जम्बू द्वीप: Difference between revisions

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*पौराणिक भूगोल के आधार पर यह कहना उपयुक्त होगा कि जंबूद्वीप में वर्तमान [[एशिया]] का अधिकांश भाग सम्मिलित था।  
*पौराणिक भूगोल के आधार पर यह कहना उपयुक्त होगा कि जंबूद्वीप में वर्तमान [[एशिया]] का अधिकांश भाग सम्मिलित था।  
*[[विष्णु पुराण]]<ref>विष्णु पुराण अंश 2, अध्याय 2</ref> के अनुसार-  
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<poem>'जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,  
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भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,  
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,  

Latest revision as of 11:32, 20 May 2013

पौराणिक भूगोल के अनुसार भूलोक के सप्त महाद्वीपो में एक द्वीप है। यह पृथ्वी के केंद्र मे स्थित है।

  • इसके इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय, ये नव खण्ड हैं।
  • इनमें भारतवर्ष ही मृत्युलोक है, शेष देवलोक हैं। इसके चतुर्दिक लवण सागर है।
  • जं‌बूद्वीप का नामकरण यहाँ स्थित जबू वृक्ष (जामुन) के कारण हुआ है।
  • जंबूद्वीप से क्रमानुसार बड़े द्वीपों के नाम इस प्रकार है‌- प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौंच, शाक एवं पुष्कर
  • पौराणिक भूगोल के आधार पर यह कहना उपयुक्त होगा कि जंबूद्वीप में वर्तमान एशिया का अधिकांश भाग सम्मिलित था।
  • विष्णु पुराण[1] के अनुसार-

thumb|300px|right|रचना जम्बूदीप

'जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,
हरिवर्षं तथैवान्यन्‌मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्‌,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्‌,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।[2]

  • जैन ग्रंथ 'जंबूद्वीप्प्रज्ञप्ति' में जंबूद्वीप के सात वर्ष कहे गये हैं। हिमालय को महाहिमवंत और चुल्लहिमवंत दो भागों में विभाजित माना गया है और भारतवर्ष में चक्रवर्ती सम्राट का राज्य बताया गया है।
  • पुराणों में जंबूद्वीप के छ: वर्ष पर्वत बताये गये हैं - हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णु पुराण अंश 2, अध्याय 2
  2. विष्णु पुराण अंश 2, अध्याय 2

माथुर, विजयेन्द्र कुमार ऐतिहासिक स्थानावली, द्वितीय संस्करण-1990 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, पृष्ठ संख्या- 351।

बाहरी कड़ियाँ

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