रथ का मेला वृन्दावन: Difference between revisions

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[[चित्र:Rath-Yatra-Rang-Ji-Temple-Vrindavan-Mathura-5.jpg|thumb|रथ का मेला वृन्दावन]]
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'''रथ का मेला वृन्दावन / Rath ka mela Vrindavan'''
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{{see also|गोविन्द देव मन्दिर वृन्दावन|रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन}}
==रथयात्रा==
वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है।
वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है।
यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग मे लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं। भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड कर खींचतें हैं। लगभग ढ़ाई घन्टे के अन्तराल में काफी जोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है। अगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाजी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आसपास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं- कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी [[कदम्ब]] तो कभी कल्पवृक्ष रहता है। कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे- [[सूर्य देवता|सूरज]], [[गरुड़]], [[हनुमान]] या [[शेषनाग]]। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाये जाते हैं।
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यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग में लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं।
 
भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड़ कर खींचते हैं। लगभग ढाई घन्टे के अन्तराल में काफ़ी ज़ोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है। आगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाज़ी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आस-पास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं। कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी [[कदम्ब]] तो कभी [[कल्पवृक्ष]] रहता है।
 
कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे- [[सूर्य देवता|सूरज]], [[गरुड़]], [[हनुमान]] या [[शेषनाग]]। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाये जाते हैं।
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==वीथिका==
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चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 6 .jpg|रथ यात्रा, रंग नाथ जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Rath Yatra, Rang Nath Ji Temple, Vrindavan
चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 6 .jpg|रथ यात्रा, रंग नाथ जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Rath Yatra, Rang Nath Ji Temple, Vrindavan
चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 7 .jpg|रथ यात्रा, रंग नाथ जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Rath Yatra, Rang Nath Ji Temple, Vrindavan
चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 7 .jpg|रथ यात्रा, रंग नाथ जी मन्दिर, [[वृन्दावन]]<br /> Rath Yatra, Rang Nath Ji Temple, Vrindavan
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चित्र:Rath Yatra Rang Nath Ji Temple Vrindavan Mathura 3 .jpg|रथ का मेला, [[वृन्दावन]]
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Latest revision as of 05:20, 9 March 2018

रथ का मेला वृन्दावन
अन्य नाम रथयात्रा वृन्दावन
अनुयायी हिन्दू
तिथि चैत्र कृष्ण द्वितीया से नवमी तक
उत्सव यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं।
संबंधित लेख कंस मेला, नौचन्दी मेला, लठ्ठा का मेला
अन्य जानकारी वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है।

रथ का मेला वृन्दावन उत्तर प्रदेश में महत्त्वपूर्ण उत्सव है। होली समाप्त होते ही चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया से रंग जी, वृन्दावन के मन्दिर का प्रसिद्ध रथ मेला प्रारम्भ हो जाता है। प्रतिदिन विभिन्न सोने–चांदी के वाहनों पर रंगजी की सवारी निकलती है। चैत्र कृष्ण नवमी को रथ का मेला तथा दसवीं को भव्य आतिशबाज़ी होती है। यह बहुत बड़ा मेला होता है।


  1. REDIRECT साँचा:इन्हें भी देखें

रथयात्रा

वृन्दावन में रंग नाथ जी मन्दिर से थोड़ी दूर एक छत से ढका हुआ निर्मित भवन है, जिसमें भगवान का रथ रखा जाता है। यह लकड़ी का बना हुआ है और विशालकाय है। यह रथ वर्ष में केवल एक बार ब्रह्मोत्सव के समय चैत्र में बाहर निकाला जाता है। [[चित्र:Rath-Ka-Mela-Vrindavan.jpg|thumb|left|200px|रथ का मेला वृन्दावन]] यह ब्रह्मोत्सव-मेला दस दिन तक लगता है। प्रतिदिन मन्दिर से भगवान रथ में जाते हैं। सड़क से चल कर रथ 690 गज़ रंगजी के बाग़ तक जाता है जहाँ स्वागत के लिए मंच बना हुआ है। इस जलूस के साथ संगीत, सुगन्ध सामग्री और मशालें रहती हैं। जिस दिन रथ प्रयोग में लाया जाता है, उस दिन अष्टधातु की मूर्ति रथ के मध्य स्थापित की जाती है। इसके दोनों ओर चौरधारी ब्राह्मण खड़े रहते हैं।

भीड़ के साथ सेठ लोग भी जब-तब रथ के रस्से को पकड़ कर खींचते हैं। लगभग ढाई घन्टे के अन्तराल में काफ़ी ज़ोर लगाकर यह दूरी पार कर ली जाती है। आगामी दिन शाम की बेला में आतिशबाज़ी का शानदार प्रदर्शन किया जाता है। आस-पास के दर्शनार्थियों की भीड़ भी इस अवसर पर एकत्र होती है। अन्य दिनों जब रथ प्रयोग में नहीं आता तो भगवान की यात्रा के लिए कई वाहन रहते हैं। कभी जड़ाऊ पालकी तो कभी पुण्य कोठी, तो कभी सिंहासन होता है। कभी कदम्ब तो कभी कल्पवृक्ष रहता है।

कभी-कभी किसी उपदेवता को भी वाहन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे- सूरज, गरुड़, हनुमान या शेषनाग। कभी घोड़ा, हाथी, सिंह, राजहंस या पौराणिक शरभ जैसे चतुष्पद भी प्रयोग में लाये जाते हैं।

वीथिका

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