Difference between revisions of "भोज"

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<u>भोज (1000 से 1055 ई.)</u>
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*रामभद्र का उत्तराधिकारी '''मिहिरभोज''' (भोज प्रथम) (836 से 889 ई.) [[गुर्जर प्रतिहार वंश]] का सर्वाधिक प्रतापी एवं महान शासक हुआ।
*सिंधुराज का पुत्र एवं उत्तराधिकारी भोज परमार वंश का योग्य एवं प्रतापी शासक था।
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*उसने 836 ई. के लगभग [[कन्नौज]] को अपनी राजधानी बनाया, जो आगामी सौ वर्षो तक प्रतिहारों की राजधानी बनी रही।
*उसका [[चालुक्य वंश|कल्याणी के चालुक्य]] एवं अन्हिवाड़ के चालुक्यों से युद्ध हुआ।
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*भोज ने जब पूर्व दिशा की ओर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहा, तो उसे [[बंगाल]] के [[पाल वंश|पाल]] शासक [[धर्मपाल]] से पराजित होना पड़ा।
*चालुक्य नरेश विक्रमादित्य चतुर्थ एवं कलचुरी राजा गांगेय देव को भोज ने पराजित किया जबकि चन्देल नरेश विद्याधर ने भोज को परास्त किया था।  
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*842 से 860 ई. के बीच उसे [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] शासक ध्रुव ने भी पराजित किया।
*अन्ततः [[गुजरात]] के [[सोलंकी वंश|सोलंकी]] एवं [[त्रिपुरा]] के [[कलचुरी वंश|कलचुरी]] के संघ ने मिलकर [[भोज]] की राजधानी [[धार]] पर दो ओर से आकमण कर राजधानी को नष्ट कर दिया।
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*पाल वंश के शासक [[देवपाल]] की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी नारायण को भोज ने परास्त कर पाल राज्य के एक बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया।
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*मिहिरभोज का साम्राज्य [[काठियावाड़]], [[पंजाब]], [[मालवा]] तथा मध्य देश तक फैला था।
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*उसके शासन काल का विवरण [[अरब]] यात्री [[सुलेमान]] के यात्रा विवरण से मिलता है।
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*अरब यात्री सुलेमान (1836-885) उसे 'बरुआ' कहता है।
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*मिहिरभोज के बारे में सुलेमान लिखता है कि, “इस राजा के पास बहुत बड़ी सेना है और अन्य किसी दूसरे राजा के पास उसकी जैसी सेना नहीं है। उसका राज्य जिह्म के आकार का है। उसके पास बहुत अधिक संख्या में घोड़े और ऊंट है। [[भारत]] में भोज के राज्य के अतिरिक्त कोई दूसरा राज्य नहीं है, जो डाकुओं से इतना सुरक्षित हो।
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*मिहिरभोज ने 'आदिवराज' एवं 'प्रभास' की उपाधियाँ धारण की थीं।
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*मिहिरभोज ने कई नामों से, जैसे - 'मिहिरभोज' ([[ग्वालियर]] अभिलेख में), 'प्रभास' (दौलतपुर अभिलेख में), 'आदिवराह' (ग्वालियर चतुर्भुज अभिलेखों), चांदी के 'द्रम्म' सिक्के चलवाए थे।
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*सिक्को पर निर्मित सूर्यचन्द्र उसके चक्रवर्तिन का प्रमाण है। [[अरब]] यात्री सुलेमान के अनुसार- वह अरबों का स्वाभाविक शत्रु था। उसने पश्चिम में अरबों का प्रसार रोक दिया था।
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*[[गुजरात]] के [[सोलंकी वंश|सोलंकी]] एवं [[त्रिपुरा]] के [[कलचुरी वंश|कलचुरी]] के संघ ने मिलकर [[भोज]] की राजधानी [[धार]] पर दो ओर से आक्रमण कर राजधानी को नष्ट कर दिया था।
 
*भोज के बाद शासक जयसिंह ने शत्रुओं के समक्ष आत्मसमर्पण कर [[मालवा]] से अपने अधिकार को खो दिया।  
 
*भोज के बाद शासक जयसिंह ने शत्रुओं के समक्ष आत्मसमर्पण कर [[मालवा]] से अपने अधिकार को खो दिया।  
*भोज के साम्राज्य के अन्तर्गत [[मालवा]], कोकण, खान देश, भिलसा, डूगंरपुर, बांसवाड़ा, [[चित्तौड़]] एवं गोदावरी घाटी का कुछ भाग शामिल था।  
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*भोज के साम्राज्य के अन्तर्गत [[मालवा]], कोंकण, खान देश, भिलसा, डुगंरपुर, बांसवाड़ा, [[चित्तौड़]] एवं [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] घाटी का कुछ भाग शामिल था।  
*भोज ने [[उज्जैन]] की जगह अपने नई राजधानी [[धार]] को बनाया। भोज एक पराक्रमी शासक होने के साथ ही विद्वान एवं विद्या तथा कला का उदार संरक्षक था। अपनी विद्वता के कारण ही उसने 'कविराज' की उपाधि धारण की
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*उसने [[उज्जैन]] की जगह अपने नई राजधानी [[धार]] को बनाया। भोज एक पराक्रमी शासक होने के साथ ही विद्वान एवं विद्या तथा [[कला]] का उदार संरक्षक था। अपनी विद्वता के कारण ही उसने 'कविराज' की उपाधि धारण की थी।
*उसने कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ जैसे- 'समरांगण सूत्रधार', 'सरस्वती कंठाभरण', 'सिद्वान्त संग्रह', 'राजकार्तड', 'योग्यसूत्रवृत्ति', 'विद्या विनोद', 'युक्ति कल्पतरु', 'चारु चर्चा', 'आदित्य प्रताप सिद्धान्त', 'आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश', 'प्राकृत व्याकरण', 'कूर्मशतक', 'श्रृंगार मंजरी', 'भोजचम्पू', 'कृत्य कल्पतरु', 'तत्वप्रकाश', 'शब्दानुशासन', 'राज्मृडाड' आदि की रचना की। '[[आइना-ए-अकबरी]]' के वर्णन के आधार पर माना जाता है कि उसके राजदरबार में लगभग 500 विद्धान थे।  
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*उसने कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ जैसे- 'समरांगण सूत्रधार', 'सरस्वती कंठाभरण', 'सिद्वान्त संग्रह', 'राजकार्तड', 'योग्यसूत्रवृत्ति', 'विद्या विनोद', 'युक्ति कल्पतरु', 'चारु चर्चा', 'आदित्य प्रताप सिद्धान्त', 'आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश', 'प्राकृत व्याकरण', 'कूर्मशतक', 'श्रृंगार मंजरी', 'भोजचम्पू', 'कृत्यकल्पतरु', 'तत्वप्रकाश', 'शब्दानुशासन', 'राज्मृडाड' आदि की रचना की।
*उसके दरबारी कवियों में भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र, धनपाल आदि प्रमुख थे। उसके बार में अनुश्रति थी कि वह हर एक कवि को प्रत्येक श्लोक पर एक लाख मुद्रायें प्रदान करता था। उसकी मृत्यु पर पण्डितों को हार्दिक दुखः हुआ, तभी एक प्रसिद्ध लोकोक्ति के अनुसार उसकी मृत्यु से विद्या एवं विद्वान, दोनों निराश्रित हो गये भोज ने अपनी राजधानी धार को विद्या एवं कला के महत्त्वपूर्ण केन्द्र के रूप में स्थापित किया।  
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*'[[आइना-ए-अकबरी]]' के वर्णन के आधार पर माना जाता है कि, उसके राजदरबार में लगभग 500 विद्धान थे।  
*यहां पर भोज ने अनेक महल एवं मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें सरस्वती मंदिर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उसके अन्य निर्माण कार्य केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ सुडार आदि मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त भोज ने भोजपुर नगर एवं भोजसेन नामक तालाब का भी निर्माण करवाया था।  
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*उसके दरबारी कवियों में 'भास्करभट्ट', 'दामोदर मिश्र', 'धनपाल' आदि प्रमुख थे।
*उसने त्रिभुवन नारायण, सार्वभौम, मालवा चक्रवर्ती जैसे विरुद्ध धारण किया था। उसने त्रिभुवन नारायण, सार्वभौम, मालवा चक्रवर्ती जैसे विरुद्ध धारण किया था। अपने नाम पर उसने भोजपुर नगर बसाया तथा एक बहुत बड़े 'भोजसर' नामक तालाब को निर्मित कराया।
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*उसके बार में अनुश्रति थी कि, वह हर एक कवि को प्रत्येक श्लोक पर एक लाख मुद्रायें प्रदान करता था।
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*उसकी मृत्यु पर पण्डितों को हार्दिक दुखः हुआ, तभी एक प्रसिद्ध लोकोक्ति के अनुसार- उसकी मृत्यु से विद्या एवं विद्वान, दोनों निराश्रित हो गये।
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*भोज ने अपनी राजधानी [[धार]] को विद्या एवं कला के महत्त्वपूर्ण केन्द्र के रूप में स्थापित किया।  
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*यहां पर भोज ने अनेक महल एवं मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें 'सरस्वती मंदिर' सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
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*उसके अन्य निर्माण कार्य 'केदारेश्वर', 'रामेश्वर', 'सोमनाथ सुडार' आदि मंदिर हैं।
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*इसके अतिरिक्त भोज ने [[भोजपुर मध्य प्रदेश|भोजपुर]] नगर एवं भोजसेन नामक तालाब का भी निर्माण करवाया था।  
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*उसने 'त्रिभुवन नारायण', 'सार्वभौम', 'मालवा चक्रवर्ती' जैसे विरुद्ध धारण किए थे।
  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
 
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{{भारत के राजवंश}}
 
{{भारत के राजवंश}}

Revision as of 06:44, 17 February 2011

  • ramabhadr ka uttaradhikari mihirabhoj (bhoj pratham) (836 se 889 ee.) gurjar pratihar vansh ka sarvadhik pratapi evan mahan shasak hua.
  • usane 836 ee. ke lagabhag kannauj ko apani rajadhani banaya, jo agami sau varsho tak pratiharoan ki rajadhani bani rahi.
  • bhoj ne jab poorv disha ki or apane samrajy ka vistar karana chaha, to use bangal ke pal shasak dharmapal se parajit hona p da.
  • 842 se 860 ee. ke bich use rashtrakoot shasak dhruv ne bhi parajit kiya.
  • pal vansh ke shasak devapal ki mrityu ke bad usake uttaradhikari narayan ko bhoj ne parast kar pal rajy ke ek b de bhoo-bhag par adhikar kar liya.
  • mihirabhoj ka samrajy kathiyava d, panjab, malava tatha madhy desh tak phaila tha.
  • usake shasan kal ka vivaran arab yatri suleman ke yatra vivaran se milata hai.
  • arab yatri suleman (1836-885) use 'barua' kahata hai.
  • mihirabhoj ke bare mean suleman likhata hai ki, “is raja ke pas bahut b di sena hai aur any kisi doosare raja ke pas usaki jaisi sena nahian hai. usaka rajy jihm ke akar ka hai. usake pas bahut adhik sankhya mean gho de aur ooant hai. bharat mean bhoj ke rajy ke atirikt koee doosara rajy nahian hai, jo dakuoan se itana surakshit ho.
  • mihirabhoj ne 'adivaraj' evan 'prabhas' ki upadhiyaan dharan ki thian.
  • mihirabhoj ne kee namoan se, jaise - 'mihirabhoj' (gvaliyar abhilekh mean), 'prabhas' (daulatapur abhilekh mean), 'adivarah' (gvaliyar chaturbhuj abhilekhoan), chaandi ke 'dramm' sikke chalavae the.
  • sikko par nirmit sooryachandr usake chakravartin ka praman hai. arab yatri suleman ke anusar- vah araboan ka svabhavik shatru tha. usane pashchim mean araboan ka prasar rok diya tha.
  • gujarat ke solanki evan tripura ke kalachuri ke sangh ne milakar bhoj ki rajadhani dhar par do or se akraman kar rajadhani ko nasht kar diya tha.
  • bhoj ke bad shasak jayasianh ne shatruoan ke samaksh atmasamarpan kar malava se apane adhikar ko kho diya.
  • bhoj ke samrajy ke antargat malava, koankan, khan desh, bhilasa, duganrapur, baansava da, chittau d evan godavari ghati ka kuchh bhag shamil tha.
  • usane ujjain ki jagah apane nee rajadhani dhar ko banaya. bhoj ek parakrami shasak hone ke sath hi vidvan evan vidya tatha kala ka udar sanrakshak tha. apani vidvata ke karan hi usane 'kaviraj' ki upadhi dharan ki thi.
  • usane kuchh mahattvapoorn granth jaise- 'samaraangan sootradhar', 'sarasvati kanthabharan', 'sidvant sangrah', 'rajakartad', 'yogyasootravritti', 'vidya vinod', 'yukti kalpataru', 'charu charcha', 'adity pratap siddhant', 'ayurved sarvasv shrriangar prakash', 'prakrit vyakaran', 'koormashatak', 'shrriangar manjari', 'bhojachampoo', 'krityakalpataru', 'tatvaprakash', 'shabdanushasan', 'rajmridad' adi ki rachana ki.
  • 'aina-e-akabari' ke varnan ke adhar par mana jata hai ki, usake rajadarabar mean lagabhag 500 viddhan the.
  • usake darabari kaviyoan mean 'bhaskarabhatt', 'damodar mishr', 'dhanapal' adi pramukh the.
  • usake bar mean anushrati thi ki, vah har ek kavi ko pratyek shlok par ek lakh mudrayean pradan karata tha.
  • usaki mrityu par panditoan ko hardik dukhah hua, tabhi ek prasiddh lokokti ke anusar- usaki mrityu se vidya evan vidvan, donoan nirashrit ho gaye.
  • bhoj ne apani rajadhani dhar ko vidya evan kala ke mahattvapoorn kendr ke roop mean sthapit kiya.
  • yahaan par bhoj ne anek mahal evan mandiroan ka nirman karavaya, jinamean 'sarasvati mandir' sarvadhik mahattvapoorn hai.
  • usake any nirman kary 'kedareshvar', 'rameshvar', 'somanath sudar' adi mandir haian.
  • isake atirikt bhoj ne bhojapur nagar evan bhojasen namak talab ka bhi nirman karavaya tha.
  • usane 'tribhuvan narayan', 'sarvabhaum', 'malava chakravarti' jaise viruddh dharan kie the.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh