फ़ैनी पार्क्स
फ़ैनी पार्क्स की गणना अर्ली विक्टोरियन भारतवासियों में की जाती है। उनका वास्तविक नाम फ्रांसेस सुसान्ना आर्चर था और वे 1794 में वेल्स में जन्मी थी।
संक्षिप्त परिचय
फ़ैनी की जिंदगी में 25 मार्च, 1822 की तारीख का बड़ा महत्व है। इसी साल चार्ल्स क्रॉफर्ड पार्क्स से उनका विवाह हुआ। चार्ल्स एक लेखक थे और इससे जरूरी बात यह थी कि वह ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करते थे। फ़ैनी भी चार्ल्स के साथ हिंदुस्तान चली आईं। उनके घर पर नौकर चाकरों की फौज लगी रहती थी। वह अरबी घोड़ों की सवारी करती थीं लेकिन अध्ययन की प्रवृत्ति होने के कारण वे भारतीय संस्कृति का भी अध्ययन करने लगी। उन्होंने हिंदी और संस्कृत की पढ़ाई शुरू कर दी। मुग़ल साम्राज्य तक देश में अंतिम सांसे गिन रहा था।
भारत यात्रा
1830 में फ़ैनी दंपत्ति कानपुर चले गए। 1832 में इनका इलाहाबाद तबादला हो गया और यहां से फ़ैनी की भारत यात्रा का दौर प्रारंभ हुआ। फ़ैनी की कोई संतान नहीं थी। वर्ष 1831 में फ़ैनी ने खुद दर्ज किया है कि उनके घर में 57 नौकर-चाकर थे और उन्हें 14 की और ज़रूरत थी। 1838 में जब फ़ैनी हिमालय की तराईयों की खाक छान रही थी, तभी उन्हें यह संदेश मिला कि उनके पिता की मृत्यु हो गई है। फ़ैनी तुरंत इंग्लैंड रवाना हुई। वह 17 साल बाद अपने देश लौट रही थी लेकिन इस बार उन्हें इंग्लैंड आकर्षित नहीं कर पाया। भारत यात्राओं ने फ़ैनी को आत्मविश्वास से भर दिया था। एक अर्थ में भारत यात्राएं फ़ैनी के लिए स्वयं की तलाश का भी एक उपक्रम सिद्ध हुई।[1]
निधन
वर्ष 1845 में फ़ैनी फिर भारत लौटी, लेकिन इस बार वह केवल यहाँ 8 महीने ही रह पाई। 1846 में उन्हें वापस इंग्लैंड लौटना पड़ा। फ़ैनी की अपनी जीवन यात्रा वर्ष 1875 में समाप्त हुई।
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अहा! ज़िन्दगी | अप्रैल 2018 | पृष्ठ संख्या- 72
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