लट्ठमार होली: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(18 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Holi Barsana Mathura 1.jpg|thumb|लट्ठमार होली, [[बरसाना]]]]
{{सूचना बक्सा त्योहार
'''लट्ठमार होली''' [[होली]] खेलने का एक तरीक़ा है जो [[ब्रज]] क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज [[रंग|रंगों]] में डूबता है। यहाँ भी सबसे ज्यादा मशहूर है [[बरसाना]] की लट्ठमार होली। बरसाना [[राधा]] का जन्मस्थान है। [[मथुरा]] ([[उत्तर प्रदेश]]) के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।  
|चित्र=Holi Barsana Mathura 1.jpg
|चित्र का नाम=लट्ठमार होली
|अन्य नाम =
|अनुयायी = [[हिंदू]], भारतीय
|उद्देश्य =
|प्रारम्भ =पौराणिक काल
|तिथि=[[बरसाना]]- [[18 मार्च]], [[2024]]<br />
[[नन्दगाँव]]- [[19 मार्च]], [[2024]]
|उत्सव =इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और [[नन्दगाँव]] के पुरुष ([[गोप]]) [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’]] पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है।
|अनुष्ठान =
|धार्मिक मान्यता =इस दिन सभी महिलाओं में राधा की [[आत्मा]] बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो [[श्रीकृष्ण]] और [[राधा]] के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।
|प्रसिद्धि =
|संबंधित लेख=[[बरसाना]], [[होली बलदेव मन्दिर, मथुरा|होली बलदेव मन्दिर]]
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वो है वृन्दावन की होली यहाँ [[बाँके बिहारी मंदिर]] की होली और 'गुलाल कुंद की होली' बहुत महत्त्वपूर्ण है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|12:25, 17 मार्च 2024 (IST)}}
}}'''लट्ठमार होली''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Lathmar Holi'') [[भारत]] में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। लट्ठमार होली भारत के [[ब्रज]] क्षेत्र मुख्य रूप से खेली जाती है। यह [[बरसाना]] और [[नंदगाँव]] में विशेष रूप से मनायी जाती है। इन दोनों ही शहरों को [[राधा]] और [[कृष्ण]] के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। [[होली]] शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज [[रंग|रंगों]] में डूबता है। यहाँ सबसे ज्यादा मशहूर है- [[बरसाना]] की 'लट्ठमार होली'। बरसाना श्रीराधा का जन्मस्थान है। [[मथुरा]], [[उत्तर प्रदेश]] के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।
==तिथि==
लट्ठमार होली हर साल होली के त्योहार के समय बरसाना और नंदगाँव में खेली जाती है। इस समय हजारों श्रद्धालु और पर्यटक देश-विदेश से इस त्योहार में भाग लेने के लिए आते हैं। यह त्योहार लगभग एक सप्ताह तक चलता है और [[रंग पंचमी]] के दिन समाप्त हो जाता है। आमतौर पर बरसाना की लट्ठमार होली [[फाल्गुन मास]] की [[शुक्ल पक्ष]] की [[नवमी]] को मनाई जाती है। इस दिन नंदगाँव के ग्वाल बाल बरसाना होली खेलने आते हैं और अगले दिन फाल्गुन शुक्ल [[दशमी]] को ठीक इसके विपरीत बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगाँव जाते हैं। इस दौरान इन ग्वालों को 'होरियारे' और ग्वालिनों को 'हुरियारीन' के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
 
पूरे ब्रजमंडल में होली के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। फूलों की होली के साथ इस त्योहार की शुरुआत होती है और रंगों की होली के साथ समाप्त होती है। [[बरसाना]], [[मथुरा]] और [[वृंदावन]] में कई तरह की [[होली]] खेली जाती है। इनमें से लट्ठमार होली बेहद प्रसिद्ध है। ब्रज की इस होली में शामिल होने के लिए [[भक्त]] देश-विदेश से आते हैं। यह पर्व श्रीराधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है।
==शुरुआत==
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] [[राधा|राधाजी]] मिलने के लिए बरसाना गांव गए, तो वह राधाजी और उनकी संग की सखियों को चिढ़ाने लगे। ऐसे में राधाजी और सखियों ने कृष्ण और ग्वालों को सबक सिखाने के लिए लाठी से पीटकर दूर करने लगीं। मान्यता है कि तभी से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत हुई। कहा जाता है कि लट्ठमार होली की शुरुआत लगभग 5000 वर्ष पहले हुई थी।
==मान्यता==
==मान्यता==
इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और [[नन्दगाँव]] के पुरुषों (गोप) जो [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’]] पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की [[आत्मा]] बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो [[श्रीकृष्ण]] और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है। महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ [[गुलाल]] छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके उन्‍हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की [[गोपी|गोपियाँ]], बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।
इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुषों (गोप) जो [[राधा रानी मंदिर बरसाना|राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’]] पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की [[आत्मा]] बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।
 
महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ [[गुलाल]] छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके उन्‍हें नचाया जाता है।[[चित्र:Krishna Janm Bhumi Holi Mathura 11.jpg|left|thumb|लट्ठमार होली, [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]]]
 
माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है, वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की [[गोपी|गोपियाँ]], बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।
==प्रथम निमंत्रण==
लट्ठमार होली के दिन पूरे ब्रज में होली का एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। बरसाने में लट्ठमार होली लाडली के मंदिर में बड़े ही उत्साह के साथ खेली जाती है। इस उत्‍सव का पहला निमंत्रण सबसे पहले नंदगांव के नंदमहल भेजा जाता है। इसके बाद ही बरसाने में नंदगांव के हुरियारे [[होली]] खेलने बरसाने आते हैं। इस दिन गोपियां लठ और [[गुलाल]] से हुरियारों का स्‍वागत करती हैं।<ref name="pp">{{cite web |url=https://navbharattimes.indiatimes.com/travel/destinations/why-lathmar-holi-is-famous-in-barsana-near-mathura/articleshow/98380139.cms?story=4 |title=पूरी दुनिया में मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली|accessmonthday=17 मार्च|accessyear=2024 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= navbharattimes.indiatimes.com|language=हिंदी}}</ref>
==परंपरा एवं महत्त्व==
[[उत्तर प्रदेश]] में [[वृन्दावन]] और [[मथुरा]] की होली का अपना ही महत्त्व है। इस त्योहार को किसानों द्वारा फसल काटने के उत्सव एक रूप में भी मनाया जाता है। [[गेहूँ]] की बालियों को आग में रख कर भूना जाता है और फिर उसे खाते है। होली की अग्नि जलने के पश्चात् बची राख को रोग प्रतिरोधक भी माना जाता है। इन सब के अलावा उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृन्दावन क्षेत्रों की होली तो विश्वप्रसिद्ध है। मथुरा में [[बरसाना|बरसाने]] की होली प्रसिद्ध है। बरसाना [[राधा]] जी का गाँव है जो मथुरा शहर से क़रीब 42 किमी अन्दर है। यहाँ एक अनोखी होली खेली जाती है जिसका नाम है [[लट्ठमार होली]]।
 
बरसाने में ऐसी परंपरा हैं कि श्री [[कृष्ण]] के गाँव [[नंदगाँव]] के पुरुष बरसाने में घुसने और [[राधा रानी मंदिर बरसाना |राधा जी के मंदिर]] में ध्वज फहराने की कोशिश करते है और बरसाने की महिलाएं उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं और डंडों से पीटती हैं और अगर कोई मर्द पकड़ जाये तो उसे महिलाओं की तरह श्रृंगार करना होता है और सब के सम्मुख [[नृत्य]] करना पड़ता है, फिर इसके अगले दिन बरसाने के पुरुष नंदगाँव जा कर वहाँ की महिलाओं पर रंग डालने की कोशिश करते हैं। यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वो है वृन्दावन की होली यहाँ [[बाँके बिहारी मंदिर]] की होली और 'गुलाल कुंद की होली' बहुत महत्त्वपूर्ण है। वृन्दावन की होली में पूरा समां प्यार की ख़ुशी से सुगन्धित हो उठता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि होली पर रंग खेलने की परंपरा राधाजी व कृष्ण जी द्वारा ही शुरू की गई थी।
==शारीरिक पीड़ा हो जाती है दूर==
बरसाने की लठमार होली से जुड़ी एक मान्‍यता और है। कहते हैं कि होली के दौरान ब्रज भूमि पर पड़ा गुलाल अगर शरीर की किसी चोट पर लगा लिया जाए, तो शारीरिक पीड़ा दूर हो जाती है। जानकार बताते हैं कि लठ खेलते हुए किसी को चोट लग जाए, तो यह गुलाल दवा के काम करता है। इसे लगाने के बाद वास्‍तव में उस व्‍यक्ति का दर्द कुछ ही देर में लुप्त हो जाता है। इसलिए ब्रज की भूमि को सदैव ही चमत्कारी माना गया है।<ref name="pp"/>
==होली विडियो==
{{#widget:YouTube|id=PPO9F2ZC6Og}}


{{seealso|मथुरा होली चित्र वीथिका|बरसाना होली चित्र वीथिका| बलदेव होली चित्र वीथिका}}
{{seealso|मथुरा होली चित्र वीथिका|बरसाना होली चित्र वीथिका| बलदेव होली चित्र वीथिका}}
Line 9: Line 49:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://hindi.webdunia.com/देश-होली-विभिन्न/देश-में-होली-के-विभिन्न-रूप-1080319036_1.htm होली के विभिन्न रूप]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{होली विडियो}}
{{होली}}{{होली विडियो}}
[[Category:होली]]
[[Category:होली]][[Category:ब्रज]][[Category:पर्व और त्योहार]][[Category:संस्कृति कोश]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
[[Category:ब्रज]][[Category:पर्व और त्योहार]][[Category:संस्कृति कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 07:25, 17 March 2024

लट्ठमार होली
अनुयायी हिंदू, भारतीय
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि बरसाना- 18 मार्च, 2024

नन्दगाँव- 19 मार्च, 2024

उत्सव इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुष (गोप) राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है।
धार्मिक मान्यता इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।
संबंधित लेख बरसाना, होली बलदेव मन्दिर
अन्य जानकारी यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वो है वृन्दावन की होली यहाँ बाँके बिहारी मंदिर की होली और 'गुलाल कुंद की होली' बहुत महत्त्वपूर्ण है।
अद्यतन‎

लट्ठमार होली (अंग्रेज़ी: Lathmar Holi) भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। लट्ठमार होली भारत के ब्रज क्षेत्र मुख्य रूप से खेली जाती है। यह बरसाना और नंदगाँव में विशेष रूप से मनायी जाती है। इन दोनों ही शहरों को राधा और कृष्ण के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है। होली शुरू होते ही सबसे पहले ब्रज रंगों में डूबता है। यहाँ सबसे ज्यादा मशहूर है- बरसाना की 'लट्ठमार होली'। बरसाना श्रीराधा का जन्मस्थान है। मथुरा, उत्तर प्रदेश के पास बरसाना में होली कुछ दिनों पहले ही शुरू हो जाती है।

तिथि

लट्ठमार होली हर साल होली के त्योहार के समय बरसाना और नंदगाँव में खेली जाती है। इस समय हजारों श्रद्धालु और पर्यटक देश-विदेश से इस त्योहार में भाग लेने के लिए आते हैं। यह त्योहार लगभग एक सप्ताह तक चलता है और रंग पंचमी के दिन समाप्त हो जाता है। आमतौर पर बरसाना की लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंदगाँव के ग्वाल बाल बरसाना होली खेलने आते हैं और अगले दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को ठीक इसके विपरीत बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगाँव जाते हैं। इस दौरान इन ग्वालों को 'होरियारे' और ग्वालिनों को 'हुरियारीन' के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

पूरे ब्रजमंडल में होली के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। फूलों की होली के साथ इस त्योहार की शुरुआत होती है और रंगों की होली के साथ समाप्त होती है। बरसाना, मथुरा और वृंदावन में कई तरह की होली खेली जाती है। इनमें से लट्ठमार होली बेहद प्रसिद्ध है। ब्रज की इस होली में शामिल होने के लिए भक्त देश-विदेश से आते हैं। यह पर्व श्रीराधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है।

शुरुआत

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण राधाजी मिलने के लिए बरसाना गांव गए, तो वह राधाजी और उनकी संग की सखियों को चिढ़ाने लगे। ऐसे में राधाजी और सखियों ने कृष्ण और ग्वालों को सबक सिखाने के लिए लाठी से पीटकर दूर करने लगीं। मान्यता है कि तभी से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेलने की शुरुआत हुई। कहा जाता है कि लट्ठमार होली की शुरुआत लगभग 5000 वर्ष पहले हुई थी।

मान्यता

इस दिन लट्ठ महिलाओं के हाथ में रहता है और नन्दगाँव के पुरुषों (गोप) जो राधा के मन्दिर ‘लाडलीजी’ पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं, उन्हें महिलाओं के लट्ठ से बचना होता है। कहते हैं इस दिन सभी महिलाओं में राधा की आत्मा बसती है और पुरुष भी हँस-हँस कर लाठियाँ खाते हैं। आपसी वार्तालाप के लिए ‘होरी’ गाई जाती है, जो श्रीकृष्ण और राधा के बीच वार्तालाप पर आधारित होती है।

महिलाएँ पुरुषों को लट्ठ मारती हैं, लेकिन गोपों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर, श्रृंगार इत्यादि करके उन्‍हें नचाया जाता है।[[चित्र:Krishna Janm Bhumi Holi Mathura 11.jpg|left|thumb|लट्ठमार होली, कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा]]

माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल बहुत मस्ती भरा होता है। एक बात और यहाँ पर जिस रंग-गुलाल का प्रयोग किया जाता है, वो प्राकृतिक होता है, जिससे माहौल बहुत ही सुगन्धित रहता है। अगले दिन यही प्रक्रिया दोहराई जाती है, लेकिन इस बार नन्दगाँव में, वहाँ की गोपियाँ, बरसाना के गोपों की जमकर धुलाई करती है।

प्रथम निमंत्रण

लट्ठमार होली के दिन पूरे ब्रज में होली का एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। बरसाने में लट्ठमार होली लाडली के मंदिर में बड़े ही उत्साह के साथ खेली जाती है। इस उत्‍सव का पहला निमंत्रण सबसे पहले नंदगांव के नंदमहल भेजा जाता है। इसके बाद ही बरसाने में नंदगांव के हुरियारे होली खेलने बरसाने आते हैं। इस दिन गोपियां लठ और गुलाल से हुरियारों का स्‍वागत करती हैं।[1]

परंपरा एवं महत्त्व

उत्तर प्रदेश में वृन्दावन और मथुरा की होली का अपना ही महत्त्व है। इस त्योहार को किसानों द्वारा फसल काटने के उत्सव एक रूप में भी मनाया जाता है। गेहूँ की बालियों को आग में रख कर भूना जाता है और फिर उसे खाते है। होली की अग्नि जलने के पश्चात् बची राख को रोग प्रतिरोधक भी माना जाता है। इन सब के अलावा उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृन्दावन क्षेत्रों की होली तो विश्वप्रसिद्ध है। मथुरा में बरसाने की होली प्रसिद्ध है। बरसाना राधा जी का गाँव है जो मथुरा शहर से क़रीब 42 किमी अन्दर है। यहाँ एक अनोखी होली खेली जाती है जिसका नाम है लट्ठमार होली

बरसाने में ऐसी परंपरा हैं कि श्री कृष्ण के गाँव नंदगाँव के पुरुष बरसाने में घुसने और राधा जी के मंदिर में ध्वज फहराने की कोशिश करते है और बरसाने की महिलाएं उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं और डंडों से पीटती हैं और अगर कोई मर्द पकड़ जाये तो उसे महिलाओं की तरह श्रृंगार करना होता है और सब के सम्मुख नृत्य करना पड़ता है, फिर इसके अगले दिन बरसाने के पुरुष नंदगाँव जा कर वहाँ की महिलाओं पर रंग डालने की कोशिश करते हैं। यह होली उत्सव क़रीब सात दिनों तक चलता है। इसके अलावा एक और उल्लास भरी होली होती है, वो है वृन्दावन की होली यहाँ बाँके बिहारी मंदिर की होली और 'गुलाल कुंद की होली' बहुत महत्त्वपूर्ण है। वृन्दावन की होली में पूरा समां प्यार की ख़ुशी से सुगन्धित हो उठता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि होली पर रंग खेलने की परंपरा राधाजी व कृष्ण जी द्वारा ही शुरू की गई थी।

शारीरिक पीड़ा हो जाती है दूर

बरसाने की लठमार होली से जुड़ी एक मान्‍यता और है। कहते हैं कि होली के दौरान ब्रज भूमि पर पड़ा गुलाल अगर शरीर की किसी चोट पर लगा लिया जाए, तो शारीरिक पीड़ा दूर हो जाती है। जानकार बताते हैं कि लठ खेलते हुए किसी को चोट लग जाए, तो यह गुलाल दवा के काम करता है। इसे लगाने के बाद वास्‍तव में उस व्‍यक्ति का दर्द कुछ ही देर में लुप्त हो जाता है। इसलिए ब्रज की भूमि को सदैव ही चमत्कारी माना गया है।[1]

होली विडियो

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 पूरी दुनिया में मशहूर है बरसाना की लट्ठमार होली (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 17 मार्च, 2024।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख