नौसेना विद्रोह

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नौसेना विद्रोह (1945-1946 ई.) ब्रिटिश जहाज़ पर कार्य करने वाले कर्मचारियों द्वारा किया गया था। 18 फ़रवरी, 1946 ई. को 'एन.एस. तलवार' नामक जहाज़ के कर्मचारियों ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष ख़राब खाना मिलने की शिकायत की। इस पर ब्रिटिश अधिकारियों का जवाब था कि "भिखमंगों को चुनने की छूट नहीं हो सकती।" नौसेना कर्मचारियों ने सरकार की इस विभेदात्मक नीति के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया।

विद्रोह की व्यापकता

विद्रोह करने वाले कर्मचारियों ने जहाज़ पर से यूनियन जैक के झण्डों को हटाकर वहाँ पर कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग के झण्डे लगा दिये। उनकी एक मांग यह भी थी कि नाविक बी.सी. दत्त, जिसे जहाज़ की दीवारों पर 'भारत छोड़ो" लिखने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था, को रिहा किया जाय। विद्रोहियों ने एम.एस. ख़ान के नेतृत्व में "नौसेना केन्द्रीय हड़ताल समिति" का गठन किया। बम्बई में शुरू हुआ यह विप्लव देश भर में मद्रास एवं कराची तक फैल गया।

सैनिकों का आत्म समर्पण

इस विद्रोह में 'इन्कलाब ज़िन्दाबाद', 'जय हिन्द', 'हिन्दू-मुस्लिम एक हो’ और आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाहियों को मुक्त करो आदि नारे लगाये गये। इस विद्रोह के समर्थन में 22 फ़रवरी को बम्बई में एक अभूतपूर्व हड़ताल का आयोजन किया गया, जिसमें 20 लाख मज़दूरों ने हिस्सा लिया। सरदार वल्लभ भाई पटेल और मुहम्मद अली जिन्ना के दबाव में आकर सैनिकों ने आत्म-समर्पण कर दिया। ब्रिटेन के नव नियुक्त प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने ब्रिटिश संसद के निम्न सदन 'हाउस ऑफ़ कॉमर्स' से 'कैबिनेट मिशन' को भारत भेजने की घोषणा की।


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