अग्न्याशय के रोग: Difference between revisions
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अग्न्याशय के रोग मानव शरीर में अन्य अंगों की भाँति ही देखने को मिलते हैं। अग्न्याशय में दो प्रकार के रोग होते हैं। एक बीजाणुओं के प्रवेश या संक्रमण से उत्पन्न होने वाले और दूसरे स्वयं ग्रंथि में बाह्य कारणों के बिना ही उत्पन्न होने वाले। प्रथम प्रकार के रोगों में कई प्रकार की अग्न्याशयार्तियाँ होती है। दूसरे प्रकार के रोगों में अश्मरी, पुटो[1], अर्बुद और नाड़व्रीाण या फिस्चुला हैं।[2]
- अग्न्याशयाति[3] दो प्रकार की होती है, एक उग्र और दूसरी जीर्ण।
- उग्र अग्न्याशयाति प्राय: पित्ताशय के रोगों या आमाशय के व्राण से उत्पन्न होती है; इसमें सारी ग्रंथि या उसके कुछ भागों में गलन होने लगती है।
- यह रोग स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है और इसका आरंभ साधारणत 20 और 40 वर्ष के बीच की आयु में होता है।
- अकस्मात् उदर के ऊपरी भाग में उग्र पीड़ा, अवसाद[4] के से लक्षण, नाड़ी का क्षीण हो जाना, ताप अत्यधिक या अति न्यून, ये प्रारंभिक लक्षण होते हैं। उदर फूल आता है, उदरभित्ति स्थिर हो जाती है, रोगी की दशा विषम हो जाती है।
- जीर्ण रोग से लक्षण उपर्युक्त के ही समान होते हैं, किंतु वे तीव्र नहीं होते। अपच के से आक्रमण होते रहते हैं।
- इस रोग के उपचार में बहुधा शस्त्र कर्म आवश्यक होता है। जीर्ण रूप में औषधोपचार से लाभ हो सकता है।
- अश्मरी, पुटी, अर्बुद और नाड़व्रीाणों में केवल शस्त्र कर्म ही चिकित्सा का साधन है। अर्बुदों में कैंसर अधिक होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सिस्ट
- ↑ अग्न्याशय के रोग (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 11 फरवरी, 2015।
- ↑ पैनक्रिएटाइटिस
- ↑ उत्साहहीनता
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