बीका पहाड़ी: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " जमीन" to " ज़मीन") |
|||
Line 1: | Line 1: | ||
'''बीका पहाड़ी''' [[राजस्थान]] में [[चित्तौड़]] के दुर्ग के बाहर की एक पहाड़ी है। यहाँ 1533 ई० में [[गुजरात]] के सुल्तान [[बहादुर शाह (गुजरात का सुल्तान)|बहादुरशाह]] तथा चित्तौड़ के नरेश विक्रमजीत की सेनाओं में मुठभेड़ हुई थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=634|url=}}</ref> | '''बीका पहाड़ी''' [[राजस्थान]] में [[चित्तौड़]] के दुर्ग के बाहर की एक पहाड़ी है। यहाँ 1533 ई० में [[गुजरात]] के सुल्तान [[बहादुर शाह (गुजरात का सुल्तान)|बहादुरशाह]] तथा चित्तौड़ के नरेश विक्रमजीत की सेनाओं में मुठभेड़ हुई थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=634|url=}}</ref> | ||
*बहादुरशाह के तोपची लाबरी ख़ाँ ने पहाड़ी के नीचे सुरंग खोदकर उसमें बारूद भरकर पचास हाथ लंबी | *बहादुरशाह के तोपची लाबरी ख़ाँ ने पहाड़ी के नीचे सुरंग खोदकर उसमें बारूद भरकर पचास हाथ लंबी ज़मीन उड़ा दी, जिससे वहाँ स्थित [[राजपूत]] मोर्चे के सैनिकों का पूर्ण संहार हो गया। | ||
*युद्ध में वीरांगना जवाहरबाई बड़ी बहादुरी से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हो गई थी। | *युद्ध में वीरांगना जवाहरबाई बड़ी बहादुरी से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हो गई थी। | ||
*चित्तौड़ के प्रसिद्ध साकों में यह युद्ध द्वितीय 'साका' माना जाता है, जिसमें तेरह हज़ार राजपूत रमणियों ने अपने सतीत्व की रक्षा हेतु चिता में जलकर अपने प्राणों को होम कर दिया था। | *चित्तौड़ के प्रसिद्ध साकों में यह युद्ध द्वितीय 'साका' माना जाता है, जिसमें तेरह हज़ार राजपूत रमणियों ने अपने सतीत्व की रक्षा हेतु चिता में जलकर अपने प्राणों को होम कर दिया था। |
Latest revision as of 13:29, 1 October 2012
बीका पहाड़ी राजस्थान में चित्तौड़ के दुर्ग के बाहर की एक पहाड़ी है। यहाँ 1533 ई० में गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह तथा चित्तौड़ के नरेश विक्रमजीत की सेनाओं में मुठभेड़ हुई थी।[1]
- बहादुरशाह के तोपची लाबरी ख़ाँ ने पहाड़ी के नीचे सुरंग खोदकर उसमें बारूद भरकर पचास हाथ लंबी ज़मीन उड़ा दी, जिससे वहाँ स्थित राजपूत मोर्चे के सैनिकों का पूर्ण संहार हो गया।
- युद्ध में वीरांगना जवाहरबाई बड़ी बहादुरी से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हो गई थी।
- चित्तौड़ के प्रसिद्ध साकों में यह युद्ध द्वितीय 'साका' माना जाता है, जिसमें तेरह हज़ार राजपूत रमणियों ने अपने सतीत्व की रक्षा हेतु चिता में जलकर अपने प्राणों को होम कर दिया था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 634 |