लॉर्ड डलहौज़ी: Difference between revisions
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डलहौज़ी के समय में अंग्रेजों द्वारा प्राप्त की गई महत्त्वपूर्ण सफलताऐं। | डलहौज़ी के समय में अंग्रेजों द्वारा प्राप्त की गई महत्त्वपूर्ण सफलताऐं। |
Revision as of 10:56, 5 March 2011
thumb|लॉर्ड डलहौज़ी
Lord Dalhousie
1848 ई. में अर्ल ऑफ़ डलहौज़ी गवर्नर जनरल बन कर भारत आया। उसका शासन काल आधुनिक भारतीय इतिहास में एक स्मरणीय काल रहा क्योंकि उसने युद्ध व व्यपगत सिद्धान्त के आधार पर अंग्रेज़ी साम्राज्य का विस्तार करते हुए अनेक महत्त्वपूर्ण सुधारात्मक कार्यों को सम्पन्न किया। डलहौज़ी नगर, औपनिवेशक भारत के ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी के नाम पर ही पड़ा है।
डलहौज़ी के समय में प्राप्त महत्त्वपूर्ण सफलताएं
डलहौज़ी के समय में अंग्रेजों द्वारा प्राप्त की गई महत्त्वपूर्ण सफलताऐं।
- द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848-49) तथा पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय (1849 ई.) डलहौज़ी की प्रथम सफलता थी। मुल्तान के गर्वनर मुलराज के विद्रोह, दो अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या और हजारा के सिक्ख गर्वनर चतर सिंह के विद्रोह ने पंजाब में सर्वत्र अंग्रेज़ विरोध की स्थिति पैदा कर दी थी। अतः डलहौज़ी ने द्वितीय आंग्ल सिक्ख युद्ध के पश्चात् 29 मार्च, 1849 की घोषणा द्वारा पंजाब का विलय किया। महाराजा दिलीप सिंह को पेन्शन दे दी गयी। इस युद्ध के विषय में डलहौज़ी ने कहा था कि 'सिखों ने युद्ध माँगा है, यह युद्ध प्रतिशोध सहित लड़ा जायगा।'
- डलहौज़ी ने सिक्किम पर दो अंग्रेज़ डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लगाकर अधिकार कर लिया (1850 ई.)।
- लोअर बर्मा तथा पीगू का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय डलहौज़ी के समय में ही किया गया। उसके समय में ही द्वितीय आंग्ल-बर्मा युद्ध लड़ा गया, जिसका परिणाम था बर्मा की हार तथा लोअर बर्मा एवं पीगू का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय (1852 ई.)।
डलहौज़ी के शासन काल को उसके व्यपगत सिद्धान्त के कारण अधिक याद किया गया है। इसने भारतीय रियासतों को तीन भागों में बाँटा:-
- प्रथम वर्ग में ऐसी रियासतें शामिल थीं जिसने न तो अंग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार की थी और न ही कर देती थीं।
- द्वितीय वर्ग में ऐसी रियासतें (भारतीय) सम्मिलित थीं जो पहले मुग़लों एवं पेशावाओं के अधीन थीं, पर वर्तमान समय में अंग्रेज़ों के अधींनस्थ थीं।
- तृतीय वर्ग में ऐसी रियासतें शामिल थीं जिसे अंग्रेज़ों ने सनदों द्वारा स्थापित किया था।
डलहौज़ी ने यह तय किया कि प्रथम वर्ग या श्रेणी में रियासतें हैं जिनके गोद लेने के अधिकार को हम नहीं छीन सकते। दूसरे वर्ग या श्रेणी के अन्तर्गत आने वाली रियासतों को हमारी आज्ञा से गोद लेने का अधिकार मिल सकेगा, हम इस मामलें में अनुमति दे भी सकते हैं और नहीं भी; वैसे प्रयास अनुमति देने का ही रहेगा, परन्तु तीसरी श्रेणी या वर्ग की रियासतों को उत्तराधिकार में गोद लेने की अनुमति कदापि नहीं दी जानी चाहिए। भारतीय रियासतों का इन तीन वर्गो में विभाजन डलहौज़ी ने अपनी मर्जी से किया। इस प्रकार डलहौज़ी ने अपने विलय की नीति से भारत की प्राकृतिक सीमाओं तक अंग्रेजी राज्य का विस्तार कर दिया।
विलय किये गये राज्य
राज्य | वर्ष |
---|---|
सतारा | 1848 ई. |
जैतपुर, संभलपुर | 1849 ई. |
बघाट | 1850 ई. |
उदयपुर | 1852 ई. |
झाँसी | 1853 ई. |
नागपुर | 1854 ई. |
करौली | 1855 ई. |
अवध | 1856 ई. |
व्यपगत सिद्धान्त के अनुसार विलय किया गया प्रथम राज्य सतारा था। सतारा के राजा अप्पा साहिब ने अपनी मृत्यु के कुछ समय पूर्व कम्पनी की अनुमति के बिना एक दत्तक पुत्र बना लिया था। डलहौज़ी ने इसे आश्रित राज्य घोषित कर इसका विलय कर लिया। कामन्स सभा में जोसेफ ह्नूम ने इस विलय को "जिसकी लाठी उसकी भैंस" की संज्ञा दी थी। इसी प्रकार संभलपुर के राजा नारायण सिंह, झांसी के राजा गंगाधर राव और नागपुर के राजा रघुजी तृतीय के राज्यों का विलय क्रमशः 1849, 1853 एवं 1854 ई. में उनके पुत्र या उत्तराधिकारी के अभाव में किया गया। उन्हें दत्तक पुत्र की अनुमति नहीं दी गयी।
डलहौज़ी ने उपाधियों तथा पेंशनों पर प्रहार करते हुए 1853 ई. में कर्नाटक के नवाब की पेंशन बंद करवा दी। 1855 ई. में तंजौर के राजा की मृत्यु होने पर उसकी उपाधि छीन ली। डलहौज़ी मुग़ल सम्राट की भी उपाधि छीनना चाहता था, परन्तु सफल नहीं हो सका। उसने पेशवा बाजीराव द्वितीय की 1853 ई. में मृत्यु होने पर उसके दत्तक पुत्र नाना साहब को पेंशन देने से मना कर दिया। उसका कहना था कि पेंशन पेशवा को नहीं, बल्कि बाजीराव द्वितीय को व्यक्तिगत रूप से दी गयी थी। हैदराबाद के निज़ाम का कर्ज़ अदा करने में अपने को असमर्थ पाकर 1853 ई. में बरार का अंग्रेजी राज्य में विलय कर लेने दिया। 1856 ई. में अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर लखनऊ के रेजीडेन्ट आउट्रम ने अवध का विलय अंग्रेजी साम्राज्य में करवा दिया, उस समय अवध का नवाब वाजिद अली शाह था।
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