चम्पारन सत्याग्रह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
चम्पारन सत्याग्रह
विवरण चम्पारन सत्याग्रह गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917-18 में हुआ। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था।
कब अप्रैल, 1917
उद्देश्य किसानों की स्थिति में सुधार लाने हेतु।
अन्य जानकारी चम्पारन सत्याग्रह में गाँधीजी के साथ अन्य नेताओं में राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर, महादेव देसाई, नरहरि पारिख तथा जे. बी. कृपलानी थे।

चम्पारन सत्याग्रह (अंग्रेज़ी: Champaran Satyagraha) गांधीजी के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917 में हुआ। गांधीजी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। अंग्रेज़ बाग़ान मालिकों ने चम्पारन के किसानों से एक अनुबन्ध करा लिया था, जिसमें उन्हें नील की खेती करना अनिवार्य था। नील के बाज़ार में गिरावट आने से कारखाने बन्द होने लगे। अंग्रेज़ों ने किसानों की मजबूरी का लाभ उठाकर लगान बढ़ा दिया। इसी के फलस्वरूप विद्रोह प्रारम्भ हो गया। महात्मा गाँधी ने अंग्रेज़ों के इस अत्याचार से चम्पारन के किसानों का उद्धार कराया। इसका परिणाम यह हुआ कि बिहार वालों के लिए वे देव तुत्य बन गये। यहाँ उनके साथ आन्दोलन में प्रमुख थे- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह, अनुग्रह नारायण सिन्हा, जनकधारी प्रसाद और ब्रजकिशोर प्रसाद।

इतिहास

चम्पारन के किसानों से अंग्रेज़ बाग़ान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था। इस अनुबंध के अंतर्गत किसानों को ज़मीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे 'तिनकठिया पद्धति' कहते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में रासायनिक रगों की खोज और उनके प्रचलन से नील के बाज़ार में गिरावट आने लगी, जिससे नील बाग़ान के मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे। किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे। गोरे बाग़ान मालिकों ने किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठाकर अनुबंध से मुक्त करने के लिए लगान को मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह शुरू हुआ।

'तिनकठिया प्रणाली' की समाप्ति

1917 ई. में चम्पारन के राजकुमार शुक्ल ने सत्याग्रह की धमकी दी, जिससे प्रशासन ने अपना आदेश वापस ले लिया। चम्पारन में गाँधी जी द्वारा सत्याग्रह का सर्वप्रथम प्रयोग करने का प्रयास किया गया। चम्पारन सत्याग्रह में गाँधी जी के साथ अन्य नेताओं में राजेन्द्र प्रसाद, ब्रजकिशोर, महादेव देसाई, नरहरि पारिख तथा जे. बी. कृपलानी थे। इस आन्दोलन में गाँधी जी के नेतृत्व में किसानों की एकजुटता को देखते हुए सरकार ने मामले की जाँच की।

जुलाई, 1917 ई. में 'चम्पारण एग्रेरियन कमेटी' का गठन किया गया। गाँधी जी भी इसके सदस्य थे। इस कमेटी के प्रतिवेदन पर 'तिनकठिया प्रणाली' को समाप्त कर दिया तथा किसानों से अवैध रूप से वसूले गए धन का 25 प्रतिशत वापस कर दिया गया। 1919 ई. में 'चम्पारण एग्रेरियन अधिनियम' पारित किया गया, जिससे किसानों की स्थिति में सुधार हुआ।

चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष

[[चित्र:Champaran-Satyagraha-Centenary-Stamps.jpg|thumb|200px|left|चम्पारन सत्याग्रह की शताब्दी पर डाक टिकट]] [[चित्र:Champaran-Satyagraha-Centenary-Stamps-1.jpg|thumb|200px|left|चम्पारन सत्याग्रह की शताब्दी पर डाक टिकट]] [[चित्र:Champaran-Satyagraha-Centenary-Stamps-2.jpg|thumb|200px|left|चम्पारन सत्याग्रह की शताब्दी पर डाक टिकट]] 15 अप्रैल, 1917 को राजकुमार शुक्ल जैसे एक अनाम-से आदमी के साथ मोहनदास करमचंद गांधी नाम का आदमी चंपारण, मोतिहारी पहुंचा था। बाबू गोरख प्रसाद के घर पर उन्हें ठहराया गया। बिहार के उत्तर-पश्चिम में स्थित चंपारण वह इलाका है जहां सत्याग्रह की नींव पड़ी। नील की खेती के नाम पर अंग्रेजी शासन द्वारा किसानों के शोषण के खिलाफ यहां गांधी के नेतृत्व में 1917 में सत्याग्रह आंदोलन चला था।


महात्मा गांधी का 1917 का चंपारण सत्याग्रह न सिर्फ भारतीय इतिहास बल्कि विश्व इतिहास की एक ऐसी घटना है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को खुली चुनौती दी थी। वे 10 अप्रैल, 1917 को जब बिहार आए तो उनका एक मात्र मकसद चंपारण के किसानों की समस्याओं को समझना, उसका निदान और नील के धब्बों को मिटाना था। एक स्थानीय पीड़ित किसान राजकुमार शुक्ल ने कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन (1916) में अंग्रेजों द्वारा जबरन नील की खेती कराए जाने के संदर्भ में शिकायत की थी। शुक्ल का आग्रह था कि गांधीजी इस आंदोलन का नेतृत्व करें। गांधीजी ने इस समस्या को न सिर्फ गंभीरतापूर्वक समझा, बल्कि इस दिशा में आगे भी बढ़े। बिहार में चंपारण जिले को ये सौभाग्य प्राप्त है कि दक्षिण अफ़्रीका से वापस आकर महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह आन्दोलन का प्रारम्भ यहीं से किया। चंपारण सत्याग्रह में गाँधी जी को सफलता भी प्राप्त हुई। शांतिपूर्ण जनविरोध के माध्यम से सरकार को सीमित मांगें स्वीकार करने पर सहमत कर लेना एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। सत्याग्रह का भारत के राष्ट्रीय स्तर पर यह पहला प्रयोग इस लिहाज से काफी सफल रहा। इसके बाद नील की खेती जमींदारों के लिए लाभदायक नहीं रही और शीघ्र ही चंपारण से नील कोठियों के मालिकों का पलायन प्रारंभ हो गया।

शताब्दी वर्ष के दौरान खादी और ग्रामोद्योग आयोग, भारत सरकार की ओर से 15 दिवसीय खादी महोत्सव का शुभारंभ किया गया, जो 13 फरवरी, 2017 तक जारी रहा। इस महोत्सव में भारत के विभिन्न राज्यों से खादी एवं ग्रामोद्योगी संस्थाएं अपने उत्पादों के साथ भाग लिया। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि महात्मा गांधी की प्रेरणा से स्थापित खादी और ग्रामोद्योग आयोग भारत सरकार द्वारा कार्यान्वित खादी, स्फूर्ति, केआरडीपी एवं पीएमईजीपी योजनाओं के माध्यम से भारत की ग़रीब से ग़रीब जनता को रोजगार का अवसर प्रदान कर उन्हें स्वावलंबी बना रहा है तथा भारत की आर्थिक प्रगति में अपना योगदान दे रहा है।[1]

समाचार

10 अप्रैल, 2018

पटना के लिए 1,000 करोड़ के सीवेज प्रॉजेक्ट्स लॉन्च करेंगे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह कार्यक्रम की शुरुआत करेंगे। पीएम मोदी इस कैंपेन की शुरुआत चंपारण सत्याग्रह की धरती से ही करेंगे। वह मोतिहारी में इस कैंपेन की शुरुआत करते हुए 1,100 करोड़ रुपये के सीवरेज प्रॉटेक्ट्स की लॉन्चिंग करेंगे। सोमवार को मोतिहारी पहुंचने के बाद उन्होंने महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित कर अपने दौरे की शुरुआत की इनमें से कई प्रॉजेक्ट्स बिहार की राजधानी पटना के लिए लॉन्च किए जाएंगे। मोतिहारी में पूर्वी चंपारण का जिला केंद्र हैं। यही से महात्मा गांधी ने 10 अप्रैल, 1917 को सत्याग्रह की शुरुआत की थी।

विभिन्न स्रोतों पर यह समाचार पढ़ें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1917 - 2017 महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष (हिंदी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 10 अप्रैल, 2018।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः