}}</ref> | सत्यकाम जी ने बीसियों मौलिक रचना लिखकर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की । स्वामी सत्य प्रकाश जी के सहयोग से चारों वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया अपने नाम के अनुसार वह सदा सत्य का पक्ष लेते थे और स्वभाव से सौम्य और सात्विक बुद्धि के थे। आज भी लोग उनके गुणों का स्मरण करते हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=914 |url=}}</ref> | ||
Revision as of 09:40, 8 February 2019
सत्यकाम जी स्वामी श्रद्धानंद जी के दोहते थे। पंडित इंद्र विद्यावाचस्पति उनके मामा थे।
पत्रकारिता
गुरुकुल से स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने मामा जी के साथ दैनिक अर्जुन में किया। अपने क्रांतिकारी लेखों के कारण उन्हें ब्रिटिश सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा। और उन्हें जेल की सजा हुई। सत्यकाम जी अपने संपादकीय प्रतिभा के बल पर उन्नति करते हुए अंततः दैनिक 'नवयुग' दिल्ली के संपादक बने और फिर 'टाइम्स ऑफ इंडिया समूह' के लोकप्रिय हिंदी साप्ताहिक 'धर्मयुग' अनेक वर्ष संपादक रहे। वहां से अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने साहित्यिक सांस्कृतिक मासिक पत्र नवनीत का संपादन संभाला।
==लेखक==
सत्यकाम जी ने बीसियों मौलिक रचना लिखकर हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि की । स्वामी सत्य प्रकाश जी के सहयोग से चारों वेदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया अपने नाम के अनुसार वह सदा सत्य का पक्ष लेते थे और स्वभाव से सौम्य और सात्विक बुद्धि के थे। आज भी लोग उनके गुणों का स्मरण करते हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 914 |
संबंधित लेख