कोठारी आयोग: Difference between revisions
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कोठारी आयोग [[भारत]] का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था, जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों के मद्देनज़र कुछ ठोस सुझाव दिए। आयोग के अनुसार समान स्कूल के नियम पर ही एक ऐसी राष्ट्रीय व्यवस्था तैयार हो सकती है, जहाँ सभी वर्ग के बच्चे एक साथ पढ़ेंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो समाज के उच्च वर्गों के लोग सरकारी स्कूल से भागकर प्राइवेट स्कूलों का | कोठारी आयोग [[भारत]] का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था, जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों के मद्देनज़र कुछ ठोस सुझाव दिए। आयोग के अनुसार समान स्कूल के नियम पर ही एक ऐसी राष्ट्रीय व्यवस्था तैयार हो सकती है, जहाँ सभी वर्ग के बच्चे एक साथ पढ़ेंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो समाज के उच्च वर्गों के लोग सरकारी स्कूल से भागकर प्राइवेट स्कूलों का रुख़ करेंगे और पूरी प्रणाली ही छिन्न-भिन्न हो जाएगी। आयोग ने जो सुझाव दिए, वे निन्मलिखित थे- | ||
#शिक्षा के अनिवार्य अंग के रूप में समाज सेवा और कार्य अनुभव, जिसमें हाथ से काम करने तथा उत्पादन अनुभव सम्मिलित हों, आरम्भ किए जाएँ। | #शिक्षा के अनिवार्य अंग के रूप में समाज सेवा और कार्य अनुभव, जिसमें हाथ से काम करने तथा उत्पादन अनुभव सम्मिलित हों, आरम्भ किए जाएँ। | ||
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Latest revision as of 05:33, 26 March 2022
कोठारी आयोग की नियुक्ति जुलाई, 1964 ई. में डॉक्टर डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में की गई थी। इस आयोग में सरकार को शिक्षा के सभी पक्षों तथा प्रकमों के विषय में राष्ट्रीय नमूने की रूपरेखा, साधारण सिद्वान्त तथा नीतियों की रूपरेखा बनाने का सुझाव दिया गया। कोठारी आयोग ने प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा और उच्च अर्थात् विश्वविद्यालयी शिक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये।
प्रमुख सुझाव
कोठारी आयोग भारत का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था, जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों के मद्देनज़र कुछ ठोस सुझाव दिए। आयोग के अनुसार समान स्कूल के नियम पर ही एक ऐसी राष्ट्रीय व्यवस्था तैयार हो सकती है, जहाँ सभी वर्ग के बच्चे एक साथ पढ़ेंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो समाज के उच्च वर्गों के लोग सरकारी स्कूल से भागकर प्राइवेट स्कूलों का रुख़ करेंगे और पूरी प्रणाली ही छिन्न-भिन्न हो जाएगी। आयोग ने जो सुझाव दिए, वे निन्मलिखित थे-
- शिक्षा के अनिवार्य अंग के रूप में समाज सेवा और कार्य अनुभव, जिसमें हाथ से काम करने तथा उत्पादन अनुभव सम्मिलित हों, आरम्भ किए जाएँ।
- माध्यमिक शिक्षा को व्यवासायिक बनाने पर बल दिया गया।
- शिक्षा के पुनर्निर्माण में कृषि, कृषि में अनुसंधान तथा इससे सम्बन्धित विज्ञानों को उच्च प्राथमिकता दी जाए।
- विश्वविद्यालयों में एक छोटी-सी संस्था ऐसी बनायी जाए, जो उच्चतम अन्तर्राष्ट्रीय मानकों को प्राप्त करने का उद्देश्य रखती हो।
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