करतोयाघाट शक्तिपीठ: Difference between revisions
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यह [[शक्तिपीठ]] लाल मनीरहाट-संतहाट रेलवे लाइन पर बोंगड़ा जनपद में बोंगड़ा स्टेशन से दक्षिण-पश्चिम में 32 किलोमीटर दूर भवानीपुर ग्राम में है। [[लाल रंग]] के बलुहा पत्थर के बने इस मंदिर में चित्ताकर्षक टेराकोटा का प्रयोग हुआ है। [[बंगाल]] अति प्राचीन काल से ही शक्ति उपासना का वृहत्केंद्र रहा है। उल्लेखनीय है कि [[बांग्लादेश]] के [[चट्टल शक्तिपीठ]] के शिव मंदिर को तेरहवें [[ज्योतिर्लिंग]] की मान्यता है। ''शक्ति संगम तंत्र'' में बांग्लादेश क्षेत्र को सर्वसिद्धि प्रदायक कहा गया है- | |||
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बांग्लादेश के चार शक्तिपीठों- 'करतोयाघाट', 'विभासपीठ', 'सुगंधापीठ' तथा '[[चट्टल शक्तिपीठ|चट्टल पीठ]]' में करतोया पीठ को अति विशिष्ट कहा गया है। यह [[शक्तिपीठ]] बांग्लादेश एवं [[कामरूप]] के संगम स्थल पर [[करतोया नदी]] के तट पर 100 योजन विस्तृत शक्ति-त्रिकोण के अंतर्गत आता है तथा इसे सिद्ध क्षेत्र भी कहा गया है- | |||
यहाँ सती के 'वामतल्प' का निपात हुआ था। यहाँ देवी 'अपर्णा' रूप में तथा [[शिव]] 'वामन भैरव' रूप में वास करते हैं- | <blockquote>'करतोयां समासाद्य यावच्छि खखासिनीम। शतयोजन विस्तीर्णं त्रिकोणं सर्वसिद्धिद्म्॥<ref>[[महाभारत]], [[वन पर्व महाभारत|वन-पर्व]]</ref></blockquote> | ||
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मान्यता है कि [[सदानीरा नदी|सदानीरा]]-[[करतोया नदी]] का उद्गम शिव-शिवा के [[विवाह संस्कार|पाणिग्रहण]] के समय महाशिव के हाथ में डाले गए [[जल]] से ही हुआ। इसीलिए इसकी महत्ता शिव निर्माल्य<ref>(वह पदार्थ जो किसी देवता को अर्पित किया जाता है)</ref> सदृश्य है तथा इसे लाँघना भी निषिद्ध माना गया है। | |||
*यहाँ [[सती]] के 'वामतल्प' का निपात हुआ था। | |||
*यहाँ देवी '[[अपर्णा]]' रूप में तथा [[शिव]] 'वामन भैरव' रूप में वास करते हैं- | |||
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अपर्णा देवता तत्र ब्रह्मरूपा करोद्भवा॥<ref>तंत्रचूड़ामणि, पीठ निर्णय प्रकरण</ref></poem> | अपर्णा देवता तत्र ब्रह्मरूपा करोद्भवा॥<ref>तंत्रचूड़ामणि, पीठ निर्णय प्रकरण</ref></poem></blockquote> | ||
यहाँ पहले भैरव (शिव) का तदनंतर देवी अपर्णा का दर्शन किया जाता है। जो मनुष्य यहाँ नदी में स्नान के बाद तीन रात तक उपवास करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ फल की प्राप्ति होती है, ऐसा [[महाभारत]] के [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] में उल्लेख | *यहाँ पहले 'भैरव' (शिव) का तदनंतर देवी अपर्णा का दर्शन किया जाता है। जो मनुष्य यहाँ नदी में [[स्नान]] के बाद तीन रात तक उपवास करता है, उसे [[अश्वमेध यज्ञ]] के फल की प्राप्ति होती है, ऐसा [[महाभारत]] के [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] में उल्लेख है- | ||
<blockquote>'करतोयां समासाद्य त्रिरात्रो पोषितो नरः। अश्वमेधम्वाप्नोति प्रजापति कृतोविधि॥'<ref>महाभारत, वनपर्व-85/3</ref></blockquote> | |||
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*'आनंद रामायण' में आता है कि [[श्रीराम]] यहाँ तीर्थ करने गए थे, किंतु इसको लाँघना निषिद्ध मान उस पार नहीं गए तथा [[अश्वमेध यज्ञ]] का उनका अश्व भी करतोया के तट तक गया था- | |||
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'पश्यन स्थलानि संप्राप्य तप्तां श्री मणिकर्णिकाम्। करतोया नदी तोये स्वांत्वाग्रे न ययौ विभुः॥''<ref>आनंद रामायण, यात्राकाण्ड-9/2</ref></blockquote> | |||
<blockquote>'ययौवाजी वायुगत्त्या शीघ्रं ज्वालामुखीं प्रति। दोष भीत्या करतोयां तीर्त्वा नैवाग्रतो गतः॥'<ref>तदैव-यागकाण्ड-3/35</ref></blockquote> | |||
*[[वायु पुराण]] में करतोया नदी का उद्गम 'ऋक्ष पर्वत' कहा गया है तथा इसके जल को मणि सदृश्य उज्ज्वल बताया गया है। | |||
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Latest revision as of 10:42, 27 September 2014
करतोयाघाट शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। 'देवीपुराण' में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
स्थिति
यह शक्तिपीठ लाल मनीरहाट-संतहाट रेलवे लाइन पर बोंगड़ा जनपद में बोंगड़ा स्टेशन से दक्षिण-पश्चिम में 32 किलोमीटर दूर भवानीपुर ग्राम में है। लाल रंग के बलुहा पत्थर के बने इस मंदिर में चित्ताकर्षक टेराकोटा का प्रयोग हुआ है। बंगाल अति प्राचीन काल से ही शक्ति उपासना का वृहत्केंद्र रहा है। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश के चट्टल शक्तिपीठ के शिव मंदिर को तेरहवें ज्योतिर्लिंग की मान्यता है। शक्ति संगम तंत्र में बांग्लादेश क्षेत्र को सर्वसिद्धि प्रदायक कहा गया है-
'रत्नाकारं समारभ्य ब्रह्मपुत्रांतगं शिवे। बंगदेशो मया प्रोक्तः सर्वसिद्धि प्रदर्शकः॥'[1]
बांग्लादेश के चार शक्तिपीठों- 'करतोयाघाट', 'विभासपीठ', 'सुगंधापीठ' तथा 'चट्टल पीठ' में करतोया पीठ को अति विशिष्ट कहा गया है। यह शक्तिपीठ बांग्लादेश एवं कामरूप के संगम स्थल पर करतोया नदी के तट पर 100 योजन विस्तृत शक्ति-त्रिकोण के अंतर्गत आता है तथा इसे सिद्ध क्षेत्र भी कहा गया है-
'करतोयां समासाद्य यावच्छि खखासिनीम। शतयोजन विस्तीर्णं त्रिकोणं सर्वसिद्धिद्म्॥[2]
मान्यता
मान्यता है कि सदानीरा-करतोया नदी का उद्गम शिव-शिवा के पाणिग्रहण के समय महाशिव के हाथ में डाले गए जल से ही हुआ। इसीलिए इसकी महत्ता शिव निर्माल्य[3] सदृश्य है तथा इसे लाँघना भी निषिद्ध माना गया है।
- यहाँ सती के 'वामतल्प' का निपात हुआ था।
- यहाँ देवी 'अपर्णा' रूप में तथा शिव 'वामन भैरव' रूप में वास करते हैं-
करतोया तटे तल्पं वामे वामन भैरवः।
अपर्णा देवता तत्र ब्रह्मरूपा करोद्भवा॥[4]
- यहाँ पहले 'भैरव' (शिव) का तदनंतर देवी अपर्णा का दर्शन किया जाता है। जो मनुष्य यहाँ नदी में स्नान के बाद तीन रात तक उपवास करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है, ऐसा महाभारत के वनपर्व में उल्लेख है-
'करतोयां समासाद्य त्रिरात्रो पोषितो नरः। अश्वमेधम्वाप्नोति प्रजापति कृतोविधि॥'[5]
पौराणिक उल्लेख
- 'आनंद रामायण' में आता है कि श्रीराम यहाँ तीर्थ करने गए थे, किंतु इसको लाँघना निषिद्ध मान उस पार नहीं गए तथा अश्वमेध यज्ञ का उनका अश्व भी करतोया के तट तक गया था-
'पश्यन स्थलानि संप्राप्य तप्तां श्री मणिकर्णिकाम्। करतोया नदी तोये स्वांत्वाग्रे न ययौ विभुः॥[6]
'ययौवाजी वायुगत्त्या शीघ्रं ज्वालामुखीं प्रति। दोष भीत्या करतोयां तीर्त्वा नैवाग्रतो गतः॥'[7]
- वायु पुराण में करतोया नदी का उद्गम 'ऋक्ष पर्वत' कहा गया है तथा इसके जल को मणि सदृश्य उज्ज्वल बताया गया है।
- 'तंत्रचूड़ामणि' में इसे 'ब्रह्मरूपा करोद्भवा' कहा गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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