संस्कृति का निर्माण

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भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति है। अन्य देशों की संस्कृतियाँ तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही हैं, किन्तु भारत की संस्कृति आदि काल से ही अपने परम्परागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। इसकी उदारता तथा समन्यवादी गुणों ने अन्य संस्कृतियों को समाहित तो किया है, किन्तु अपने अस्तित्व के मूल को सुरक्षित रखा है। तभी तो पाश्चात्य विद्वान अपने देश की संस्कृति को समझने हेतु भारतीय संस्कृति को पहले समझने का परामर्श देते हैं।

संस्कृति के निर्माणक तत्त्व

संस्कृति का निर्माण जिन छोटी-बड़ी बहुत-सी इकाइयों से होता है, उन्हीं को संस्कृति के निर्माणक तत्त्व या उपादान कहा जाता है। इन तत्त्वों का विवेचन निम्नलिखित है-

संस्कृति तत्त्व -

होबेल से अनुसार, ‘एक संस्कृति तत्त्व व्यवहार का रूप या इस व्यवहार से उत्पन्न एक भौतिक वस्तु है, जिसे सांस्कृतिक व्यवहार की सबसे छोटी इकाई माना जाता है।’ संस्कृति तत्त्व के महत्व को बताते हुए थोबेन्क ने लिखा है, ‘संस्कृति तत्त्व उन ईटों के समान हैं, जिनके द्वारा सम्पूर्ण समाज की संस्कृति का निर्माण होता है।’ इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भौतिक अभौतिक क्षेत्र में संस्कृति तत्त्व उन सभी वस्तुओं, जिसका कार्यात्मक दृष्टिकोण से और अधिक विभाजन नहीं किया जा सकता। संस्कृति तत्त्व में परिवर्तन तथा गतिशीलता भी पाई जाती है। लेकिन केवल अकेला संस्कृति तत्त्व मनुष्य की किसी आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम नहीं होता। जब अनेक संस्कृति तत्त्व परस्पर उद्देश्यपूर्ण तरीके से संयुक्त हो जाते हैं, तब ही वे मनुष्य की किसी विशेष आवश्यकता की पूर्ति कर पाते हैं।

संस्कृति समग्र -
  • जब अनेक संस्कृति तत्त्व व्यवस्थित रूप से संयुक्त होकर मनुष्य की किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, तब संस्कृति तत्त्वों के संयुक्त रूप को संस्कृति समग्र कहा जाता है।
  • होबेल के अनुसार, ‘संस्कृति समग्र परस्पर घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित संस्कृति तत्त्वों का एक जाल है।’
  • सदरलैण्ड एवं वुडवर्ड के अनुसार, ‘संस्कृति समग्र अनेक संस्कृति तत्त्वों की वह सम्पूर्णता है, जो अर्थपूर्ण सम्बन्धों द्वारा परस्पर समावेष्टित रहते हैं।’

इस प्रकार संस्कृति समग्र संस्कृति तत्त्वों का एक पुंज होती है, जो कि अनेक सांस्कृतिक नियमों के अनुसार व्यवस्थित होती है और इसका निर्माण करने वाले सभी परस्पर सम्बन्धित होते हैं।

संस्कृति प्रतिमान-
  • हर्सकोविट्स के अनुसार, ‘संस्कृति शब्दों का वह रूप, जो एक समाज के सदस्यों के व्यवहार प्रतिमानों के माध्यम से व्यक्त होता हुआ जीवन की विधि को एकरूपता, निरन्तरता और विशिष्ट रूप देता है, संस्कृति प्रतिमान कहलाता है।’
  • रूथ बेनेडिक्ट के अनुसार, ‘संस्कृति के अनेक उपविभागों से बनने वाले महत्त्वपूर्ण अंगों को ही संस्कृति प्रतिमान कहते हैं।’
  • इसी प्रकार सदरलैण्ड तथा वुडवर्ड ने लिखा है कि, ‘जब अनेक संस्कृति समग्र परस्पर सम्बन्धित होकर एक विशेष संस्कृति का सामान्य चित्र प्रस्तुत करने लगते हैं, तब इसी सम्बद्धता को हम संस्कृति प्रतिमान कहते हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि संस्कृति प्रतिमान अनेक संस्कृति समग्रों का एक व्यवस्थित संगठन है। उदाहरण के लिए - भारतीय संस्कृति में जाति प्रथा, संयुक्त परिवार, विवाह संस्कार, कर्म सिद्धान्त जैसे कुछ विशेष संस्कृति प्रतिमान हैं, जो एक बड़ी सीमा तक भारतीय संस्कृति का एक सामान्य चित्र प्रस्तुत कर देते हैं।’
संस्कृति क्षेत्र-

क्लार्क विसलर के अनुसार, ‘संस्कृति क्षेत्र का आशय उस भौगोलिक प्रदेश से है, जिसमें अनेक जन-जातियाँ तुलनात्मक रूप से समान सांस्कृतिक विशेषताओं के साथ स्वतंत्र रूप से निवास करती हैं।’ दूसरे शब्दों में, प्रत्येक संस्कृति से सम्बन्धित संस्कृति समग्रों तथा संस्कृति प्रतिमानों का एक निश्चित क्षेत्र होता है तथा इसी क्षेत्र से उसका प्रसार एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में हो जाता है। जिस भौगोलिक क्षेत्र में लगभग समान सांस्कृतिक विशेषताएँ विद्यमान होती हैं, उसको हम एक संस्कृति क्षेत्र कहकर सम्बोधित करते हैं।



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