कामागाटामारू प्रकरण

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कामागाटामारू प्रकरण 1914 ई. में घटा था। इस प्रकरण के अंतर्गत कनाडा की सरकार ने उन भारतीयों पर कनाडा में घुसने पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया, जो भारत से सीधे कनाडा न आया हो। कामागाटामारू जहाज़, जिस पर 376 यात्री सवार थे, उसे कनाडा में घुसने नहीं दिया गया। जब ये जहाज़ 'याकोहामा' पहुँचा, तब उससे पहले ही प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो गया। इसके बाद जब जहाज़ 'बजबज' पहुँचा तो यात्रियों व पुलिस में झड़पें हुईं। इसमें 18 यात्री मारे गये और जो शेष बचे थे, वे जेल में डाल दिये गए।

पुलिस की घेराबन्दी

उस समय तक नौ परिवहन इतना विकसित नहीं हुआ था कि किसी एक नौका से इतनी दूर की यात्रा बगैर किसी पड़ाव के की जा सके, परन्तु 1913 ई. में कनाडा के उच्चतम न्यायालय ने अपने एक निर्णय के अन्तर्गत ऐसे 35 भारतीयों को देश में घुसने का अधिकार दे दिया, जो सीधे भारत से नहीं आये थे। इस निर्णय से उत्साहित होकर भारत के गुरदीप सिंह ने 'कामागाटामारू' नामक एक जहाज़ को किराये पर लेकर 376 यात्रियों के साथ कनाडा के बन्दरगाह 'बैंकूवर' की ओर प्रस्थान किया। इन लोगों के तट पर पहुँचने के बाद कनाडा की पुलिस ने भारतीयों की घेराबन्दी करके उन्हें देश में घुसने से मना कर दिया।

तटीय समीति की स्थापना

हुसैन रहीम, सोहन लाल पाठक एवं बलवंत सिंह ने इन यात्रियो की लड़ाई लड़ने के लिए 'शोर कमटी' (तटीय समिति) की स्थापना की। संयुक्त राज्य अमेरिका में भगवान सिंह, बरकतुल्ला, रामचंद्र एवं सोहन सिंह के नेतृत्व में यह आन्दोलन चलाया गया। कनाडा सरकार ने इस जहाज़ को अपनी सीमा से बाहर कर दिया।


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