यशवंत राव होल्कर
यशवंत राव होल्कर (1797-1811 ई.) तुकोजी राव होल्कर प्रथम का पुत्र था। वह वीरोचित्त गुणों से सम्पन्न था और एक सफल शासक सिद्ध हुआ था। पिता की मृत्यु के बाद उसने राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। यशवंत राव ने अंग्रेज़ों की कैद से दिल्ली के मुग़ल सम्राट शाहआलम को मुक्त कराने का फैसला किया था, किंतु अपने इस कार्य में सफल नहीं हो सका। उसकी बहादुरी के कारण ही बादशाह शाहआलम ने उसे 'महाराजाधिराज राजराजेश्वर आलीजा बहादुर' की उपाधि से सम्मानित किया था।
विजय अभियान
यशवंत राव होल्कर ने सन 1802 में पुणे के निकट महादजी सिंधिया और पेशवा बाजीराव द्वितीय की संयुक्त सेनाओं को हराया था। पेशवा अपनी जान बचाकर पुणे से बसीन की ओर भाग निकला। अंग्रेज़ों ने सिंहासन के लालच के बदले में बाजीराव द्वितीय से 'सहायक संधि' पर हस्ताक्षर की पेशकश की। इस बीच यशवंत राव ने पुणे में अमृतराव को अगले पेशवा के रूप में स्थापित कर दिया। एक माह से अधिक के विचार-विमर्श के बाद यशवंत राव के भाई को पेशवा के रूप मे मान्यता मिलने के खतरे को देखते हुए बाजीराव द्वितीय ने 'सहायक संधि' पर हस्ताक्षर कर दिए और अपनी अवशिष्ट संप्रभुता का आत्म-समर्पण कर दिया, जिससे अंग्रेज़ उसे पूना में सिंहासन पर पुनः स्थापित करें।
अंग्रेज़ों से संधि
यशवंत राव होल्कर ने जब देखा कि अन्य राजा अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते एकजुट होने के लिए तैयार नहीं थे, तब 24 दिसम्बर, 1805 ई. को राजघाट नामक स्थान पर अंग्रेज़ों के साथ एक संधि की, जो 'राजघाट संधि' के नाम से प्रसिद्ध है। यशवंत राव होल्कर भारत का एकमात्र ऐसा राजा था, जिससे अंग्रेज़ों ने शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए संपर्क किया था। यशवंत राव ने ऐसी किसी भी शर्त को स्वीकार नहीं किया, जिससे उनका आत्म सम्मान प्रभावित होता। अंग्रेज़ों ने उसे एक संप्रभु राजा के रूप में मान्यता प्रदान की और सभी प्रदेश लौटा दिए। अंग्रेज़ों ने जयपुर, उदयपुर, कोटा, बूंदी और कुछ अन्य राजपूत राजाओं पर भी यशवंत राव के प्रभुत्व को स्वीकार किया। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे होल्कर के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
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