पावापुरी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
Line 29: | Line 29: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{बिहार के नगर}} | |||
{{बिहार के पर्यटन स्थल}} | {{बिहार के पर्यटन स्थल}} | ||
[[Category:बिहार]] | [[Category:बिहार]] | ||
[[Category:बिहार_के_नगर]] | [[Category:बिहार_के_नगर]] | ||
[[Category:बिहार_के_पर्यटन_स्थल]] | [[Category:बिहार_के_पर्यटन_स्थल]] | ||
[[Category:भारत के नगर]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 05:26, 8 February 2011
स्थिति
बिहारशरीफ़ से 8 किमी दक्षिण-पूर्व पावापुरी जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है। यहीं जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर जी ने निर्वाण प्राप्त किया था। पटना से 104 किमी. और नालन्दा से 25 किमी दूरी पर स्थित है। यहाँ का जल मन्दिर, मनियार मठ तथा वेनुवन दर्शनीय स्थल हैं। स्मिथ के अनुसार पावापुरी ज़िला पटना (बिहार) में स्थित है।
प्राचीन नाम
13वीं शती ई. में जिनप्रभसूरी ने अपने ग्रंथ विविध तीर्थ कल्प रूप में इसका प्राचीन नाम अपापा बताया है। पावापुरी का अभिज्ञान बिहार शरीफ रेलवे स्टेशन (बिहार) से 9 मील पर स्थित पावा नामक स्थान से किया गया है। यह स्थान राजगृह से दस मील दूर है। महावीर के निर्वाण का सूचक एक स्तूप अभी तक यहाँ खंडहर के रूप में स्थित है। स्तूप से प्राप्त ईटें राजगृह के खंडहरों की ईंटों से मिलती-जुलती हैं। जिससे दोनों स्थानों की समकालीनता सिद्ध होती है।
कनिंघम[1] के मत में जिसका आधार शायद बुद्धचरित[2] में कुशीनगर के ठीक पूर्व की ओर पावापुरी की स्थिति का उल्लेख है, कसिया जो प्राचीन कुशीनगर के नाम से विख्यात है, से 12 मील दूर पदरौना नामक स्थान ही पावा है। जहाँ गौतम बुद्ध के समय मल्ल-क्षत्रियों की राजधानी थी।
सभागृह
महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में अपापा के राजा हस्तिपाल के लेखकों के कार्यालय में हुई थी। उस दिन कार्तिक की अमावस्या थी। पालीग्रंथ संगीतिसुत्तंत में पावा के मल्लों के उब्भटक नामक सभागृह का उल्लेख है।
अंतिम समय
जीवन के अंतिम समय में तथागत ने पावापुरी में ठहरकर चुंड का सूकर-माद्दव नाम का भोजन स्वीकार किया था। जिसके कारण अतिसार हो जाने से उनकी मृत्यु कुशीनगर पहुँचने पर हो गई थी।[3]
फ़ाज़िलपुर
कनिंघम ने पावा का अभिज्ञान कसिया के दक्षिण पूर्व में 10 मील पर स्थित फ़ाज़िलपुर नामक ग्राम से किया है। [4] जैन ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार महावीर ने पावा में एक वर्ष बिताया था। यहीं उन्होंने अपना प्रथम धर्म-प्रवचन किया था, इसी कारण इस नगरी को जैन संम्प्रदाय का सारनाथ माना जाता है।
पर्यटन
यहाँ कमल तालाब के बीच जल मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। सोमशरण मंदिर, मोक्ष मंदिर और नया मन्दिर भी दर्शनीय हैं।
|
|
|
|
|