नेहरू समिति
नेहरू समिति का गठन 28 फ़रवरी, 1928 ई. को को किया गया था। 'साइमन कमीशन' के बहिष्कार के बाद भारत सचिव लॉर्ड बर्कन हेड ने भारतीयों के समक्ष एक चुनौती रखी कि वे ऐसे संविधान का निर्माण कर ब्रिटिश संसद के समक्ष रखें, जिसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त हो। कांग्रेस ने बर्कन हेड की इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। पंडित मोतीलाल नेहरू को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। समिति के अन्य सदस्यों में, सर अली इमाम, एम.एस. अणे, तेजबहादुर सप्रू, मंगल सिंह, जी.आर. प्रधान, शोएब कुरेशी, सुभाषचन्द्र बोस, एन.एम. जोशी और जी.पी. प्रधान आदि थे।
गठन तथा लक्ष्य
बर्कन की चुनौती को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने 28 फ़रवरी, 1928 ई. को दिल्ली में सभी दलों का एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया। इस समिति के सम्मेलन में 29 संस्थाओं ने हिस्सा लिया। भारत के संविधान के सिद्धान्तों को तय करने के लिए सर्वदलीय सम्मेलन की समिति की रिपोर्ट को आमतौर पर 'नेहरू रिपोर्ट' की नाम से जाना जाता है। 'नेहरू रिपोर्ट' को अन्तिम रूप से अगस्त, 1928 ई. में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में स्वीकार किया गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता डॉक्टर अंसारी ने की। रिपोर्ट में 'डोमिनियन स्टेट्स' को पहला लक्ष्य एवं 'पूर्ण स्वराज्य' को दूसरा लक्ष्य घोषित किया गया।
सिफ़ारिशें
नेहरू रिपोर्ट की मुख्य सिफ़ारिशे निम्नलिखित थीं-
- भारत को अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों की भांति स्वाधीन किया जाये एवं उसे पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना का अधिकार दिया जाये।
- प्रान्तों में 'द्वैध शासन' समाप्त करके प्रान्तीय स्वायत्तता प्रदान की जाये।
- साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को समाप्त करके अल्प-संख्यकों के लिए स्थान सुरक्षित किये जाये।
- भारत में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की जाये, जिससे इंग्लैण्ड की 'प्रिवी कौंसिली' में अपील भेजना बन्द हो सके।
- सिंध प्रांत को बम्बई से अलग किया जाये।
- केन्द्रीय विधानमण्डल का एक सदनात्मक ढाँचा परिवर्ति कर द्विसदनात्मक सीनेट एवं 'हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटिव' के रूप में होना चाहिए।
- सभी देशी रियासतें, जो ब्रिटिश क्राउन के अधीन हैं, केन्द्र के अधीन हों।
- भारत में स्थापित संघीय शासन में केन्द्र को अधिक शक्तियाँ प्रदान की जायें।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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